Tuesday 15 August 2023

देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखें



आज देश स्वाधीनता की वर्षगांठ मना रहा है। राजधानी दिल्ली से लेकर सुदूर क्षेत्रों तक में उत्सव का माहौल है। सब्जी के ठेले और रिक्शे तक पर लगे तिरंगे को देखकर देशवासियों के मन में इस राष्ट्रीय पर्व के प्रति लगाव परिलक्षित होता है। इसमें दो मत नहीं है कि बीते 76 वर्ष के कालखंड में अनेकानेक समस्याओं से जूझते हुए भी देश आगे बढ़ा है। हालांकि ये भी उतना ही सच है कि इस दौरान जितना हमें हासिल कर लेना चाहिए था उतना नहीं हो सका , जिसका प्रमुख कारण हमारी राजनीतिक व्यवस्था का सत्ता केंद्रित होकर रह जाना है । यद्यपि राजनीति के क्षेत्र में कार्य करने वाला छोटा कार्यकर्ता  हो या नेता , सभी की इच्छा सत्ता सुख प्राप्त करने की होती है । जो राजनीतिक दल वैचारिक आधार पर राजनीति करते हैं वे भी किसी न किसी तरह सत्ता प्राप्ति में लगे रहते हैं । लेकिन इस सोच का दुष्परिणाम ये हुआ कि राजनीतिक दलों की पूरी कार्यप्रणाली देश हित की बजाय किसी न किसी तरह से सरकार बना लेने पर आकर केंद्रित हो गई। आजादी के बाद जब कांग्रेस को देश की बागडोर मिली तब उसके लिए चुनौतीविहीन  स्थिति थी। पंडित  नेहरू का कद आसमान छूता था। उनकी गलतियों को जनता नजरंदाज कर देती थी। आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करने की जो पुण्यायी कांग्रेस के पास थी उसकी बदौलत वह पहला , दूसरा और तीसरा आम चुनाव आसानी से जीत गई। उस दौरान देश का विकास भी हुआ । लेकिन नेहरू जी स्वप्नदृष्टा तो बहुत अच्छे थे किंतु सपनों को साकार करने की उनकी प्रतिबद्धता उस लिहाज से कमतर होने से वे अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर सके। देश को पंचवर्षीय योजनाओं के जरिए विकास की राह पर ले जाने में उनका योगदान निश्चित तौर पर यादगार है किंतु पहले पाकिस्तान द्वारा कश्मीर का बड़ा हिस्सा हड़प लेने और फिर चीन द्वारा 1962 में हजारों वर्ग किमी भूमि पर कब्जा कर लेने के कारण वे एक कमजोर प्रधानमंत्री साबित होने लगे। ये कहना गलत न होगा कि 1964 में उनकी मृत्यु न हुई होती तो 1967 में वे कांग्रेस को चुनाव न जिता पाते। यद्यपि उन्होंने भारत को विश्व बिरादरी में पहिचान तो दिलाई किंतु उनका जरूरत से ज्यादा आदर्शवाद देश के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। और फिर  लोकतांत्रिक छवि के बावजूद वे अपनी पारिवारिक श्रेष्ठता का मोह न छोड़ सके और बेटी इंदिरा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनवाने के बाद उनकी जिद पर केरल की नंबूदरीपाद सरकार को बेवजह भंग करवा दिया , जो कि दुनिया की पहली चुनी हुई साम्यवादी सरकार थी। बावजूद इसके कि नेहरू जी सोवियत संघ और चीन की  साम्यवादी शासन व्यवस्था से बेहद प्रेरित और प्रभावित थे। इंदिरा जी को कांग्रेस में स्थापित करने का जो कार्य उन्होंने किया उसने देश में परिवारवाद की नींव रख दी जो कालांतर में बढ़ते - बढ़ते भारतीय राजनीति की पहिचान बन गया । और यही कारण है कि राजनेताओं का पूरा चिंतन सामंतवादी होकर रह गया । देश और जनता की बेहतरी के बजाय अपने परिवार के उत्थान की चिंता ने राजनीति को ऐसे  रास्ते पर धकेल दिया जो केवल और केवल स्वार्थ सिद्धि की ओर ले जाता