Monday 25 September 2023

कानून का सरल भाषा में होना न्याय व्यवस्था के हित में



ये बात किसी और ने कही होती तब शायद उस पर ध्यान न जाता किंतु सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश संजीव खन्ना का ये कहना बेहद महत्वपूर्ण है कि कानूनी पेशे में सरल भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए ताकि आम आदमी सरलता से इसे समझ सके। उन्होंने ये भी कहा कि कानून के आसान भाषा में होने से लोग भी सोच-समझकर फैसला लेंगे और किसी भी तरह के उल्लंघन से बच पाएंगे। कानून हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होते हैं, ये हमें नियंत्रित करते हैं। इसलिए इनकी भाषा आसान होनी चाहिए जिससे वे रहस्य बनकर न रह जाएं। श्री खन्ना ने वकीलों की महंगी फीस का जिक्र भी किया । उनके अनुसार मुकदमे के बढ़ते खर्च से कई लोगों को न्याय नहीं मिलता जो इंसाफ के रास्ते में बड़ी बाधा है। इस पेशे से जुड़े लोगों को आत्मनिरीक्षण की सलाह देते हुए उन्होंने सभी के लिए न्याय की सुलभता सुनिश्चित किए जाने पर जोर दिया। न्याय प्रक्रिया में विलम्ब और अधिवक्ताओं की फीस में अप्रत्याशित वृद्धि से न्याय प्राप्त करने में आने वाली कठिनाई पर तो विभिन्न अवसरों पर चर्चा होती रहती है किंतु श्री खन्ना ने कानून के सरल भाषा में होने संबंधी जो बात कही वह वाकई गंभीर मुद्दा है। भले ही निचली अदालतों में हिन्दी अथवा स्थानीय भाषा में बहस और फैसले होने लगे हैं लेकिन उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में अब भी अंग्रेजी का दबदबा है। कुछ अधिवक्ता तो अंग्रेजी के उपयोग को प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते हैं। सबसे बड़ी बात कानून को जिस भाषा शैली में लिपिबद्ध कर पेश किया जाता है वह हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा में होने पर भी इतनी क्लिष्ट होती है कि आम आदमी तो छोड़ दें , ज्यादातर पढ़े - लिखे लोगों तक के पल्ले नहीं पड़ता। यही वजह है कि कानून की जानकारी रखने के इच्छुक व्यक्ति भी अंततः परेशान हो जाते हैं। और मुकदमा लड़ने वाले ज्यादातर पक्षकारों को यही नहीं ज्ञात होता कि उनके अधिवक्ता द्वारा अदालत के समक्ष कौन से तर्क दिए गए। इसी तरह अदालती आदेश और फैसले भी अपनी कठिन भाषा के कारण साधारण व्यक्ति की समझ से परे होते हैं। हालांकि ये भी सही है कि कानून का वर्णन आम बोलचाल की भाषा में संभव नहीं है किंतु उसे इतना कठिन भी नहीं होना चाहिए कि सिवाय वकीलों के अन्य लोगों के सिर के ऊपर से निकल जाए। उस लिहाज से न्यायमूर्ति श्री खन्ना ने बहुत ही सटीक बात कही कि सरल भाषा में कानून होने से लोगों को उनकी जानकारी रहेगी जिससे वे उनके उल्लंघन से बचेंगे। न्याय शास्त्र में कहा गया है कि कानून की अज्ञानता को बहाना नहीं बनाया जा सकता। इसलिए ये और भी जरूरी है कि प्रचलित कानून के अलावा कोई नया कानून अस्तित्व में आने पर उसकी समुचित जानकारी लोगों को तभी हो सकती है जब उसका विवरण सरल भाषा में हो। इस बारे में ये कहना गलत नहीं है कि कानून का प्रारूप तैयार करने और उसकी व्याख्या करने वाले वकील और न्यायाधीश सभी आम तौर पर जिस भाषा का उपयोग करते हैं वह सहज रूप से ग्राह्य नहीं हो पाती। न्यायमूर्ति श्री खन्ना ने इसी विसंगति पर ध्यानाकर्षण किया है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित इंटरनेशनल लायर्स कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने जो कहा उस पर समूचे विधि समुदाय को गंभीरता के साथ विचार करते हुए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे कि आम जनता और कानून के बीच जानकारी और समझ का जो अभाव कठिन भाषा की वजह से होता है , उसे दूर किया जा सके। यद्यपि हमारे देश में व्यवस्था में बदलाव के प्रति स्वभावगत उदासीनता व्याप्त है किंतु श्री खन्ना ने जिन बिंदुओं पर ध्यानाकर्षण किया वे कानून के राज की सफलता और सार्थकता के लिए नितांत आवश्यक हैं। बेहतर हो अदालतों में बैठे माननीय न्यायाधीशगण इस बारे में सक्रिय हों। वैसे भी कानून का पालन दबाव से ज्यादा संस्कार के तौर पर किया जाए तो बेहतर होता है। किसी भी देश के विकास का मापदंड केवल आर्थिक विकास नहीं वरन वहां के लोगों द्वारा कानून का पालन करने के प्रति दायित्वबोध भी होता है। हमारे देश में अशिक्षा रूपी कलंक आज भी पूरी तरह मिटा नहीं है । ऐसे में कानून की कठिन भाषा उसके प्रति उदासीनता को जन्म देती है। देखना है सर्वोच्च न्यायालय के बेहद सक्रिय प्रधान न्यायाधीश डी. वाय.चंद्रचूड़ अपने सहयोगी न्यायाधीश श्री खन्ना द्वारा उठाए मुद्दे का कितना और कैसे संज्ञान लेते हैं ?

- रवीन्द्र वाजपेयी 



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