Wednesday 9 August 2023

रोहिंग्या के आधार कार्ड बनाने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई की जाए




हरियाणा के नूंह में हिंदुओं की धार्मिक यात्रा पर दूसरे समुदाय के लोगों द्वारा किए गए पथराव के कारण  अड़ोस - पड़ोस के अनेक जिलों तक दंगों की आग फैल गई । इनमें कुछ जिले राजस्थान के भी हैं , वहीं एनसीआर का हिस्सा बन चुका गुरुग्राम अभी तक अशांत हैं । नूंह जिस मेवात अंचल का हिस्सा है  वहां लगभग 90 फीसदी आबादी मेव मुसलमानों की है। दंगों के बाद उपद्रवियों की पहिचान कर उनके विरुद्ध  कार्रवाई शुरू की गई। जिसके अंतर्गत अनेक इमारतें गिराने के साथ अवैध रूप से बनाई गई झुग्गियां हटाई गईं । इसी दौरान ये पता  लगा कि मुस्लिम बहुलता का लाभ लेकर म्यांमार से आए रोहिंग्या मुसलमानों के तकरीबन 2000 परिवार वहां बस गए जिनमें से काफी लोगों के पास आधार कार्ड भी हैं ।  अब प्रश्न ये है कि विदेश से आकर अवैध रूप से यहां बस जाने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को आधार कार्ड जैसा दस्तावेज किस तरह हासिल हुआ ? और इसका सीधा - सीधा उत्तर है भ्रष्ट व्यवस्था की मदद से । 1971 में  तत्कालीन पूर्व पाकिस्तान में गृहयुद्ध के कारण सीमा पार से बड़ी संख्या में शरणार्थी  भारत में घुस आए। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने मानवीय आधार पर उनके रहने की व्यवस्था शिविरों में की। बाद में बांग्ला देश नामक मुल्क का उदय हुआ। तब तक करोड़ों बांग्ला देशी बतौर शरणार्थी आ चुके थे । जब सीमावर्ती राज्यों में समस्या हुई तब देश के भीतरी हिस्सों में  शिविर बनाकर उनकी व्यवस्था की गई। उम्मीद थी कि स्थितियां सामान्य होते ही वे  वापस चले जायेंगे किंतु  लौटना तो दूर  उल्टे उनका आना आज तक  जारी है । इसकी वजह से न सिर्फ असम , प.बंगाल ,  बिहार और उड़ीसा अपितु पूर्वोत्तर के अनेक राज्यों में जनसंख्या असंतुलन उत्पन्न हो गया।  देश के ज्यादातर हिस्सों में बांग्ला देशी मुसलमान स्थायी तौर पर बस चुके हैं। यहां जन्म लेने के कारण उनके बच्चे तो भारत के वैधानिक नागरिक हो ही गए किंतु जो बतौर शरणार्थी आए थे उनके भी नागरिकता संबंधी दस्तावेज बन जाने से   यह समस्या लाइलाज बन गई। इसके लिए  प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के साथ राजनीतिक नेताओं  की भूमिका भी जिम्मेदार कही जायेगी । जो  पार्टियां मुस्लिम तुष्टीकरण में जुटी रहती हैं उनके लिए  बांग्ला देशी शरणार्थी  वोट बैंक बन गए। परिणामस्वरूप अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में वे ही जीत - हार तय करने की स्थिति में हैं।  जब भारत सरकार ने नागरिक रजिस्टर बनाने की मुहिम शुरू की और नागरिकता संशोधन कानून लागू करना चाहा तब देश के ज्यादातर राजनीतिक दल उसके विरोध में खड़े हो गए। दिल्ली दंगा और शाहीन बाग जैसा प्रयोग उसी से जुड़ा हुआ था। समय बीतने के साथ बांग्ला देश से आए शरणार्थियों को वापस भेजने की बात तो दूर,  म्यांमार (बर्मा) से रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ शुरू हो गई जो  धीरे - धीरे देश के अन्य हिस्सों से होते हुए  जम्मू - कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य तक जा पहुंचे। अपराधिक गतिविधियों के कारण  जब इनका विरोध शुरू हुआ तब जो तबका बांग्ला देशी मुस्लिमों को गोद में बिठाए रखने की वकालत करता रहा वही रोहिंग्या की तरफदारी में खड़ा हो गया । गौरतलब है  रोहिंग्या  को  म्यांमार सरकार ने बांग्ला देशी मानकर अपने देश से निकाल फेंका ,  वहीं बांग्ला देश भी उनको स्वीकार करने राजी नहीं। अपराधिक मानसिकता  के कारण वे बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं । यहां तक जानकारी  मिलने लगी है कि उनके संबंध आतंकवादी संगठनों से हैं। नूंह के दंगों से  ये बात साबित भी हो गई कि उनकी मौजूदगी देश की आंतरिक शांति और सुरक्षा के लिए स्थायी खतरा है। ऐसे में पता लगाने  वाली बात ये है कि प्रशासन में बैठे वे कौन लोग हैं जो चंद रुपयों की लालच में देश हित का सौदा कर लेते हैं? इसलिए ये जरूरी है कि राजनीतिक आरोप - प्रत्यारोपों से ऊपर उठकर  ऐसे मामलों में सख्ती बरती जाए। नूंह दंगों की जो जांच हो रही है उसमें इस बात को भी जोड़ा जाए कि मेव मुसलमानों के साथ बस गए विदेश से आए रोहिंग्या मुसलमान आधार कार्ड जैसा दस्तावेज बनवाने में किस तरह कामयाब हो गए। देश की राजधानी से बेहद निकट किसी इलाके में यदि घुसपैठियों को आबाद होने में इतनी छूट है तब बाकी क्षेत्रों के बारे में क्या कहा जाए ,  ये विचारणीय प्रश्न है। बिहार से भी ऐसी खबरें आने लगी हैं । देश में अवैध रूप से आए विदेशी नागरिकों को सरकारी दस्तावेज प्रदान कर नागरिक होने का प्रमाणपत्र देने वाली सरकारी मशीनरी पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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