है। आज स्वाधीनता दिवस पर देश की मौजूदा स्थिति पर नजर डालने पर ये महसूस होता है कि राजनीति के क्षेत्र में जिस तरह से सामंतवाद अपने पैर जमाता दिख रहा है उसके कारण अब बात देश और जनता की बजाय उन चंद नेताओं के मान - अपमान पर आकर सिमट जाती है जो खुद को इस देश का मालिक समझ बैठे हैं। इनको न कानून का ख्याल है और न ही लोकतांत्रिक मर्यादाओं का । आजादी के बाद देश में मौजूद 500 से अधिक रियासतों का भले विलय हो गया किंतु राजनीतिक दलों के जरिए जिस नव सामंतवाद ने समूचे परिदृश्य पर आधिपत्य कर लिया वह ज्यादा खतरनाक है। कुछ महीनों के बाद देश में लोकसभा चुनाव होंगे। विभिन्न राजनीतिक दल उसके लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं। मोर्चेबंदी के तहत गठबंधनों को शक्ल दी जा रही है । लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि चुनाव जीतने के लिए देश की छवि धूमिल करने का प्रयास संसद से सड़क तक किया जा रहा है। 21 वीं सदी के प्रारंभिक दो दशकों में भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है । इसके लिए किसी एक नेता या राजनीतिक दल को श्रेय भले न दें किंतु देश ने जो हासिल किया है उस पर गौरव करना तो अपेक्षित है ही। देश में रहकर अच्छी शिक्षा हासिल करने के बाद ये कहकर विदेश चले जाना कि यहां रखा ही क्या है , एक तरह की एहसान फरामोशी ही है। इसी तरह जब  दुनिया की बड़ी कंपनियां भारत में कारोबार करने आकर्षित हो रही हों तब कुछ धनकुबेरों के देश छोड़कर अन्यत्र बस जाने पर भविष्य का  निराशाजनक चित्र प्रस्तुत करना भी बेहद गैर जिम्मेदाराना कृत्य है। आजादी की वर्षगांठ पर सोशल मीडिया के करिए केवल शुभकामनाएं और बधाई देने - लेने के कर्मकांड से ऊपर उठकर हमें देश के बारे में सकारात्मक सोच का प्रसार करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होना चाहिए ।  जब हम भारत को मां मानते हैं तब  उसी रूप में उसे सम्मान भी देना चाहिए। आज का अवसर केवल उत्सव तक सीमित नहीं है। देश जिस मोड़ पर है उसमें हर नागरिक को अपने दायित्व के प्रति गंभीर होना पड़ेगा। यदि विकास की दौड़ में हम किसी भी क्षेत्र में पीछे हैं तो इसके लिए कुछ जिम्मेदारी हमारी भी है।  अधिकारों के प्रति जागरूकता अच्छी बात है किंतु कर्तव्य बोध उससे अधिक महत्वपूर्ण है। आज चुनाव जीतने के लिए जिस प्रकार खैरात बांटी जाती है उसके लिए बतौर मतदाता हमारी लालची प्रवृत्ति ही जिम्मेदार है। यदि सब कुछ ठीक  - ठाक चला तब कुछ दिनों के बाद ही हमारा यान चंद्रमा पर उतर जावेगा। ये भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी दक्षता का प्रमाण होगा । इसके अलावा भी देश में ऐसा बहुत कुछ है जिससे हमारा हौसला बुलंद होता है। आज के दिन ये संकल्प लें कि हम देश के प्रति नकारात्मक सोच को पूर्णतः तिलांजलि दे देंगे। और अपनी संतानों को भी ऐसी ही सोच रखने के लिए प्रेरित करेंगे। देश की उपलब्धियों पर हम सबका हक है तो उसकी कमियों को दूर करने की  जिम्मेदारी भी हमें उठाना होगी , इस भाव के साथ कि :-
देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखें।

स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक बधाई।

- रवीन्द्र वाजपेयी 



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