Wednesday 6 September 2023

जब भारत मां को इंडिया मम्मी नहीं कहा जाता तब भारत को इंडिया क्यों ?



जी - 20 देशों के सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिए गए निमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट आफ भारत लिखे जाने पर वे विपक्षी दल आग बबूला  हैं जिन्होंने हाल ही में  भाजपा विरोधी एक गठबंधन बनाया है जिसका अंग्रेजी नाम संक्षिप्त में इंडिया  है। उनके अनुसार सरकार चूंकि इस नाम से डर गई है लिहाजा संविधान में प्रयुक्त देश के अंग्रेजी नाम इंडिया की जगह उक्त  निमंत्रण पत्र में भारत शब्द का इस्तेमाल किया गया जबकि अभी तक अंग्रेजी के किसी भी सरकारी दस्तावेज में इंडिया ही लिखा जाता रहा।  ये प्रचार भी शुरू कर दिया गया कि 18 सितंबर से प्रारंभ होने जा रहे संसद के विशेष सत्र में संविधान के प्रारंभ में  देश का नाम इंडिया जो कि भारत है ,को बदल दिया जाएगा। और  ये तिथि इसलिए चुनी गई क्योंकि संविधान सभा में भी इसी तारीख को इंडिया और भारत नाम रखे जाने पर बहस हुई थी।  दरअसल  विशेष सत्र की घोषणा ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। स्वाभाविक तौर पर ये जानने की उत्सुकता हुई कि उसके पीछे का उद्देश्य क्या है ? उम्मीद है जी - 20 समाप्त होने के बाद सरकार इस बारे में स्थिति स्पष्ट करेगी। विपक्ष इसलिए भी परेशान क्योंकि लोकसभा चुनाव के कुछ महीने पहले  विशेष सत्र बुलाने के पीछे प्रधानमंत्री का चुनावी पैंतरा हो  सकता है। बहरहाल जहां तक बात इंडिया की जगह भारत शब्द का उपयोग करने की है तो इसे लेकर बवाल मचाने वालों की बुद्धि पर तरस आता है। ऐसा जाहिर किया जा रहा है मानो संविधान से इंडिया हटा दिया गया तो जो भारत बचेगा वह भाजपा या नरेंद्र मोदी के नाम लिख जायेगा। इंडिया शब्द की उत्पत्ति कब , कहां और कैसे हुई इसका भी इतिहास खंगाला जा रहा है। लेकिन संविधान सभा में जिन लोगों ने भारत के साथ इंडिया नाम रखे जाने का विरोध किया था उनमें स्व.हरि विष्णु कामथ और स्व.सेठ गोविंद दास जैसे लोग थे जिनकी प्रतिभा और देशभक्ति पर शंका नहीं की जा सकती। बहस और विवाद तो हिन्दू शब्द पर भी होते हैं। जिसके बारे में दावा है विदेशी चूंकि स को ह उच्चारित करते थे इसलिए सिंधु नदी के इस पार वाले क्षेत्र को हिंदुस्तान नाम दे दिया। कुछ लोग वेदों में हिमालय से समुद्र के बीच के क्षेत्र को भारत कहे जाने वाले श्लोक को बतौर प्रमाण पेश करते हैं। जैन दर्शन के साथ ही दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर देश का नाम भारत रखे जाने की बात भी उठ रही है। और भी अनेक संदर्भ सामने लाए जा रहे हैं। इन सबको विमर्श में शामिल किए जाने में कुछ भी बुराई नहीं है क्योंकि नई पीढ़ी इसके माध्यम से बहुत सारी वे बातें जान सकेगी जिनसे अन्यथा वह अनजान रहती। वैसे , जो लोग राष्ट्रपति द्वारा अंग्रेजी में छपे निमंत्रण पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखने पर छाती पीट रहे हैं उसकी असली वजह रास्वसंघ प्रमुख डा. मोहन भागवत द्वारा दो - तीन दिन पहले इंडिया की जगह भारत शब्द का इस्तेमाल किए जाने की अपील थी। संघ के घोषित उद्देश्यों में भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना भी है। ये महज संयोग है या सुनियोजित , ये कहना तो कठिन है लेकिन भारत शब्द के उपयोग पर आसमान सिर पर उठा लेने का औचित्य समझ से परे है। यदि मान लें कि मोदी सरकार संविधान में इंडिया हटाकर केवल भारत रखने की सोच रही है तो इसमें बुराई क्या है? सही बात तो ये है  कि संविधान में  भारत के साथ इंडिया नाम रखा जाना किसी भी दृष्टि से उचित अथवा आवश्यक नहीं था।  आजादी के आंदोलन में भी हिंदुस्तान और भारत जैसे शब्द ही उपयोग होते  थे। ऐसे में संविधान में इंडिया को भारत पर प्रमुखता देना अंग्रजों को खुश करने के लिए किया गया लगता है। रही बात संविधान में  बदलाव की तो उसमें न जाने कितने संशोधन किए जा चुके हैं । यहां तक कि उसकी प्रस्तावना में भी  आपातकाल लगाए जाने के बाद 1976 में  धर्म निरपेक्ष शब्द जोड़ा गया। सवाल उठता है कि पंडित नेहरू जैसे धर्म निरपेक्षता के पैरोकार ने उस समय उसकी जरूरत नहीं समझी जबकि देश को आजादी सांप्रदायिक हिंसा के बीच प्राप्त हुई थी । और भी सवाल हैं जिन पर आजादी के 75 वर्षों बाद भी चर्चा नहीं हुई तो इतिहास के अनेक अध्याय बिना खुले ही रह जायेंगे। जिन लोगों को इंडिया की जगह भारत के उपयोग पर ऐतराज हो रहा है उनको ये नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह हिंदुस्तान नाम को विदेशियों द्वारा दिए जाने से किनारे कर दिया गया उसी तरह इंडिया से भी मुक्ति पा लेनी चाहिए। ध्यान रहे जिस प्रकार राष्ट्रगान में लिखे भारत भाग्य विधाता का अनुवाद नहीं किया जा सकता , वैसे ही  देश का नाम केवल भारत होना चाहिए। और बिना संशोधन किए भी   इंडिया की जगह भारत का प्रयोग किया जावे तो इसमें बुरा क्या होगा ?  15 अगस्त पर लाल किले से पंडित नेहरू द्वारा जय भारत की जगह जय हिंद का नारा लगवाया गया जिसे बतौर परंपरा हर प्रधानमंत्री निभाता आया है।  ऐसे में यदि राष्ट्रपति ने इंडिया की जगह भारत का उपयोग किया तो उसे सहज भाव से लेना चाहिए  । हमारे देश में हर जगह भारत मां की जय के नारे ही सुनाई देते हैं इंडिया मम्मी कोई नहीं बोलता।


- रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment