Tuesday 19 September 2023

विपक्षी गठबंधन में अभी से दरारें आने लगीं


आई. एन. डी.आई.ए गठबंधन के स्थायित्व पर आशंका के बादल मंडराने लगे हैं। बेंगलुरु में संपन्न कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के दौरान आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर जिस तरह का विरोध सामने आया उसके बाद शीर्ष नेतृत्व को ये कहना पड़ा कि राज्यों के नेताओं से पूछे बिना सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा नहीं किया जावेगा । दरअसल दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस नेताओं ने आलाकमान को दो टूक बता दिया कि अरविंद केजरीवाल के साथ गलबहियां करने का अर्थ इन राज्यों में कांग्रेस को डुबोना होगा। इसी तरह म.प्र छत्तीसगढ़ और राजस्थान के कांग्रेस जन भी आम आदमी पार्टी के आक्रामक चुनाव प्रचार से बौखलाए हुए हैं। म.प्र में तो भाजपा की सरकार है किंतु शेष दो राज्यों में कांग्रेस सत्ता में है जहां श्री केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान प्रदेश सरकार पर चौतरफा हमला करने से बाज  नहीं आ रहे। इसी तरह म .प्र का कांग्रेस नेतृत्व इस बात को लेकर चिंतित है कि आम पार्टी यदि अपने उम्मीदवार उतारेगी तो उससे भाजपा को लाभ मिलेगा। जहां तक बात गठबंधन की है तो कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह आम आदमी पार्टी के लिए कोई भी सीट छोड़ने तैयार नहीं है। गौरतलब  है श्री केजरीवाल और श्री मान लगातार म.प्र के चुनावी दौरे में भाजपा के साथ ही कांग्रेस को घेरने में भी संकोच नहीं करते।  विपक्षी एकजुटता दिखाने के लिए आई. एन. डी.आई.ए की जो संयुक्त रैली निकट भविष्य में भोपाल में होना प्रस्तावित है वह भी इसी कारण झमेले में पड़ गई है। बेंगलुरु की बैठक से एक बात साफ तौर पर निकलकर आई  वह ये है कि लोकसभा चुनाव हेतु सीटों के बंटवारे को कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव तक टालने के इरादे में है। इसके पीछे की सोच ये है कि यदि हिमाचल और कर्नाटक जैसी सफलता उसे इन राज्यों में हासिल हो गई तब वह लोकसभा चुनाव में छोटे दलों पर दबाव बनाने में सफल हो जावेगी। उसकी यह रणनीति बाकी दल भांप गए हैं। इसीलिए मुंबई में शरद पवार के निवास पर आयोजित बैठक में आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री केजरीवाल सहित कुछ और दलों ने भी  कांग्रेस पर अभी से सीटों के बंटवारे का दबाव बनाया जिसे राहुल गांधी टाल गए। उधर दूसरी तरफ ममता बैनर्जी ने इकतरफा ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी कांग्रेस के लिए तो 2019 में उसके द्वारा जीती महज दो सीटें छोड़ेगी किंतु वामपथियों के लिए एक भी नहीं। यदि कांग्रेस अपनी दो सीटों में से उन्हें उपकृत करना चाहे तो उसे एतराज नहीं होगा। उसके बाद सीपीएम ने भी घोषणा कर दी कि वह प.बंगाल और केरल में अकेले लड़ेगी और किसी से सीटों का बंटवारा नहीं करेगी। उल्लेखनीय है श्री गांधी केरल की वायनाड सीट से ही सांसद हैं । ऐसे में गठबंधन के लिए ये हास्यास्पद स्थिति होगी कि प्रधानमंत्री के लिए उसके संभावित उम्मीदवार के प्रति भी उसमें मतैक्य का अभाव  है। स्मरणीय है गुजरात विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी ज्यादा कुछ तो न कर पाई लेकिन उसने कांग्रेस का कबाड़ा जरूर कर दिया जो महज 17 सीटों पर सिमटकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गई। कांग्रेस को यही डर म.प्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सता रहा है। ये तो सभी जानते हैं कि आम आदमी पार्टी इन राज्यों में केवल रस्म अदायगी करेगी। ये भी संभव है कि वह कुछ सीटें जीत भी ले लेकिन उसको मिलने वाले ज्यादातर मत भाजपा विरोधी ही होंगे जिससे कांग्रेस को सीधा नुकसान होगा। कांग्रेस का  सोचना था कि आई.इन. डी.आई.ए में शामिल होने के बाद श्री केजरीवाल गठबंधन धर्म का पालन करते हुए दिल्ली और पंजाब के अलावा कांग्रेस के प्रभाव वाले बाकी राज्यों में  रोड़ा नहीं  अटकाएंगे किंतु उसका सोचना गलत निकला। कुल मिलाकर जो देखने में आ रहा है उसके मुताबिक ऊपर से तो कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दल आए दिन भाजपा को हराने का हौसला दिखा रहे हैं किंतु भीतर - भीतर वे सब एक दूसरे की टांग खींचने से  बाज नहीं आ रहे। सभी पार्टियां मिलकर कांग्रेस को 250 लोकसभा सीटें देना चाहती हैं ताकि सरकार बनने की स्थिति में उस पर शिकंजा कसा जा सके।  कांग्रेस नेतृत्व इस चाल को समझ गया है। इसीलिए लोकसभा चुनाव करीब आने पर भी सीटों को लेकर खींचतानी चलते रहने का अंदेशा पैदा हो गया है। अगर कांग्रेस पांच राज्यों के चुनाव तक सीटों के बंटवारे को टालती रही तब अविश्वास और असहयोग की खाई और चौड़ी होती जायेगी। भले ही गठबंधन को शक्ल मिल गई हो किंतु अभी भी आई. एन. डी.आई. ए में विश्वास का संकट बना हुआ है। कांग्रेस की स्थिति इसी वजह से बेहद नाजुक है क्योंकि जिन राज्यों में वह भाजपा से सीधे मुकाबले में है वहां तो छोटे दल उससे हिस्सा मांग रहे हैं लेकिन जिन राज्यों में उनका वर्चस्व हैं उनमें कांग्रेस को अवसर देने की इच्छा उनकी नहीं है। अरविंद , ममता , नीतीश, अखिलेश , स्टालिन , पवार में से कोई भी कांग्रेस को पांव फैलाने की जगह नहीं देना चाह रहा । इस प्रकार गठबंधन में एक कदम आगे दो कदम पीछे वाली स्थिति बनी हुई है। 


- रवीन्द्र वाजपेयी


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