Saturday 19 August 2023

चुनाव के समय ऐसे आरोप अर्थहीन : कमलनाथ अवसर का लाभ लेने में चूक गए



म.प्र में कांग्रेस द्वारा शिवराज सरकार के कथित घोटालों की जो सूची बड़े ही तामझाम के साथ जारी की उस पर भाजपा की जवाबी प्रतिक्रिया काफी जोरदार है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत शर्मा ने भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ पर तीखे हमले करते हुए उन्हें करप्शन नाथ कहकर संबोधित किया । उल्लेखनीय है अपनी पिछली म.प्र यात्रा के दौरान इंदौर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी श्री नाथ के लिए उक्त संबोधन का उपयोग किया था। वैसे भी  आरोपों की प्रामाणिकता संदिग्ध है। और इसीलिए भाजपा ने बिना देर किए कमलनाथ पर सीधा निशाना साधते हुए 1984 के सिख विरोधी दंगों में उनकी भूमिका का उल्लेख कर दिया जो  उनके  साथ ही समूची कांग्रेस की दुखती रग  है । जहां तक बात घोटालों को उजागर करने की है तो ये विपक्ष का कर्तव्य है लेकिन कमलनाथ और उनकी टीम ने जो समय इसके लिए चुना उससे लग रहा है कि कांग्रेस केवल चुनावी लाभ लेने के लिए घोटालों का ढोल पीट रही है। यदि उसके पास वाकई ठोस प्रमाण हैं तब उसे लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अनुसंधान जैसी एजेंसियों के पास शिकायत दर्ज करवाना चाहिए थी। इसके साथ ही वह न्यायपालिका का सहारा भी ले सकती थी। 2003 में दिग्विजय सिंह की सत्ता को जनता ने  हटाया था जिन्हें मिस्टर बंटाधार के नाम से जाना जाता था। उनके दस वर्षीय शासनकाल में म.प्र में सड़कों की हालत बद से बदतर हो गई थी। पूरा प्रदेश बिजली संकट से जूझ रहा था। 2003 के बाद 2018 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई थी किंतु अपनी आंतरिक कलह से उसके विधायक ही उसका साथ छोड़ गए जिससे मात्र 15 महीने में ही कमलनाथ की कुर्सी छिन गई । उस अल्पावधि में जिस व्यापक पैमाने पर तबादले किया गए उनमें भी जबरदस्त भ्रष्टाचार के आरोप लगे । और इसीलिए प्रदेश की जनता ने कुछ महीनों बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। कमलनाथ मामूली अंतर से विधानसभा उपचुनाव जीत सके वहीं लोकसभा  सीट पर  उनका बेटा नकुल नाथ भी फीकी जीत दर्ज कर पाया और वह भी इसलिए कि नरेंद्र मोदी की सभा छिंदवाड़ा में नहीं हो सकी थी। हवा का रुख समझकर ही कांग्रेस का एक धड़ा ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उससे अलग हो गया और वह सरकार धराशायी हो गई। उसके बाद से ही श्री नाथ दोबारा सत्ता में आने के लिए बेचैन हैं।  लंबे समय तक वे नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष दोनों बने रहे। जब पार्टी के भीतर ही उनका विरोध होने लगा तो अध्यक्ष का पद रखते हुए दिग्विजय सिंह के खासमखास डा.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनवा दिया। बावजूद इसके प्रदेश कांग्रेस में उनके नेतृत्व को लेकर असंतोष सतह पर उतराता रहता है। प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने बिना पार्टी की सहमति लिए ही स्वयं को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश  कर दिया जिससे पार्टी के भीतर नाराजगी है। हाल ही में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग भी उठाई गई जिसके पीछे श्री नाथ विरोधी गुट बताया जाता है। इस सबसे बचने के लिए ही उन्होंने प्रदेश सरकार के विरुद्ध आरोपों का पिटारा खोलने का दांव चला । लेकिन विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होने के बाद इस तरह के पैंतरे विश्वसनीय नहीं माने जाते। सही बात तो ये है कि महज 15 महीने छोड़कर म.प्र  में कांग्रेस बीते लगभग दो दशक से विपक्ष में है । लेकिन जैसा संसद में दिखाई देता है ठीक उसी तरह प्रदेश में भी वह विरोधी दल की भूमिका का निर्वहन ठीक तरह से नहीं कर सकी। विधानसभा के सत्रों में वह सरकार को घेर सकती थी किंतु हंगामा और बहिर्गमन उसकी आदत में शुमार हो जाने के कारण वह सदन का समुचित उपयोग नहीं कर पाई । इसका प्रमाण ये है कि बीते दो दशकों में  विधानसभा का शायद ही कोई सत्र पूरी अवधि तक चल पाया हो। कुछ तो हफ्ते भर भी नहीं चले। ऐसे में श्री नाथ द्वारा गत दिवस जो आरोप प्रदेश सरकार पर लगाए गए वे एक दो दिन तक अखबारी पन्नों में नजर आने के बाद भुला दिए जायेंगे ।  हालांकि ये मान लेना तो अतिशयोक्ति होगा कि  भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो चुका है। लेकिन उसको रोकने के लिए  संबंधित एजेंसियां जिस तरह से सक्रिय हैं वैसा कांग्रेस राज में कभी नहीं देखा गया। लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अनुसंधान द्वारा जिस बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचारियों को पकड़ा गया वह इस बात का प्रमाण है कि भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने का प्रयास सरकारी स्तर पर चल रहा है। कमलनाथ और उनकी पार्टी  विधानसभा चुनाव के ठीक पहले घोटालों की जो सूची लेकर आई उन पर मतदाताओं का ध्यान इसलिए नहीं जायेगा क्योंकि उसका उद्देश्य भ्रष्टाचार का विरोध न होकर चुनावी लाभ लेने की कोशिश ही है। वहीं भाजपा ने भी तत्काल ढेर सारे तीर छोड़कर आक्रमण ही सबसे अच्छी सुरक्षा की नीति अपना ली। दरअसल कमलनाथ को 15 महीने तक बतौर मुख्यमंत्री पार्टी की छवि सुधारने का जो अवसर मिला उसे उन्होंने गंवा दिया। इसी कारण न वे अपनी विश्वसनीयता बना सके और न ही कांग्रेस की।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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