Friday 11 August 2023

अपने ही प्रस्ताव के प्रति गंभीर नहीं रहा विपक्ष



लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं होगा ये तो उसे पेश करने वाले भी जानते थे। लेकिन इसका उद्देश्य सरकार को उसकी कमियां बनाते हुए विपक्ष का दृष्टिकोण देश के सामने रखना होता है। संसदीय परंपरा के अनुसार बहस के बाद सरकार का मुखिया उसका जवाब देता है और उसके बाद बहस की शुरुआत करने वाले विपक्ष के नेता द्वारा सरकार के जवाब से संतुष्ट न होते हुए एक बार फिर अपनी बात रखने के बाद मत विभाजन की मांग की जाती है। इसके जरिए विपक्ष ये स्पष्ट करने का प्रयास भी करता है कि सदन में कौन सा दल किसके साथ है। लेकिन गत दिवस प्रधानमंत्री जब सरकार की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का उत्तर दे रहे थे तब उनका भाषण पूरा होने के पूर्व ही विपक्ष उठकर चला गया जिसके बाद प्रस्ताव ध्वनि मत से ही धराशायी हो गया। दो दिन पहले राज्यसभा में जब दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति संबंधी अध्यादेश  पर मतदान हुआ तब विपक्ष ने पूरी तरह लामबंदी की थी। हालांकि कुछ विपक्षी दलों के सरकार के साथ आ जाने से उसकी उम्मीद पूरी नहीं हो सकी किंतु भविष्य की व्यूह रचना का आभास तो हो ही गया। उस लिहाज से गत दिवस लोकसभा में विपक्ष की रणनीति  बुरी तरह विफल साबित हो गई। ऐसा लगता है राज्यसभा में सरकार ने अल्पमत के बावजूद जिस तरह  से  दिल्ली संबंधी अध्यादेश पारित करवा लिया उससे कांग्रेस में हताशा आ गई । ये भी चर्चा रही कि विपक्ष के नए - नवेले गठबंधन के कुछ घटक दल अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में तटस्थ रहने वाले थे। ऐसा होने पर इंडिया नामक प्रयोग की सफलता को लेकर आशंका बढ़ने लगती। शायद यही सोचकर कांग्रेस ने बजाय मतदान करवाने के  सदन से उठकर चले जाने की नीति अपनाई किंतु ऐसा करके उसने अपने ही प्रस्ताव की गंभीरता को नष्ट कर दिया। वैसे भी प्रस्ताव की वजनदारी उस समय ही कम हो गई थी जब प्रारंभ में ही ये कह दिया गया कि उसका उद्देश्य प्रधानमंत्री को सदन में बोलने के लिए बाध्य करना था ।  ऐसे में बेहतर होता  विपक्ष उन्हें पूरे समय तक सुनता और फिर मतदान की मांग कर ये स्पष्ट करता कि वह किस हद तक एकजुट है। इस अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से भले ही विपक्ष ने अपनी जिद पूरी कर ली किंतु पूरे सत्र में वह सरकार को जिस तरह घेर सकता था , उसमें चूक गया। प्रधानमंत्री ने अपने उत्तर में  इस सत्र के दौरान पारित हुए विधेयकों का उल्लेख करते हुए विपक्ष पर आरोप लगाया कि उसने जनहित से जुड़े मुद्दों पर बहस से दूर रहकर अपने गैर जिम्मेदार होने का प्रमाण दिया। उनकी बात सही भी है क्योंकि उनके पारित होते समय यदि विपक्षी सांसद अपनी बात रखते तो वह संसद के रिकार्ड में सुरक्षित हो जाती। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि विपक्ष संसद के सत्रों का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पा रहा। भले ही उसके पास बहुमत न हो लेकिन हर विषय पर  उसे बोलने का समय तो मिलता ही है। यदि इसी  का उपयोग किया जाए तो वह सरकार को घेरने में सफल हो सकता है। लेकिन कांग्रेस की जिद के चलते बाकी विपक्षी दल भी सदन में अपनी बात सही तरीके से दर्ज नहीं करा सके। इस बारे में एक बात ध्यान रखने वाली है कि हर सांसद  सदन में अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं और आवश्यकताओं के बारे में बोलने के लिए लालायित रहता है किंतु पार्टी द्वारा बहिर्गमन किए जाने के कारण उसका वह अवसर छिन जाता है। अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए कांग्रेस ने असम के सांसद गौरव गोगोई को अवसर देकर सही कदम उठाया था क्योंकि वे पूर्वोत्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं ।  प्रधानमंत्री के भाषण के बाद श्री गोगोई उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों का समुचित जवाब दे सकते थे । लेकिन उनको पूरा सुने बिना ही विपक्ष उठकर चला गया। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि अविश्वास प्रस्ताव का सही लाभ विपक्ष नहीं ले सका। यदि वह सत्र के दौरान सदन को चलने देता तो उसे अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर मिलता ,  जो वह गंवा बैठा।  इस लोकसभा के दो सत्र ही बाकी हैं। विपक्ष को चाहिए इनका पूरा - पूरा उपयोग करते हुए सरकार को घेरने की पुख्ता रणनीति बनाए। लोकसभा में उसका बहुमत भले न हो किंतु राज्यसभा में तो वह सत्ता पक्ष को झुका सकता है किंतु सही रणनीति के अभाव में यदि वह ऐसा नहीं कर पा रहा तो इसके लिए वही कसूरवार है। पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पूर्व ही सदन छोड़ देने के लिए विपक्ष की जो आलोचना की वह पूरी तरह सही है क्योंकि प्रस्ताव उसके द्वारा लाया गया था तब उसे आखिर तक सदन में रुकना था।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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