Thursday 10 August 2023

सिब्बल द्वारा कश्मीर में जनमत संग्रह जैसी दलील देशहित के विरुद्ध




कपिल सिब्बल देश के जाने माने वकील हैं। केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं । कांग्रेस में राहुल गांधी के नेतृत्व के विरुद्ध बने जी -23 नामक गुट में शामिल रहने के बाद पार्टी छोड़कर सपा के समर्थन से राज्य सभा में आ गए।  अयोध्या विवाद में वे मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता थे । कांग्रेस छोड़ने के बाद भी वे परोक्ष तौर पर ही सही किंतु उसकी मदद के लिए खड़े नजर आते हैं। हालांकि इन दिनों वे जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में   हो रही बहस के कारण चर्चा में हैं। हालांकि उनके द्वारा दी जा रही दलीलें उनके  पक्षकार की बात मानी जाएंगी  किंतु बतौर वरिष्ट राजनेता उनसे ये अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि ऐसी कोई बात न कहें जिससे देश के  हितों पर बुरा असर पड़ता हो।  श्री सिब्बल इस बात पर जोर दे रहे हैं कि धारा 370 को हटाना तो दूर रहा उसमें किसी भी प्रकार का संशोधन केवल संविधान सभा कर सकती है जो वर्तमान में अस्तित्वहीन है। हालांकि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली  संविधान पीठ में  शामिल कुछ न्यायाधीशों ने उक्त तर्क से असहमति व्यक्त कर दी किंतु गत दिवस श्री सिब्बल ने धारा 370 हटाए जाने के बारे में जब ब्रिटेन में यूरोपीय यूनियन से अलग होने के मुद्दे पर करवाए गए जनमत संग्रह (ब्रेक्जिट) जैसा तरीका अपनाए जाने की बात कही तब मुख्य न्यायाधीश डी. वाय.चंद्रचूड़ ने स्पष्ट शब्दों में इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि भारत में जनता की राय निर्धारित माध्यमों से जानने की प्रणाली स्थापित है। लेकिन इस दलील के जरिए श्री सिब्बल ने भारत की घोषित विदेश नीति के विरुद्ध बात कहने की वह गलती की जो आज तक किसी भी केंद्र सरकार या राजनीतिक दल द्वारा नहीं की गई। उल्लेखनीय है आजादी के बाद जब जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हो गया तब पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी पर आक्रमण कर उसके एक हिस्से पर अवैध कब्जा कर लिया। बाद में विवाद संरासंघ पहुंचा जहां तत्कालीन नेहरू सरकार  इस बात पर सहमत हो गई कि जम्मू कश्मीर किसके साथ रहेगा इसका फैसला वहां की जनता की राय पूछकर किया जावेगा। शर्त ये रखी गई  कि पहले पाकिस्तान उसके कब्जे वाले हिस्से को खाली करे।  चूंकि उसने कब्जे वाला क्षेत्र खाली नहीं किया लिहाजा जनमत संग्रह की स्थिति  उत्पन्न नहीं हुई । बाद में संरासंघ ने  इस मामले को भारत - पाकिस्तान का द्विपक्षीय मसला मानकर अपनी भूमिका समाप्त कर ली। लेकिन कश्मीर के  तमाम अलगाववादी संगठन  आज भी उसकी रट लगाते हैं। हुर्रियत नेता सैयद अली शाह जिलानी तो जब तक जिंदा रहे तब तक केंद्र सरकार के साथ बातचीत की किसी भी पेशकश में ये कहते हुए पेच फसाते रहे कि बिना पाकिस्तान को शरीक किए बातचीत का कोई मतलब नहीं । पाकिस्तान के साथ  घाटी के लगभग सभी नेता इस बात की जिद पकड़े रहे कि जम्मू कश्मीर के भविष्य का फैसला संरासंघ के निर्देशन में  जनमत संग्रह से करवाया जावे। एक जमाना था जब अमेरिका और ब्रिटेन भी पाकिस्तान की हां में हां मिलाया करते थे किंतु धीरे - धीरे वैश्विक परिस्थितियां बदलती गईं । शीतयुद्ध की जगह बाजारवाद ने ले ली जिससे कूटनीतिक परिदृश्य भी बदला  । आज की दुनिया में भारत की बढ़ती आर्थिक और सामरिक शक्ति के साथ विशाल उपभोक्ता बाजार के कारण चीन को छोड़कर बाकी प्रमुख देशों का नजरिया हमारे प्रति नर्म हुआ है। यहां तक कि इक्का - दुक्का के अलावा अधिकांश मुस्लिम देश तक भारत से दोस्ती करने के प्रति आकर्षित हैं। ऐसे में  श्री सिब्बल ने धारा 370 हटाए जाने के लिए राज्य की जनता से उसकी राय पूछे जाने  की जो दलील सर्वोच्च न्यायालय में  दी वह अलगाववादी ताकतों के साथ ही हमारे शत्रु राष्ट्रों  के हाथ में हथियार देने जैसा है। श्री सिब्बल अपने पक्षकार के हक में पेशेवर योग्यता , अनुभव और क्षमता का परिचय दें इसमें किसी को एतराज नहीं होगा किंतु बतौर सांसद उन्होंने देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने की जो शपथ ली उसका पालन करना भी उनका कर्तव्य है। और इसके लिए जरूरी है वे ऐसी कोई बात किसी भी मंच पर न कहें जिससे देश का अहित हो। जम्मू कश्मीर देश का अविभाज्य अंग है इसे लेकर किसी के मन में कोई भी संशय हो तो उसे निकाल देना चाहिए। 2014 के बाद से घाटी में जिस तरह  अलगाववाद पर प्रहार किया गया उसका सुपरिणाम लगातार बढ़ रहे पर्यटन के रूप में देखा जा सकता है। हुर्रियत जैसे संगठन  उपद्रव करवाने की क्षमता खो बैठे हैं। पत्थरबाजी बंद है और आतंकवादी  मारे जा रहे हैं। इसका एक कारण 370 का हटना भी है । ऐसे में ये तर्क अलगाववादी ताकतों को ताकत देने जैसा है कि जम्मू कश्मीर अन्य राज्यों जैसा नहीं है जिसका विभाजन संसद कर सके और ऐसा करने के पहले वहां के लोगों की राय पूछी जानी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रचूड़ ने श्री सिब्बल की उक्त दलील को तत्काल अस्वीकार कर उन सभी को संदेश दे दिया जो कश्मीर में अलगाववाद की वापसी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। धारा 370 को हटाए जाने के लिए संविधान सभा को पुनर्जीवित करने जैसा विचार भी मूर्खतापूर्ण  है।  संसद के पास देश के बारे में निर्णय करने का  अधिकार और शक्ति  उसी संविधान के अन्तर्गत है जो संविधान सभा द्वारा लागू किया गया था। धारा 370 के अमरत्व को लेकर संविधान पीठ के न्यायधीशों की टिप्पणियां भले ही  सांकेतिक हों किंतु वे काफी कुछ कह रही हैं जिसे श्री सिब्बल को समझना चाहिए। अपने पेशे के प्रति ईमानदारी अच्छी बात है किंतु जब बात देश की हो तब बाकी बातें महत्वहीन हो जाती हैं । 370 का हटना देश की अखंडता के लिए कितना जरूरी था ये बात अब बताने की जरूरत नहीं है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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