गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर नए संसद भवन के शुभारंभ से इतिहास का एक नया पृष्ठ खुल रहा है। आजादी के पूर्व से ही जिस संसद भवन का उपयोग होता आया अब वह अतीत की स्मृतियों का जीवंत स्मारक बन जाएगा।आजादी की लड़ाई से लेकर बीते 75 साल की अनगिनत घटनाओं का साक्षी रहा यह भवन बढ़ती जरूरतों के लिहाज से छोटा पड़ने लगा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करनी होगी जिन्होंने रिकॉर्ड समय के भीतर इस भवन का निर्माण करवाने के साथ ही प्रधानमंत्री आवास , सचिवालय और राजधानी में जगह - जगह फैले केंद्र सरकार के दफ्तरों को एक ही परिसर में लाने की समझदारी दिखाई। इस परियोजना का विरोध करने वालों ने इसकी उपयोगिता और लागत पर भी सवाल उठाए । लेकिन श्री मोदी ने बिना विचलित हुए कदम आगे बढ़ाए। कोरोना काल में जब सभी गतिविधियां ठप्प पड़ी थीं तब भी इसका काम चलता रहा। सेंट्रल विस्टा नामक इस प्रकल्प के पूर्ण होने से राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार का समूचा प्रशासनिक ढांचा एक परिसर में केंद्रित होने से सरकार और जनता दोनों को सुविधा होगी। साथ ही निजी भवनों में कार्यरत कार्यालयों को दिया जाने वाला किराया भी बचेगा। सबसे बड़ी बात सुरक्षा प्रबंधों की है। उल्लेखनीय है लुटियंस की दिल्ली कहे जाने वाले इलाके में अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए बंगलों की जगह बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर सांसदों को फ्लैट दिए जा रहे हैं । इससे बेशकीमती जमीन तो खाली हुई ही , सुरक्षा और रखरखाव पर होने वाला खर्च भी बचने लगा। हाल ही में जिस भारत मंडपम में जी - 20 सम्मेलन संपन्न हुआ , वह भी रिकार्ड समय में बनकर तैयार हुआ । उसकी भव्यता वास्तु कला देखकर संपन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष तक चकित रह गए। गत दिवस ही श्री मोदी ने यशोभूमि नामक जिस एक्सपो सेंटर के एक हिस्से का लोकार्पण किया वह एशिया का सबसे विशाल कन्वेंशन एवं एग्जीबिशन परिसर होगा जिसमें 3000 वाहनों की भूमिगत पार्किंग रहेगी। इस प्रकार के निर्माण देश की समृद्धि के साथ वैश्विक दृष्टिकोण का प्रतीक होते हैं। किसी भी देश में ओलंपिक या अन्य ऐसे ही आयोजन के लिए बनाई गई अधो संरचना भावी जरूरतों के लिहाज से उपयोगी होती है। दिल्ली में हुए एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों के लिए बने स्टेडियम खेलों के आयोजन के लिए काम आते हैं। इसी तरह विश्व कप क्रिकेट के आयोजन से देश में जगह - जगह अंतर्राष्ट्रीय मैचों का आयोजन संभव हो सका। आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियों सहित अंतर्राष्ट्रीय संगठन अपनी बैठकों और सम्मेलनों के लिए ऐसे स्थान तलाशते हैं जो सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त हों । दुबई उसका सबसे अच्छा उदाहरण है जो बिना तेल संपदा के भी पूरे विश्व को आकर्षित कर रहा है। यहां तक कि यूरोपीय देशों तक से लोग वहां आने लगे हैं। दुबई फेस्टिवल तो विश्व के सबसे बड़े व्यापार मेलों में गिना जाता है। उस दृष्टि से भारत काफी पीछे था। श्री मोदी ने सत्ता संभालते ही ऐसे प्रकल्पों पर ध्यान केंद्रित किया। गुजरात में सरदार पटेल की जो मूर्ति बनाई गई वह विश्व में सबसे ऊंची है। उसके निर्माण का भी खूब मजाक बनाया गया किंतु जल्द ही वह स्थान देश का प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है जिससे आसपास के क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि आई। इसी तरह काशी में विश्वनाथ और उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के कायकाल्प ने इन दोनों शहरों की आर्थिक स्थिति में अकल्पनीय सुधार किया है। सबसे बड़ा उदाहरण अयोध्या का है जहां राम मंदिर का निर्माण पूर्ण होने के पहले ही विकास की अनंत संभावनाएं उभरकर सामने आने लगी हैं। जिस नए भारत का उदय कोरोना काल के उपरांत हुआ उसमें वैश्विक स्तर पर खुद को स्थापित करने का उत्साह जागा है। चंद्रयान की सफलता और फिर सूर्य के अध्ययन के लिए अंतरिक्ष यान का सफल प्रक्षेपण इसका प्रमाण हैं। जी - 20 सम्मेलन ने दुनिया की बड़ी ताकतों को भारत के उत्थान को निकट से देखने का जो अवसर दिया उसके दूरगामी परिणाम होंगे। गत दिवस नए संसद भवन पर राष्ट्रध्वज फहराकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनगड़ ने उसे संवैधानिक स्थिति भी प्रदान कर दी। लेकिन अब ये पक्ष और विपक्ष के सांसदों का नैतिक दायित्व है कि वे नए भवन की भव्यता को अपने आचरण से गरिमा प्रदान करें। उनको ये बात समझना चाहिए कि जनमानस में लोकतंत्र और संसद के प्रति तो पूरी आस्था और सम्मान है किंतु सदन के भीतर अशोभनीय और गैर जिम्मेदाराना आचरण के कारण सांसदों का सम्मान निरंतर घटता जा रहा है । ऐसे में नया संसद भवन सांसदों को दायित्वबोध का एहसास करवाने में सहायक हो तभी उसकी उपयोगिता साबित हो सकेगी। आजादी के 75 वर्ष पूर्ण करने के बाद स्वनिर्मित संसद भवन से भारतीय लोकतंत्र का संचालन आत्म निर्भरता और आत्म गौरव का संदेश वाहक बनेगा यह अपेक्षा हर देशवासी के मन में है।
- रवीन्द्र वाजपेयी
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