Saturday 10 October 2020

अपराध में जाति ढूंढ़ना भी तो अपराध है



हाथरस में दलित युवती के साथ सवर्ण जाति के लोगों द्वारा दुष्कर्म और ह्त्या का बवाल अभी थमा नही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा का पीड़िता के गाँव जाकर उससे मिलना बड़ी राजनीतिक घटना बन गई जिसे उप्र में कांग्रेस के पुनरोदय के तौर पर देखा जाने लगा वहीं भाजपा इस प्रकरण को लेकर रक्षात्मक होने मजबूर हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर सवर्णों विशेष रूप से अपने सजातीय ठाकुरों को संरक्षण देने जैसे आरोप भी लगे। वारदात के हफ्तों बाद भी संबंधित गाँव में तनाव है और जातिगत वैमनस्य की भावना खुलकर सामने आई है। लेकिन गत दिवस राजस्थान में एक ऐसी घटना हो गई जिसमें दलित समुदाय में आने वाली मीणा जाति के व्यक्ति ने मंदिर की जमीन कब्जाने के लिए ब्राह्मण पुजारी की हत्या कर दी। इसके बाद भाजपा को अवसर मिल गया कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार से इस्तीफा मांगने और राहुल-प्रियंका पर तंज कसने का। हो सकता है वे दोनों राजस्थान आकर पुजारी के परिवार से मिलकर सांत्वना दें तथा मुख्यमंत्री श्री गहलोत पर उसके परिवार को मदद देने का दबाव डालें लेकिन इसके बाद भी भाजपा के साथ सवर्ण जातियों को भी हमलावर होने का अवसर मिल गया। राजस्थान के मुख्यमंत्री चूंकि पिछड़े वर्ग से आते हैं इसलिए उन्हें इस प्रकरण में बेहद सावधानी बरतनी होगी। लेकिन सवाल ये है कि क्या हाथरस की घटना को लेकर दलित वर्ग के उत्पीड़न पर राजनेताओं द्वारा व्यक्त किया गया गुस्सा राजस्थान के एक ब्राह्मण पुजारी की नृशंस हत्या के विरोध में भी सामने आएगा? लेकिन उससे भी बड़ा सवाल ये है कि आजादी के 73 साल बाद भी समाज को जाति के नाम पर बांटने का खेल रुक क्यों नहीं रहा? जब छुआछूत को कानूनी रूप से खत्म कर दिया गया और सामाजिक समरसता के प्रति सभी राजनीतिक पार्टियाँ समान रूप से प्रतिबद्ध हैं तब किसी अप्रिय घटना या अपराध को जातिगत आधार पर देखने का नजरिया क्या जाति के नाम पर समाज को टुकड़े-टुकड़े करने जैसा अपराध नहीं है ? अपराध चाहे उप्र में हो या राजस्थान अथवा किसी अन्य राज्य में और अपराधी किसी भी जाति का क्यों न हो उसके प्रति राजनीतिक बिरादरी की सोच एक समान होनी चाहिए। संवैधानिक व्यवस्था में किसी को भी जातिगत आधार पर किसी भी तरह का विशेषाधिकार नहीं है। दंड प्रक्रिया भी अपराधी को दण्डित करते समय उसकी जाति नहीं देखती। एक सवर्ण को भी किसी जुर्म के लिए दी जाने वाली सजा वैसे ही कृत्य के लिए एक दलित या पिछड़े वर्ग के अपराधी को मिलने वाले दंड से कम नहीं होती। लेकिन राजनेता इस सबसे अलग हटकर केवल और केवल वोटों की फसल काटने की फिराक में रहा करते हैं। और इसीलिये जो राहुल और प्रियंका ने उप्र जाकर किया वही वसुंधरा राजे और उनके साथी राजस्थान में करेंगे। उप्र में दलितों को असुरक्षित बताने वाली कांग्रेस क्या राजस्थान में सवर्णों की सुरक्षा को खतरे में मानकर वैसा ही बवाल मचाएगी? लेकिन सभी जानते हैं कि ऐसी प्रत्येक घटना के प्रति राजनेताओं की संवेदनशीलता अगली बड़ी वारदात तक ही कायम रहती है। मसलन बुलंदशहर में कांग्रेस आक्रामक थी वहीं राजस्थन के करौली में पुजारी की हत्या के बाद अब भाजपा जवाबी हमला कर रही है। वसुन्धरा राजे सहित अन्य नेतागण वारदात वाले इलाके में लाव-लश्कर के साथ पहुंचेगे और राज्य सरकार उन पर माहौल खराब करने का आरोप लगाते हुए प्रतिबंधात्मक कदम उठायेगी। कहने का आशय यही है कि जब और जहां भी हत्या और बलात्कार जैसे अपराध होते हैं वहां राजनीति के सौदागर अपनी दूकान खोलकर बैठ जाते हैं और शुरू हो जाता है जाति के नाम पर जहर फैलाने का चिर परिचित खेल। जाति तोड़ो का नारा तो न जाने कब का अर्थहीन होकर रह गया और बीते कुछ दशकों में भारतीय राजनीति ही नहीं प्रशासनिक ढांचे के साथ ही न्यायपालिका में भी जाति के वायरस देखे जा सकते हैं। चुनाव में कहने को सभी पार्टियाँ विकास पर केन्द्रित घोषणा या संकल्प पत्र प्रस्तुत करती हैं लेकिन प्रत्याशी चयन से लेकर समूचा चुनाव अभियान अंतत: जातिगत मुद्दों पर आकर सिमट जाया करता है। और यही वजह है कि अपराध होने के बाद बजाय अपराधी को पकड़कर दण्डित करने के जाति नामक बिसात बिछाकर सियासत के शकुनि अपने पांसे चलने लगते हैं। इसी कारण अपराध कम होने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं। उप्र के बुलंदशहर में हुई वारदात में आरोपी की पीड़िता और उसके भाई के साथ फोन पर बातचीत होते रहने के प्रमाण सामने आये हैं। लेकिन घटना के बाद गाँव में जातिगत दीवारें और ऊँची हो गईं। अब ऐसा ही कुछ राजस्थान में हुई घटना के बाद दोहराया जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। ये देश का दुर्भाग्य है कि विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने के बाद खुद को आधुनिकता का प्रतीक चिन्ह मानने वाले नेतागण भी जाति के आधार पर समाज को बाँटने के काम में हाथ बंटाते हैं। ये सिलसिला कब रुकेगा इसे कोई नहीं बता सकता क्योंकि जिनके पास आग बुझाने का जिम्मा है जब वही उसमें पेट्रोल डालने जैसी शरारत करें तो फिर कहने को रह ही क्या जाता है?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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