Tuesday 26 September 2023

पंजाब के सिखों को खालिस्तान विरोधी आवाज उठाना चाहिए




कैनेडा से आ रही खबरें इस बात का संकेत हैं कि भारत विरोधी ताकतें एक बार फिर सिर उठाने की कोशिश कर रही हैं। वहां सक्रिय अनेक सिख संगठनों द्वारा खालिस्तान की मांग जिस तरह उछाली जा रही है वह निश्चित रूप से भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक किसी देश की अखंडता के विरुद्ध षडयंत्र हेतु अपनी धरती का उपयोग करने देना अपराध  माना जाता है। और फिर कैनेडा जी - 20 के अलावा राष्ट्रमंडल का भी सदस्य है। भारत के साथ उसके रिश्ते सामान्य से बेहतर ही रहे  हैं जिसका प्रमाण वहां बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लाखों लोगों का स्थायी रूप से बसना है। इसमें सिखों की संख्या आधी है जो कि नौकरी के अलावा कृषि , जमीन - जायजाद के कारोबार और व्यवसाय से जुड़े हैं। चूंकि वे संगठित हैं इसलिए उनकी अहमियत वोट बैंक के तौर पर बनती गई और यही खालिस्तान की मांग करने वालों के लिए सहायक बनी। यद्यपि ये स्थिति बीते अनेक दशकों से बनी हुई है किंतु हाल ही के कुछ सालों में कैनेडा के गुरुद्वारों पर खालिस्तान के बैनर , पोस्टर आदि जिस बड़ी संख्या में लगाए गए उससे ये लगता है मानो वहां रह रहे सभी सिख खालिस्तान के समर्थक हों। हालांकि जिम्मेदार सूत्रों के अनुसार जिस प्रकार नब्बे के दशक में  पंजाब में चले खालिस्तानी उग्रवाद के कारण आम सिख भय के कारण विरोध नहीं कर सके , ठीक वही हालत आज कैनेडा के सिखों की है। वे इस बात को समझते हैं कि भारत विरोधी ताकतों से नियंत्रित चंद सिख कैनेडा में बैठे - बैठे खालिस्तान बनवा लेंगे ये संभव नहीं है किंतु असुरक्षा के भय से वे शांत हैं। जो खबरें आ रही हैं उनके अनुसार प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो चुनावी लाभ के लिए खालिस्तानियों का तुष्टीकरण कर रहे हैं किंतु इसका असर ये हुआ कि वे कैनेडा में बसे गैर सिखों का समर्थन खो बैठे । इस बारे में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनाक की तारीफ करनी होगी जो भारत सरकार द्वारा सौंपी गई सिख उग्रवादियों की सूची के आधार पर कार्रवाई कर रहे हैं । जी - 20 सम्मेलन के फौरन बाद कैनेडा के प्रधानमंत्री ने जिस तरह से  भारत विरोधी रुख दिखाया वह शत्रुतापूर्ण ही कहा जांवेगा और इसीलिए भारत सरकार ने भी उसी शैली में जवाब देकर कैनेडा सरकार के साथ ही वहां कार्यरत खालिस्तानी संगठनों को भी ये संदेश दे दिया कि उनकी हरकतें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। कैनेडा से आने वालों के वीसा पर रोक लगाकर भारत सरकार ने जो दांव चला उसकी वजह से कैनेडा में बसे भारतीय मूल के लोगों में खालिस्तानियों के विरुद्ध गुस्सा फूटने लगा। इसके अलावा पंजाब के उन परिवारों की चिंता भी बढ़ गई जो अपने बच्चों को कैनेडा भेजने की तैयारी कर रहे थे। ये बात सर्वविदित है कि बीते कुछ सालों से भारत से हजारों लोग प्रतिवर्ष शिक्षा और रोजगार हेतु कैनेडा जाने लगे हैं और उनमें से ज्यादातर की मंशा वहीं बस जाने की रहती है। लेकिन खालिस्तानी संगठनों की हरकतों से उनकी योजना खटाई में पड़ रही है। पंजाब में हजारों परिवार ऐसे भी हैं जिनकी आर्थिक स्थिति कैनेडा में कार्यरत उनके परिजन द्वारा भेजे जाने वाले डालरों पर निर्भर है। ऐसे में भारत विरोधी खालिस्तानियों के कारण इसमें बाधा आ सकती है। पंजाब में खालिस्तान का समर्थन करने वाले अब उंगलियों पर गिनने लायक रह गए हैं । भारत में रह रहे सिखों को ये बात समझ आ चुकी है कि खालिस्तान की मांग पाकिस्तान प्रवर्तित शरारत है जिसे कैनेडा के प्रधानमंत्री अपने राजनीतिक  स्वार्थवश हवा दे रहे हैं । तीस साल पुरानी दर्दनाक यादें आज भी सिखों के मन में हैं जब लंबे समय तक पंजाब आग में जलता रहा। उल्लेखनीय है खालिस्तानी उग्रवाद के खात्मे के बाद पंजाब के सिख मतदाताओं ने राष्ट्रवादी मानसिकता का खुलकर प्रदर्शन किया जिससे कि  वहां शांति कायम हुई । 2 साल पहले किसान आंदोलन की आड़ में जरूर खालिस्तानी तत्व सामने आए लेकिन उसके बाद कुछ छुटपुट घटनाओं के अलावा वे पंजाब में ज्यादा कुछ न कर सके। एक - दो सिखों ने  भिंडरावाले बनने की जुर्रत की तो केंद्र सरकार ने कड़े एकदम उठाकर उनके हौसले पस्त कर दिए। ऐसे में पंजाब के सिखों को चाहिए वे खुलकर कैनेडा के खालिस्तानियों के विरुद्ध आवाज उठाते हुए कहें कि वे पूरी दुनिया में सिखों की छवि धूमिल करने का अपराध कर रहे हैं। उल्लेखनीय है सिख समुदाय कैनेडा के अलावा भी दुनिया भर में बसा हुआ है। अपनी मेहनत से उसने वहां न सिर्फ संपन्नता अपितु सम्मान भी अर्जित कर लिया। ऐसे में यदि कैनेडा में रह रहे खालिस्तानी अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तो अन्य देशों में रहने वाले सिखों पर भी संदेह के बादल मंडराने लगेंगे और इसका सबसे अधिक नुकसान पंजाब को होगा। इसलिए समय की मांग है कि सिख पंथ जैसे सेवाभावी और समर्पित समुदाय को कलंकित होने से बचाने पंजाब के सिख संगठनों विशेष रूप से गुरुद्वारों से खालिस्तान विरोधी आवाज उठे जिससे कैनेडा और ब्रिटेन में सिर उठा रहे सिख उग्रवादियों का हौसला कमजोर पड़े। उनको ये एहसास करवाना जरूरी है कि जिस कथित खालिस्तान की मुहिम वे चला रहे हैं  उसकी भारत के सिखों को जरूरत नहीं है और जिस भारत की आजादी के लिए उनकी कौम ने सबसे ज्यादा बलिदान दिए , उसका एक और विभाजन वे नहीं होने देंगे क्योंकि 1947 में हुई त्रासदी की दर्दनाक यादें अभी तक पंजाब के लोगों के मन में ताजा हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी 

 

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