Wednesday 20 September 2023

ट्रूडो संभल जाएं वरना कैनेडा में बन जाएगा खालिस्तान


जी - 20 सम्मेलन की अभूतपूर्व सफलता के दौरान ही भारत और कैनेडा के बीच तल्खी बढ़ने की खबर आने लगी थी। इसका कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कैनेडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो के समक्ष खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को  मिल रहे संरक्षण पर ऐतराज जताया जाना था। सूत्रों के मुताबिक ट्रुडो को ये बात नागवार गुजरी। वतन लौटकर उन्होंने अपनी संसद में बयान देते हुए आरोप लगा दिया कि कैनेडा में रह रहे एक खालिस्तानी नेता की हत्या में भारत सरकार का हाथ है। यहां तक तो फिर भी ठीक था किंतु उसके बाद कैनेडा सरकार ने एक भारतीय  राजनयिक को देश छोड़ने का आदेश देकर आग में घी डाल दिया । जी - 20 के फौरन बाद यह घटनाक्रम भारत के लिए चौंकाने वाला था । जवाब में भारत सरकार ने भी कड़ा रुख अपनाते हुए  कैनेडा के एक राजनयिक को देश छोड़ने का आदेश सुना दिया । उल्लेखनीय है कैनेडा वासी खालिस्तान समर्थक  हरदीप सिंह निज्जर की विगत जून माह में अज्ञात तत्वों द्वारा हत्या कर दी गई थी । कैनेडा सरकार के अनुसार उसमें भारतीय दूतावास में पदस्थ एक राजनयिक का हाथ था जो कि  गुप्तचर एजेंसी रॉ जुड़ा है। सही बात ये है कि कैनेडा शुरू से ही खालिस्तानियों की गतिविधियों का बड़ा केंद्र रहा है।  वहां सिखों की आबादी  2 प्रतिशत  से ज्यादा है  जो व्यवसाय , कृषि , नौकरी और राजनीति जैसी  विविध भूमिकाओं में संलग्न हैं। पूरे देश में गुरुद्वारों का जाल बिछ गया है । नगर पालिकाओं से  संसद तक में सिखों की प्रभावशाली उपस्थिति देखी जा सकती  है। बड़ी संख्या में सिख परिवार ऐसे हैं जिनकी तीसरी पीढ़ी कैनेडा वासी है। यही कारण है कि पंजाब में रहने वाले सिखों के बीच कैनेडा जाकर बसने की प्रवृत्ति आम हो चली है। इसका लाभ लेते हुए खालिस्तानी संगठनों ने  भारत विरोधी मानसिकता का बीजारोपण किया। 1984 में इंदिरा गांधी के हत्या के बाद पंजाब में तो खालिस्तानी आतंक का खात्मा हो गया किंतु कैनेडा में बब्बर खालसा और ऐसे ही अनेक उग्रवादी संगठन कार्यरत रहे । भारत ने कैनेडा की सरकार को हमेशा इस बात के लिए चेताया भी किंतु अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर वह  उपेक्षा करता रहा। दो साल पहले भारत में हुए किसान आंदोलन को ढाल बनाकर खालिस्तानी संगठनों ने एक बार फिर सिर उठाने का प्रयास किया। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से वे और सक्रिय हुए और हिंदू मंदिरों पर हमले जैसी घटनाएं देखने मिलीं । कैनेडा के अलावा ब्रिटेन और अमेरिका तक में किसान आंदोलन के दौरान जिस तरह से भारत विरोधी प्रदर्शन हुए वे इस बात का प्रमाण थे कि खालिस्तानी आंदोलन के कर्ताधर्ताओं को  दोबारा  पांव जमाने का अवसर मिल गया।  निज्जर नामक जिस खालिस्तानी की हत्या से मौजूदा विवाद पैदा हुआ वह भारत की मोस्ट वांटेड सूची में था। ऐसे आतंकवादी को प्रधानमंत्री ट्रूडो अपने देश का नागरिक बताकर  जिस तरह से आंसू बहा रहे हैं उससे उनकी भारत विरोधी सोच उजागर होती है। यद्यपि  कैनेडा और भारत के बीच कूटनीतिक और व्यवसायिक संबंध लंबे समय से समान्य चले आ रहे थे। खालिस्तानी संगठनों की  वहां मौजूदगी के बाद भी सरकार के अलावा नागरिकों के स्तर पर रिश्तों में करीबी बनी रही। बीते कुछ वर्षों से तो कैनेडा भारतीय युवकों के लिए शिक्षा और कामकाज के लिए बड़ा आकर्षण बन गया है। लेकिन ट्रूडो सरकार ने जिस गैर जिम्मेदाराना रवैए का परिचय दिया वह रिश्तों में खटास पैदा कर सकता है। हालांकि हड़बड़ाहट में उठाए उनके भारत विरोधी कदम का कैनेडा में ही विरोध होने लगा है। यहां तक कि वहां बसे सिखों का एक बड़ा वर्ग खालिस्तानी उग्रवादियों को नापसंद करता है जिनकी हरकतों से पूरी कौम संदेह के घेरे में आ जाती है। और फिर कैनेडा में बसे गैर सिखों के अलावा शिक्षा तथा नौकरी के सिलसिले में   गए भारतीय भी खालिस्तानी गतिविधियों से पूरी तरह अलग हैं। कैनेडा सरकार को  एक बात ध्यान रखना चाहिए कि उनके देश में बैठे खालिस्तानी हजारों मील दूर भारत में तो खालिस्तान बनाने से रहे लेकिन यदि  उनको छूट दी जाती रही तो कुछ साल बाद कैनेडा में जरूर वे अपने लिए अलग देश या विशेष क्षेत्र की मांग लेकर हिंसा पर उतारू हो जायेंगे। वैसे भी अमेरिका की तरह कैनेडा अप्रवासियों द्वारा बसाया गया देश है । बेहतर होगा वहां की सरकार इस बात को जल्द से जल्द समझ जाए वरना जिन खालिस्तानियों को वह अपना नागरिक मानकर उनकी पीठ पर हाथ रखे हुए है वे ही उसकी पीठ में खंजर से वार करने से नहीं चूकेंगे। प्रधानमंत्री ट्रुडो को ये बात जान लेनी चाहिए कि जो लोग अपने देश के वफादार नहीं , वे भला कैनेडा के शुभचिंतक कैसे हो सकते हैं ? जी - 20 के दौरान  उन्होंने ये तो देखा ही होगा कि भारत एक विश्व शक्ति बन चुका है जिसके कारण अमेरिका , फ्रांस , ब्रिटेन और जापान जैसे विकसित देश तक उसके साथ निकट संबंध बनाने आतुर हैं। ऐसे में भारत जैसी उभरती विश्व शक्ति से टकराव उन्हें भारी पड़ सकता है।


- रवीन्द्र वाजपेयी

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