Saturday 9 September 2023

जी - 20 : वैश्विक नेतृत्व की ओर भारत के बढ़ते कदम



दिल्ली में जी - 20 का सम्मेलन प्रारंभ हो गया। इसमें अमेरिका , फ्रांस , ब्रिटेन ,इटली , बांग्लादेश, जापान , दक्षिण कोरिया , ऑस्ट्रेलिया , ब्राजील ,जर्मनी , मॉरीशस , सिंगापुर , यूरोपियन यूनियन , स्पेन , चीन , अर्जेंटीना आदि के राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति या प्रधानमंत्री शिरकत कर रहे हैं। संरासंघ के बाद ये सबसे बड़ा वैश्विक संगठन है जिसमें बड़ी आर्थिक और सामरिक शक्तियों के साथ ही विकासशील देश भी शामिल हैं । भूमंडलीकरण और उदार अर्थव्यवस्था के चलन में आने के बाद से शीतयुद्ध की बजाय अब आपसी सहयोग से आर्थिक विकास की सोच ने जन्म ले लिया। यही वजह है कि अमेरिका , रूस , चीन जैसे परस्पर विरोधी मानसिकता के देश भी जी - 20 में शामिल हैं।  भारत में इस सम्मेलन की तैयारियां उसी समय से शुरू हो गईं थीं जब उसे इसकी अध्यक्षता का दायित्व प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी आयोजन में भव्यता के साथ उसे  प्रबंधन कौशल का उदाहरण बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। इसीलिए बीते काफी महीनों से देश के विभिन्न राज्यों में जी - 20 की तैयारियों संबंधी बैठकें आयोजित की गईं । इसका लाभ ये हुआ कि उन राज्यों में पर्यटन एवं विदेशी पूंजी निवेश की संभावनाएं उत्पन्न हुईं। श्रीनगर में जी - 20 की बैठक का आयोजन चीन और पाकिस्तान को ये संदेश देने के लिए किया गया कि जम्मू - कश्मीर , भारत का अविभाज्य अंग है और इस बारे में किसी शक की गुंजाइश न रहे। भारत का ये दांव कारगर रहा और चीन तथा पाकिस्तान  दोनों ने उस कदम का विरोध किया। दिल्ली में बने कन्वेंशन सेंटर को देखकर जी - 20 में शामिल अनेक देश ये देखकर चिंतित हो उठे कि वे इतना  शानदार और सुव्यवस्थित आयोजन शायद ही कर पाएं। बहरहाल आर्थिक , पर्यावरण , स्वास्थ्य , शिक्षा  , अंतरिक्ष , भुखमरी , आवास जैसी वैश्विक समस्याओं पर एक समन्वित दृष्टिकोण विकसित करने में जी - 20 एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है। हालांकि यूक्रेन संकट के कारण रूस के राष्ट्रपति पुतिन और हाल ही में जारी नक्शे में अरुणाचल को अपना हिस्सा बताए जाने पर भारत के विरोध की वजह से चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग नई दिल्ली नहीं आए किंतु बाकी महाशक्तियों का शीर्ष नेतृत्व जिस संख्या में इस सम्मेलन में  शामिल हो रहा है वह इस संगठन के महत्व के साथ वैश्विक मंचों पर भारत की बढ़ती हैसियत और अहमियत का प्रमाण है। इस सम्मेलन के जरिए  विश्व भर के नेताओं को भारत की प्रगति और क्षमता से परिचित करवाने में सफलता मिली है। यह आयोजन संरासंघ की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन जुटाने में सहायक बनेगा। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस मुहिम से सहमति दिखाकर ये संकेत दे दिया है कि उसके समर्थक अन्य देश भी भारत के साथ खड़े होंगे। चीन के राष्ट्रपति राष्ट्रपति जिनपिंग ने दिल्ली न आकर अपना ही कूटनीतिक नुकसान किया है । जिस सम्मेलन में अमेरिका , फ्रांस , ब्रिटेन और जापान के राष्ट्रप्रमुख शामिल हों उससे दूरी बनाने का जिनपिंग का निर्णय उनके मन में आए अपराधबोध का संकेत है। बहरहाल सम्मेलन में लिए गए निर्णयों और प्रस्तावों की जानकारी तो बाद में मिलेगी किंतु इसके माध्यम से प्रधानमंत्री ने भारत की जो मार्केटिंग की है उसके सकारात्मक परिणाम आने शुरू हो गए हैं। विशेष रूप से अमेरिका के साथ विभिन्न क्षेत्रों में जिस प्रकार के समझौते , अनुबंध और सौदे हो रहे हैं उनसे काफी उम्मीदें हैं। फ्रांस, ब्रिटेन और जापान के अलावा कोरिया आदि के साथ  भारत के आर्थिक कारोबार को भी  इस सम्मेलन से  नई दिशा मिलेगी। सबसे बड़ी बात ये है कि दुनिया भर के राष्ट्रप्रमुख इस सम्मेलन के दौरान भारत की आयोजन क्षमता , आर्थिक प्रगति और प्रबंधन कौशल का तो प्रत्यक्ष दर्शन करेंगे ही उसके साथ  ही देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं विविधता से भी परिचित होंगे। देश में आधारभूत ढांचे में आए सुधार के कारण विदेशी निवेश की संभावनाएं जिस तरह बढ़ी हैं उसे देखते हुए इस सम्मेलन से काफी उम्मीदें हैं। भारत की मजबूत संसदीय प्रणाली , सशक्त न्यायपालिका और विज्ञान के क्षेत्र में  विश्व स्तर की सफलताओं से इस समय पूरी दुनिया प्रभावित है। अन्यथा अमेरिका , फ्रांस ,  ब्रिटेन और जापान के राष्ट्रप्रमुख जी - 20 सम्मेलन में स्वयं नहीं आते।  पाकिस्तान के लिए भी ये सम्मेलन बेहद पीड़ादायक है। जो पश्चिमी ताकतें लंबे समय तक उसे पालती - पोसती रहीं वे अब भारत के बढ़ते आभामंडल से प्रभावित हैं। कुल मिलाकर ये सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब दुनिया कोरोना महामारी से उबरकर एक नई वैश्विक व्यवस्था के सृजन में लगी हुई है। भारत इसका  नेतृत्व करने की दिशा में आगे बढ़ा है इससे हर भारतवासी को आत्मगौरव की अनुभूति हो रही है।


- रवीन्द्र वाजपेयी 


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