Wednesday 2 August 2023

लोकतंत्र का तकाजा : वैचारिक विभिन्नता व्यक्तिगत शत्रुता में न बदले




गत दिवस पुणे  में लोकमान्य तिलक की पुण्य तिथि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार तिलक  स्मारक मंदिर ट्रस्ट द्वारा  दिया जाता है। प्रधानमंत्री इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले 41वें व्यक्ति हैं। इससे पहले यह  डॉ. शंकर दयाल शर्मा ,  प्रणब मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी , मनमोहन सिंह, मशहूर व्यवसायी एन आर नारायणमूर्ति तथा ‘मेट्रो मैन' ई श्रीधरन को भी प्रदान किया जा चुका है। उक्त न्यास का संचालन लोकमान्य तिलक के परिवार द्वारा किया जाता है। इसको लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ। हालांकि विवाद तो श्री मोदी को पुरस्कृत करने पर भी नहीं था।  लेकिन हाल ही में एनसीपी नेता शरद पवार  के भतीजे अजीत  अनेक विधायकों सहित भाजपा से हाथ मिलाकर महाराष्ट्र सरकार में उपमुख्यमंत्री बन बैठे। ऐसे में जब ये बात सामने आई कि श्री पवार उक्त आयोजन के मुख्य अतिथि होंगे तब उनकी अपनी पार्टी के अलावा कांग्रेस और शिवसेना ने भी मांग की कि उनको प्रधानमंत्री के साथ एक ही मंच पर नहीं बैठना चाहिए। श्री पवार ने इस बारे में अंत तक चुप्पी साधे रखी किंतु आखिर में वे  शामिल हुए ।   विपक्षी नेताओं ने  समारोह में नहीं जाने का अनुरोध करने हेतु उनसे मिलना चाहा किंतु उन्हें समय नहीं दिया गया ।  श्री पवार के धड़े वाली एनसीपी भी गत दिवस पुणे में प्रधानमंत्री के विरोध में हुए प्रदर्शन में शरीक रही। लेकिन इस सबको नजरंदाज करते हुए उन्होंने  उक्त समारोह का मुख्य आतिथ्य स्वीकार किया । इन दिनों  संसद के भीतर मोदी सरकार और विपक्ष में तनातनी  से सदन चल नहीं पा रहा।  इसी परिप्रेक्ष्य में भाजपा विरोधी अनेक नेताओं का मानना रहा कि श्री पवार द्वारा प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा किए जाने से विपक्षी एकता के प्रयासों को धक्का पहुंचेगा । दरअसल महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी नामक गठबंधन में कांग्रेस , शिवसेना और एनसीपी प्रमुख घटक हैं। शिवसेना में विभाजन के बाद अघाड़ी पहले ही कमजोर हो गई थी। एनसीपी के टूटने के बाद तो उसकी ताकत और भी कम हो गई। ऐसे में शिवसेना और कांग्रेस को ये डर सता रहा है  कि कहीं श्री पवार भी  भाजपा के करीब न चले जाएं। हालांकि वे मोदी सरकार की नीतियों की  आलोचना करते रहते हैं किंतु उसके बाद भी विपक्षी गठबंधन के साथियों के दबाव को नकारते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री को सम्मानित किए जाने वाले आयोजन में  शामिल होकर प्रमाणित कर दिया कि वे कितने सुलझे हुए राजनेता हैं। वैसे भी श्री पवार देश के उन बचे -  खुचे नेताओं में से हैं जिनके निजी संबंध लगभग प्रत्येक पार्टी और उसके नेताओं से है। उनके जन्मदिन पर आयोजित समारोह में स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ही स्व.चंद्रशेखर भी एक साथ शामिल हुए थे। अनेक अवसरों पर श्री मोदी के साथ भी  उन्होंने मंच साझा किया। ऐसे में गत दिवस का कार्यक्रम कोई अनोखा नहीं था। लेकिन  जिस तरह उसमें जाने से श्री पवार को रोका गया वह राजनीति में घटती सौजन्यता का प्रमाण है। इंडिया नामक  गठबंधन में ऐसे अनेक दल हैं जो एक दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते। आम आदमी पार्टी और  तृणमूल कांग्रेस पार्टी का कांग्रेस से छत्तीस का आंकड़ा है किंतु फिर भी वे एक दूसरे के साथ बैठ रहे हैं। किसी नेता के यहां विवाह या शोक के अवसर पर भी  वैचारिक विरोधी नेतागण निःसंकोच पहुंचते हैं। एक दूसरे की निजी परेशानियों में भी संवेदनशीलता दिखाई जाती है। तिलक सम्मान  समारोह तो वैसे भी  एक महापुरुष की स्मृति में आयोजित होता है। ऐसे में श्री पवार को उसमें जाने  से महज इस कारण से रोकना  कि उसमें श्री मोदी  को पुरस्कृत किया जाना था , छोटी सोच है। स्मरणीय है मोदी सरकार द्वारा  स्व. मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से अलंकृत किए जाने के बाद उनके पुत्र अखिलेश यादव ने राष्ट्रपति भवन में उक्त सम्मान ग्रहण किया। जबकि वे भाजपा के घोर विरोधी हैं। ऐसा ही तब हुआ था जब स्व. पी.वी.नरसिम्हा राव की सरकार ने भी स्व. अटल जी को पद्म विभूषण प्रदान किया था।  प्रजातंत्र की खूबसूरती भी यही है कि वैचारिक विभिन्नता व्यक्तिगत शत्रुता में न बदले। उस दृष्टि से श्री पवार द्वारा  अच्छा उदाहरण पेश किया गया।  देखने में आता है कि किसी नेता की मृत्यु होने के बाद घोर विरोधी रहे नेता भी उसकी तारीफों के पुल बांधते हैं । ऐसे में जीवित अवस्था में घृणा और द्वेष रखना अटपटा लगता है। विपक्ष का प्रधानमंत्री से विरोध स्वाभाविक है। लेकिन  किसी गैर राजनीतिक आयोजन में उनके साथ मंच  साझा नहीं करने की बात नासमझी है।  देश में जबसे कांग्रेस का एकाधिकार खत्म हुआ तभी से राजनीतिक छुआछूत भी मिटती चली गई। लेकिन अब भी कुछ दलों के भीतर ये भावना विद्यमान है।  जिन लोगों ने श्री पवार को कल के आयोजन में जाने से रोका वे उसी मानसिकता से ग्रसित हैं । ऐसे में श्री पवार की प्रशंसा करनी होगी जिन्होंने अपने साथियों की मांग के विरुद्ध जाकर  खुद को लोकमान्य के अपमान के आरोप से बचा लिया। ऐसा ही तब भी हुआ था जब कांग्रेस के न चाहते हुए भी पूर्व राष्ट्रपति स्व.प्रणब मुखर्जी नागपुर में रास्वसंघ के विजयादशमी उत्सव में शामिल हुए थे। जबकि उनकी बेटी तक उनके विरोध में थी। 

- रवीन्द्र वाजपेयी 



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