Monday 11 September 2023

जी - 20 के सफल आयोजन से विश्व बिरादरी में भारत की साख और धाक बढ़ी


जी - 20 सम्मेलन जिस भव्यता  के साथ  संपन्न हुआ उससे पूरी दुनिया में भारत की प्रबंधन क्षमता के साथ ही कूटनीतिक कौशल का डंका बज उठा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते एक साल में इस आयोजन  के लिए जिस तरह की तैयारी की उसका सुफल इस सम्मेलन की अभूतपूर्व सफलता के तौर पर देखने मिला। इसे अब तक का सबसे सफल जी - 20 सम्मेलन माना गया जो कि पूरी तरह से सही है। भारत की आंचलिक विविधता के साथ ही सांस्कृतिक विरासत को जिस प्रभावशाली ढंग से विदेशी मेहमानों के समक्ष पेश किया गया उससे इस सम्मेलन की खूबसूरती और बढ़ गई। राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि के समक्ष 20 राष्ट्रप्रमुखों का एक साथ श्रृद्धावनत खड़े होने का दृश्य भारतीय चिंतन के प्रति वैश्विक स्वीकृति का प्रमाण कहा जा सकता है। विकसित और विकासशील देशों के  प्रतिनिधियों के अलावा अनेक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संगठनों के जो प्रमुख इस सम्मेलन के दौरान दिल्ली में उपस्थित रहे वे सब भी बदले हुए भारत को देखकर अभिभूत हो उठे। लेकिन दिखावटी चीजों से हटकर यदि कामकाजी बातों की कल्पना करें तो यह सम्मेलन भारत के आर्थिक ,  सामरिक और कूटनीतिक हितों की दृष्टि से बेहद उपयोगी साबित हुआ। विशेष रूप से मध्य पूर्व  से होते हुए यूरोप तथा अमेरिका तक के जिस कारीडोर के प्रस्ताव को इस सम्मेलन में अंतिम रूप दिया गया वह प्रधानमंत्री  श्री मोदी की बड़ी सफलता है क्योंकि इसके कारण चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के  वन बेल्ट वन रोड नामक प्रकल्प की बची खुची हवा भी निकल गई। जिस तरह से इस परियोजना से एक के बाद एक देश हाथ खींचते जा रहे हैं उससे जिनपिंग की चमक और धमक दोनों में कमी आई है। यहां तक कि उसके पिट्ठू पाकिस्तान तक में उसका विरोध होने लगा। अनेक देशों ने वन बेल्ट वन रोड से अपने हाथ खींचकर प्राचीन सिल्क रूट को पुनर्जीवित करने की  चीन की योजना को पलीता लगा दिया है। इसके जरिए चीन अपने व्यापार को यूरोप तक फैलाने आतुर था। भारत भी इससे चिंतित था इसलिए श्री मोदी ने जी - 20 देशों के साथ इस नए कारीडोर के  प्रस्ताव को स्वीकृति दिलवाकर भारत के लिए विदेशी व्यापार की स्वर्णिम संभावनाओं को जन्म दे दिया है। चीन की जो प्रतिक्रिया इस सम्मेलन के बारे में आई है उससे इस कारीडोर की अहमियत  स्पष्ट हो जाती है। इसी तरह अफ्रीका  यूनियन को जी - 20 का सदस्य बनवाने में भी प्रधानमंत्री ने उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन किया। इस सम्मेलन की सबसे खास बात ये रही कि भले ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग नई दिल्ली नहीं आए किंतु साझा घोषणापत्र पर जिस तरह सर्वसम्मति बनी वह भारतीय कूटनीति का ही कमाल कहा जायेगा । इसी तरह यूक्रेन के मामले में भी जिस तरह का संयमित रवैया प्रदर्शित किया गया वह  सम्मेलन में शामिल सदस्यों की परिपक्वता का प्रमाण बन गया । कुल मिलाकर यह सम्मेलन वैश्विक सामंजस्य के अतिरिक्त भारत की दृष्टि से भी बेहद कारगर रहा। सबसे बड़ी बात ये रही कि शीतयुद्ध की काली छाया से आयोजन  पूरी तरह मुक्त रहा । इसीलिए जितने भी प्रस्ताव पारित हुए या निर्णय लिए गए उन पर सकारात्मक माहौल में सार्थक चर्चा हो सकी। उस दृष्टि से ये अच्छा हुआ कि राष्ट्रपति द्वय पुतिन और जिनपिंग दोनों नई दिल्ली नहीं आए क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन के साथ  इनकी उपस्थिति में यूक्रेन और प्रस्तावित नए कारीडोर को लेकर विवाद हो सकता था जिससे सम्मेलन में गुटबाजी के अलावा माहौल खराब होता। हालांकि सम्मेलन में छोटे बड़े देशों के अनेक नेता शामिल हुए किंतु भारत केंद्र बिंदु बना रहा । प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस दौरान लगभग सभी नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर बातचीत करते हुए भारत के हित में जो समझौते किए वे इस सम्मेलन की अघोषित उपलब्धि हैं। सम्मेलन में शामिल हुए राष्ट्रप्रमुखों द्वारा आयोजन की  प्रशंसा किया जाना तो स्वाभाविक है किंतु दुनिया भर के समाचार माध्यमों , कूटनीतिक विश्लेषकों और वित्तीय संस्थानों ने  सम्मेलन की सफलता के लिए जिस तरह से भारत और श्री मोदी की तारीफ की वह बेहद उत्साहवर्धक है। आयोजन के पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए निमंत्रण में भारत लिखे जाने पर हुए विवाद के कारण लग रहा था कि इस दौरान कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न हो सकती है किंतु सभी राजनीतिक दलों ने बेहद सुलझा हुआ दृष्टिकोण प्रदर्शित किया । इस आयोजन के बाद भारत का कद विश्व बिरादरी में और ऊंचा हुआ है जिसके कारण चीन और पाकिस्तान का चिंतित होना स्वाभाविक है।


- रवीन्द्र वाजपेयी

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