Friday 15 September 2023

लोकतंत्र के मंदिरों को अपराधियों से मुक्त रखने आगे आएं राजनीतिक दल



संसद और विधानसभा भवन केवल ईंट और पत्थरों से बने ढांचे नहीं अपितु लोकतंत्र के  मंदिर हैं जिनकी पवित्रता बनाए रखना सभी का कर्तव्य है। और फिर जिन लोगों को सांसद और विधायक बनाकर जनता उनमें बिठाती है , उनकी छवि बेदाग होना और भी जरूरी है। जिस तरह मंदिर या अन्य  धर्मस्थल पर अपवित्र स्थिति में प्रवेश धर्मविरुद्ध है ठीक वैसे ही संसद और विधानसभा में  ऐसे व्यक्ति के बैठने से उसकी गरिमा नष्ट होते है जिसका दामन  दागदार हो। लंबे समय से ये मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श का विषय बना हुआ है कि लोकतंत्र के मंदिरों में ऐसे जनप्रतिनिधियों का प्रवेश वर्जित हो जो अपराधी प्रवृत्ति के और सजायाफ्ता  हों। वर्तमान प्रावधान के अनुसार दो वर्ष या उससे अधिक की सजा होते ही सदस्यता समाप्त हो जाती है और सजा पूरी होने के बाद भी छह वर्ष तक चुनाव लड़ने पर रोक रहती है। ऐसे में दागी व्यक्ति जनता के समर्थन से फिर सांसद, विधायक और मंत्री बन सकता है। इस विसंगति के विरुद्ध न्यायपालिका और चुनाव आयोग के साथ ही समाज के जागरूक तबके में जनमत तैयार हो रहा है। इसी सिलसिले में गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक याचिका के सिलसिले में नियुक्त न्याय मित्र विजय हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट सौंपकर सुझाव दिया कि सजा पूरी होने के बाद चुनाव लड़ने पर छह साल के बजाय आजीवन प्रतिबंध होना चाहिए। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की भी यही मांग  है। यद्यपि ये कुछ अर्थों में अव्यवहारिक भी लगती है। मसलन , कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि के आरोप में अदालत द्वारा 2 वर्ष की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी सांसदी रद्द कर दी गई। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने  स्थगन तो दे दिया  किंतु  सजा बहाल रही और वे जेल गए तब आठ साल तक वे चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। और कहीं संदर्भित याचिका मंजूर हो गई तब तो आजीवन चुनाव लड़ने से वंचित हो जायेंगे। जो उनके अपराध की गंभीरता देखते हुए ज्यादा लगता है। वहीं दूसरी तरफ ये भी सही है कि हत्या , महिलाओं पर अत्याचार , भ्रष्टाचार जैसे मामलों में  सजा पूरी करने के बाद सांसद या विधायक बनकर सत्ता का हिस्सा बनने के बाद वे कानून बदलवाने का प्रयास कर सकते हैं। अनेक मामलों में ऐसा हो भी चुका है  और ऐसे निर्णयों को सर्वदलीय स्वीकृति भी प्राप्त हुई। मौजूदा सांसदों और विधायकों में औसतन 42 फीसदी पर आपराधिक प्रकरण चल रहे हैं। इनमें से ज्यादातर पांच वर्ष से भी ज्यादा अवधि से अदालतों में लंबित हैं। यद्यपि जनप्रतिनिधियों पर चल रहे अपराधिक प्रकरणों हेतु विशेष न्यायालय बनाए गए हैं जिससे निराकरण जल्द हो सके किंतु अदालती व्यवस्था में व्याप्त पेचीदगियों के चलते ऐसा हो नहीं पा रहा। बहरहाल जहां तक सवाल दागी होने का है तो ये मामला वैधानिक से ज्यादा नैतिकता से जुड़ा हुआ है। भले ही आरोपी होने मात्र से किसी का अपराध साबित नहीं हो जाता और ये भी सही है कि राजनीतिक वैमनस्यता के चलते  झूठे  आरोप लगाकर छवि खराब करने का कुचक्र भी रचा जाता है । बावजूद इसके राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे चुनाव मैदान में उतारे जाने वाले व्यक्ति की अपराधिक पृष्ठभूमि की अच्छी तरह जांच कर लें। अनेक राजनेताओं के साथ बाहुबली  शब्द जुड़ा होता है जिनकी कोई विचारधारा नहीं होती। ये किसी भी दल से लड़ें इनकी जीत सुनिश्चित होती है। यहां तक कि जेल में रहते हुए भी जनता इन्हें जिता देती है। इससे भी बढ़कर बात ये है कि अपने प्रभावक्षेत्र में ये अपने समर्थक को भी सांसद - विधायक बनवाने की हैसियत रखते हैं। चूंकि राजनीतिक दलों के सामने अपना संख्याबल बढ़ाना ही एकमात्र लक्ष्य रह गया है इसलिए वे उम्मीदवारों  का चयन करते समय चुनाव जीतने की क्षमता पर जोर देते हैं। यदि कोई अपराधी प्रवृत्ति  या दागदार छवि का व्यक्ति निर्दलीय लड़कर सांसद और विधायक बन जाए तो निश्चित तौर पर जनता को दोष दिया जा सकता है किंतु जब राष्ट्रीय पार्टियां ही बाहुबली और अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों को टिकिट देती हैं तब ज्यादा दोष उनका माना जाना चाहिए । ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा किए बिना राजनीतिक दलों को चाहिए वे दागी उम्मीदवार बनाने से परहेज करें जो पार्टी के साथ ही  लोकतांत्रिक  प्रणाली के प्रति भी जनता के मन में वितृष्णा उत्पन्न करते हैं। आगामी सप्ताह देश की नई संसद में कार्य शुरू होने जा रहा है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि क्या नया भवन बनने मात्र से राजनीति में आई गंदगी दूर हो जाएगी? बेहतर हो  राजनीतिक पार्टियां सामूहिक तौर पर  अपराधी तत्वों से लोकतंत्र को मुक्त रखने का साहस दिखाएं । चुनाव सुधारों पर होने वाली अंतहीन चर्चाओं के बीच यदि दागदार चेहरों से संसद और विधानसभाओं को बचाने की ईमानदारी दिखाई जाए तो भारतीय लोकतंत्र एक नए रूप में सामने आ जाएगा और समाज का वह सुशिक्षित वर्ग भी चुनावी राजनीति में कूदने को तैयार हो जाएगा जो दागी नेताओं के कारण  दूर बना रहता है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 

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