Friday 1 September 2023

विशेष सत्र बुलाने के पीछे कारण भी विशेष ही होगा




हालांकि जब तक कार्यसूची की घोषणा न हो जावे तब तक  कहना कठिन है कि 18 से 22 सितंबर तक आयोजित  संसद के विशेष सत्र के पीछे का उद्देश्य क्या है ? गत रात्रि ज्योंही उक्त खबर आई त्योंही राजनीति में रुचि रखने वालों के साथ ही आम जनता में भी इस बात की उत्सुकता उत्पन्न हुई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कदम के जरिए कौन सा धमाका करना चाह रहे हैं ?  पहले - पहल संकेत मिला कि आजादी के अमृत काल के उपलक्ष्य में विशेष सत्र के दौरान सार्थक और रचनात्मक विमर्श होगा । कुछ देर बाद ही जानकारी आई कि कुछ विशेष विधेयक इस सत्र के दौरान पेश किए जा सकते हैं जिनमें समान नागरिक संहिता  और जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने  के अलावा संसद और विधानमंडलों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्रदान करना है। समाचार माध्यमों में व्यक्त की गई संभावनाओं के अनुसार आगामी लोकसभा चुनाव में ज्यादा मतदाताओं वाले निर्वाचन क्षेत्र से एक पुरुष और एक महिला   सांसद चुने जाने का प्रस्ताव  पारित किया जावेगा। संसद के नए भवन के शुभारंभ से ही इस आशय की अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि सांसदों की संख्या बढ़ाई जावेगी। चूंकि नया परिसीमन अभी 3 वर्ष दूर है इसलिए 2024 के चुनाव के लिए  तदर्थ उपाय के जरिए महिला आरक्षण को अमल में लाए जाने की कोशिश की जा सकती है । लेकिन आज सुबह ज्योंही ये खबर आई कि एक देश एक चुनाव , की संभावनाएं तलाशने हेतु एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई है जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ गोविंद करेंगे , त्योंही तमाम अटकलों को दिशा मिल गई।  हालांकि इतने कम समय में  समिति की रिपोर्ट आना और उसके अनुसार एक देश एक चुनाव की व्यवस्था को लागू कर पाना आसान काम नहीं है किंतु प्रधानमंत्री श्री मोदी की कार्यशैली में चूंकि जबरदस्त गोपनीयता रहती है लिहाजा बड़ी बात नहीं , वे विपक्ष को चौंकाते हुए एक देश एक चुनाव जैसा बड़ा निर्णय संसद के विशेष सत्र के दौरान ही करवाने का दांव चल दें । जहां तक बात समान नागरिक संहिता की है तो उसे लेकर भले ही राजनीतिक दलों में मतभेद हों किंतु महिला आरक्षण का जो विधेयक लंबे समय से लंबित पड़ा हुआ है उसे पेश किए जाने पर विपक्ष का जो गठबंधन आकार ले रहा है उसके सामने भी धर्मसंकट की स्थिति हो जायेगी। उल्लेखनीय है अतीत में इस विधेयक को संसद में जब भी पेश किया गया तब मंडल  राजनीति के पोषक लालू प्रसाद यादव , स्व .मुलायम सिंह यादव और स्व.शरद यादव ने जमकर विरोध किया। यहां तक कि भाजपा नेत्री उमा श्री भारती भी उसके विरोध में थीं। शरद यादव ने तो मंत्री से छीनकर विधेयक फाड़ तक दिया था। इनकी मांग थी कि महिलाओं को संसद और विधानमंडलों में एक तिहाई आरक्षण देने के साथ ही उसमें ओबीसी वर्ग एक हिस्सा तय किया जावे। जबकि भाजपा ,  कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां चाह रही थीं कि पहले विधेयक पारित कर लिया जावे और उसके बाद बाकी के संशोधन हों । सहमति न बन पाने की वजह से वह विधेयक आज तक अटका पड़ा है। ऐसे में यदि मोदी सरकार विशेष सत्र में उसे लेकर आती है तब भाजपा में तो विरोध की आवाज शायद ही उठे और  कांग्रेस तथा वामपंथी दल भी उहापोह की स्थिति में होंगे।ममता बैनर्जी भी महिलाओं की नाराजगी मोल लेने का जोखिम शायद ही उठाएं। समान नागरिक संहिता तो भाजपा के घोषणापत्र का स्थायी हिस्सा रहा है। 370 , राममंदिर और तीन तलाक जैसे फैसलों के बाद यही मुख्य मुद्दा शेष है। संसद का गणित  भी भाजपा के पक्ष में है जो अनेक अवसरों पर साबित हो  चुका है।  बहरहाल एक देश एक चुनाव का फैसला संसद में किए जाने के बाद उसे तत्काल लागू करना कितना संभव होगा ये कह पाना कठिन है लेकिन श्री  मोदी और गृह मंत्री  अमित शाह के मन की थाह ले पाना किसी के बस की बात नहीं। इसलिए पूर्व राष्ट्रपति को उस हेतु गठित समिति का अध्यक्ष बनाया जाना महत्वपूर्ण है । छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव ने एक देश एक चुनाव का व्यक्तिगत तौर पर स्वागत करते हुए ये तक कह दिया कि ये विचार काफी पुराना है। यद्यपि विपक्ष की आम प्रतिक्रिया विशेष सत्र को लेकर आलोचनात्मक ही है। बिना विषय सूची का खुलासा हुए ही एक देश एक चुनाव के सुझाव का विरोध किया जाना ये साबित करता है कि विपक्ष भी इससे हतप्रभ रह गया है। क्या होगा , क्या नहीं ये तो फिलहाल श्री मोदी और श्री शाह ही जानते होंगे किंतु ऐसे में जबकि कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों का कार्यक्रम अंतिम रूप ले चुका है तब अचानक संसद का  विशेष सत्र आयोजित करना मोदी सरकार की किसी विशेष कार्ययोजना का हिस्सा होना निश्चित है क्योंकि प्रधानमंत्री की हर बात और काम किसी न किसी दूरगामी सोच पर आधारित होता है और वे अपने फैसलों से न सिर्फ विपक्ष अपितु आम जनता को भी चौंका देते हैं। ये देखते हुए अचानक से ये फैसला निश्चित तौर पर किसी बड़े नीतिगत निर्णय की ओर बढ़ाया कदम है जिसका खुलासा कार्यसूची उजागर होते ही हो जाएगा। वैसे इंडिया गठबंधन का ये कहना गलत नहीं है कि केंद्र सरकार विपक्षी एकता की प्रतिक्रिया स्वरूप ये सब कर रही है। रसोई गैस के दाम घटाए जाने पर भी ऐसे ही बयान आए थे। लेकिन चुनावी रणनीति के लिहाज से इसमें कुछ भी नया नहीं है। स्व. इंदिरा गांधी की राजनीतिक शैली भी विपक्ष को चौंकाने वाली थी। सत्ता में बैठे नेता और पार्टी के साथ ये सुविधा तो रहती ही है कि वह अपनी नीतियों और निर्णयों को लागू कर सके। उस दृष्टि से श्री मोदी भी वही कर  रहे हैं। जिन राज्यों में चुनाव के नगाड़े बज उठे हैं वहां के मुख्यमंत्री भी आए दिन ऐसे फैसले ले रहे हैं जिनसे विपक्ष का हमला कमजोर पड़े। प्रधानमंत्री इस विशेष सत्र के जरिए देश की राजनीति को किस दिशा में मोड़ना चाहते हैं ये अभी तो अज्ञात है किंतु संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के पीछे कारण भी विशेष ही होगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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