Thursday 3 August 2023

मेवात में बढ़ते अपराधों का परिणाम है नूंह का दंगा



देश की राजधानी दिल्ली से कुछ घंटे की दूरी पर स्थित नूंह जिला हरियाणा के मेवात इलाके में स्थित है , जहां तीन चौथाई आबादी मेव मुसलमानों की है। कहा जाता है कि उनके पूर्वज राजपूत थे जिन्होंने मुस्लिम शासनकाल में  इस्लाम अपना लिया। इसीलिए लंबे समय तक वे हिंदू रीति - रिवाजों से जुड़े रहे। लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। हाल ही में वहां सांप्रदायिक दंगा होने के बाद  मेवात क्षेत्र राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गया । एक हिंदू संगठन द्वारा निकाली गई धार्मिक यात्रा पर पत्थर फेंके जाने के बाद उत्पन्न तनाव ने दंगे  का रूप ले लिया। और फिर वही सब हुआ जो ऐसे अवसरों पर होता है। मसलन गोलियां चलीं , घर , दुकानें और वाहन जलाए गए। लेकिन इस सबके बीच ये चौंकाने वाली बात हुई कि दंगाइयों की भीड़ अनेक थानों के सामने से निकलती हुई सायबर थाना पहुंची और उसे आग लगा दी । इसकी वजह ये बताई जा रही है कि उक्त थाने में इस इलाके के विभिन्न अपराधिक प्रकरणों के दस्तावेजी प्रमाण संरक्षित थे। इसलिए दंगे के बहाने उन प्रमाणों को नष्ट किए जाने का सुनियोजित प्रयास हुआ। इसमें दो मत नहीं है कि नूंह की घटना में प्रशासन और पुलिस की लापरवाही ने आग में घी का काम किया । वरना  छतों से पथराव होते ही पुलिस बल हरकत में आ जाता तब बात आगे न बढ़ती । कई घंटों तक दंगाई उत्पात मचाते रहे जिससे ये साबित हो गया कि पुलिस और प्रशासन दोनों अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहे। लेकिन घूम - फिरकर बात वहीं  आ जाती है कि किसी को भी किसी और के धार्मिक आयोजन में व्यवधान डालने या उस पर हमला करने का अधिकार कौन देता है ? जिन लोगों की पत्थर फेंकते हुए तस्वीरें सार्वजनिक हुईं वे किस समुदाय के थे ये बताने की आवश्यकता नहीं रही क्योंकि कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने का जो चलन शुरू हुआ वह इस समुदाय विशेष की राष्ट्रव्यापी पहिचान बन गया। दिल्ली में हुए दंगों के दौरान भी ये देखने मिला था। उसके बाद से हिंदुओं के धार्मिक आयोजनों पर पत्थर फेंके जाने जैसी घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों में होने लगीं। धर्म निरपेक्ष तबका ऐसे समय पर हिंदू संगठनों को तो कठघरे में खड़ा करता है किंतु क्या कभी किसी ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के पास जाकर ये समझाइश देने का साहस किया कि वे  छतों से पत्थर फेंकने जैसी हरकत बंद करवाने आगे आएं। वैसे अनेक मुस्लिम संगठन हैं जो ऐसे अवसरों पर संवेदनशील रवैया अपनाते हुए सर्वधर्म समभाव का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इसी तरह ईद के दिन ईदगाहों के बाहर बधाई देने वालों में भी हिंदुओं की संख्या रहती है किंतु इसके पीछे राजनीतिक दिखावा ज्यादा होने से जिस गंगा -जमुनी संस्कृति की बात कही जाती है वह केवल भाषणों तक ही सीमित है। हरियाणा में मुस्लिम आबादी मुख्य रूप से मेवात अंचल तक ही है। लेकिन जिस तरह से नूंह में हुए दंगे की आग पड़ोसी राजस्थान और राष्ट्रीय राजधानी से सटे गुरुग्राम ,  फरीदाबाद, पलवल तक फैली उससे ये संदेह पैदा हो गया है कि उक्त धार्मिक यात्रा पर पथराव करना किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा था। ऐसे मौकों पर होने वाली राजनीति भी समाधान की बजाय समस्याओं को और बढ़ाती है । और ये भी कि सूचनातंत्र के फैलाव के कारण एक जगह की घटना पूरे देश में चर्चित हो जाती है। नूंह के साथ भी यही हुआ। संसद का सत्र चलने के कारण भी राजनीतिक सरगर्मी और तेज हो गई। लेकिन जैसी खबरें आ रही हैं उनके अनुसार मेवात अपराधों के लिए कुख्यात हो चला है। यहां गो तस्करी और गोकशी बढ़ती जा रही है जबकि एक समय ऐसा भी था जब मेव  गाय को पवित्र मानते थे। इसके अलावा यहां सट्टे का कारोबार भी जोरों पर है। सायबर अपराधों के मामले  में तो नूंह काफी  आगे है और इसीलिए ये माना जा रहा है कि दंगे की आड़  में सायबर थाना फूंकने जैसा काम किया गया। कुल मिलाकर ये देखने में आया है कि लगभग 80 फीसदी मुस्लिम आबादी वाला यह इलाका कानून - व्यवस्था के लिए बड़ी समस्या बनता जा रहा है। वहां हुई घटना इस बात का प्रमाण है कि घनी मुस्लिम आबादी वाले इलाके अपराधियों की शरणस्थली बनते जा रहे हैं। लेकिन इस सबसे अलग हटकर देखें तो देश की राजधानी के इतने करीब इस तरह की घटना होना गंभीर स्थिति का संकेत  है। शाहीन बाग वाली ताकतें केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं रहीं अपितु पूरे देश में उनका विस्तार हो चुका है। सर्वोच्च न्यायालय ने गत दिवस ये तो कह दिया कि  धार्मिक रैलियों में दिए जाने वाले भाषणों की वीडियो रिकॉर्डिंग करवाई जाए किंतु जो भाषण चहारदीवारी के भीतर होते हैं उनकी रिकॉर्डिंग संभव नहीं है। ऐसे में जरूरी हो गया है कि दंगाइयों की पहिचान कर उन्हें इतनी कड़ी सजा मिले जिससे भविष्य में ऐसा करने से लोग बचें। आगामी वर्ष देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं । हरियाणा के पड़ोसी राजस्थान में तो कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव भी हैं। वहां भी सांप्रदायिक माहौल खराब  करने के प्रयास होते रहे हैं। केंद्र और राज्य दोनों की सरकार के लिए ये समय बेहद चुनौती भरा है क्योंकि दंगे देश की प्रगति और छवि दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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