Tuesday 12 September 2023

काश , थरूर और मनमोहन सिंह जैसी समझदारी बाकी भी दिखाते


कांग्रेस सांसद शशि थरूर  अक्सर चर्चाओं में रहते हैं। लेखक होने के साथ ही वे अच्छे वक्ता भी हैं और वैश्विक दृष्टिकोण रखते हैं जिसका कारण संरासंघ में कार्य  का उनका अनुभव है। विभिन्न विषयों पर उनकी टिप्पणियां  राजनीतिक प्रतिबद्धता से अलग होने के कारण उन्हें विवादित भी बना देती हैं। कांग्रेस में  नेतृत्व परिवर्तन की मुहिम चलाने  वाले जी - 23 समूह के  सदस्य रहे श्री थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा किंतु गांधी परिवार का सहयोग नहीं मिलने के कारण मल्लिकार्जुन खरगे से  बुरी तरह हार गए।  लेकिन श्री थरूर अभी भी मुखर हैं और उनके कुछ बयान पार्टी की रीति - नीति से भिन्न भी होते हैं।  विदेश नीति पर वे मोदी सरकार की जो तारीफ करते हैं उससे उनके भाजपा में जाने के कयास भी लगते हैं । हालांकि  बाकी मसलों पर वे आलोचना करने में पीछे नहीं रहते। इसका ताजा उदाहरण है , जी - 20 सम्मेलन में जारी सर्वसम्मत साझा बयान को  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की  कूटनीतिक उपलब्धि बताना।  हालांकि सम्मेलन में विपक्षी नेताओं को पर्याप्त महत्व नहीं दिए जाने की आलोचना करते हुए उन्होंने ये भी कहा कि घरेलू स्तर पर समन्वय का अभाव है। सतही तौर पर तो उनकी बात में सच्चाई है किंतु इसके लिए केवल सरकार को दोष देना एकपक्षीय होगा। मसलन  विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के सम्मान में राष्ट्रपति द्वारा प्रेषित निमंत्रण पत्र में अंग्रेजी में प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिखे जाने पर विपक्ष ने जो बवाल मचाया वह  अनावश्यक था। ऐसे समय जब दुनिया के प्रमुख देशों के राष्ट्रप्रमुख भारत आने  शुरू हो चुके थे तब सरकार पर देश का नाम बदलने जैसा आरोप  छवि खराब करने का प्रयास ही था।  जी - 20 सम्मेलन में भी श्री मोदी के सामने रखी पट्टिका पर भारत ही लिखा गया था। इस बारे में श्री थरूर की तरह पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह भी प्रशंसा के पात्र हैं जिन्होंने सम्मेलन के पूर्व दिए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री श्री मोदी  की इस बात के लिये प्रशंसा की कि उन्होंने रूस - यूक्रेन युद्ध में  सुलझी हुई कूटनीति का परिचय दिया। लेकिन दूसरी तरफ राहुल गांधी  जी - 20 के दौरान बेल्जियम में बैठे हुए भारतीय विदेश नीति की प्रशंसा करने के बजाय लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमले का रोना रोते रहे। हालांकि अपनी प्रत्येक विदेश यात्रा में  वे इसी तरह का प्रयास करते हैं । लेकिन जब सवाल देश की प्रतिष्ठा का हो तब एकजुटता की अपेक्षा की जाती है। दुनिया भर के शीर्षस्थ राष्ट्र प्रमुख भारत में आकर उसकी प्रशंसा कर रहे हों तब विपक्ष का एक नेता देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के खतरे में होने की बात करे तो यह शर्मनाक है । ऐसे में  श्री थरूर से अपेक्षित है वे  पार्टी के भीतर इस बात को उठाएं कि विदेशी धरती पर उसके  नेता इस झूठ को फैलाने से बचें कि भारत में लोकतंत्र को नष्ट किया जा रहा है। अखिरकार श्री गांधी सहित उन जैसे अन्य नेताओं को भी समझना चाहिए कि  हाल ही में कुछ राज्यों में कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर लोकतंत्र ने ही दिलाया और उनकी सांसदी निरस्त करने के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थगन भी लोकतंत्र के रहते ही संभव हो सका। विपक्ष के कुछ अन्य नेता भी हैं जो ऊल जलूल टिप्पणियां करने से बाज नहीं आते। जी - 20 सम्मेलन के ठीक पहले भारत और इंडिया का विवाद खड़ा कर विपक्ष ने जिस असंवेदनशीलता का परिचय दिया उसके बाद सरकार से सौजन्यता की अपेक्षा अर्थहीन है। श्री थरूर और डा.मनमोहन सिंह ने  जिस तरह रचनात्मक रवैया प्रदर्शित किया वह अन्य विपक्षी नेता भी अपना लें तो घरेलू राजनीति का मिजाज भी बदल जायेगा। विपक्ष सरकार की शान में कसीदे पढ़े ये तो  अव्यवहारिक होगा लेकिन विदेशों में देश के लोकतंत्र पर सवाल खड़े करना गैर जिम्मेदाराना है। सरकार या प्रधानमंत्री की आलोचना करने का पूरा अधिकार होने के बावजूद  श्री गांधी और अन्य नेताओं को  ध्यान रखना चाहिए कि विदेश में वे भारतीय लोकतंत्र के प्रतिनिधि होते हैं।  स्व.अटल जी को जब स्व. पी.वी नरसिम्हा राव ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की मोर्चेबंदी विफल करने के लिए जिनेवा में हुए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारतीय दल का नेता बनाकर भेजा तो उस निर्णय की पूरे देश में प्रशंसा हुई। और वह भी तब जबकि अटल जी , राव साहब और उनकी सरकार के घोर आलोचक थे। आज विपक्ष का एक भी नेता ऐसा नहीं है जो उस कसौटी पर खरा हो। यदि बेल्जियम में बैठकर श्री गांधी , जी - 20 के आयोजन और उसमें भारत की भूमिका की प्रशंसा करते तब श्री थरूर द्वारा घरेलू राजनीति में भी समन्वय बनाने की सरकार से अपेक्षा का औचित्य होता। बड़ी बात नहीं  विदेश नीति की तारीफ करने के लिए श्री थरूर और डा.मनमोहन सिंह भी कठघरे में खड़े किए जाने लगें।


-  रवीन्द्र वाजपेयी 

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