Monday 12 October 2020

बाजार और त्यौहार में फंसे आँकड़े : आशावाद से बचें



कोरोना को लेकर पिछले दो सप्ताह से आशाजनक खबरें आ रही हैं। नये संक्रमण घट रहे हैं और ठीक होने वालों की संख्या  निरंतर बढ़ती जा रही है। इस कारण मनोवैज्ञानिक तौर पर भी राहत दिख रही है। अगले सप्ताह से भारत में त्यौहारी मौसम की शुरुवात हो जायेगी जिसका सीधा सम्बन्ध अर्थव्यवस्था से है। बीते छह महीने में जनजीवन के साथ ही उद्योग-व्यापार भी अस्त व्यस्त होकर रह गये। दो महीने तो पूरी तरह लॉक डाउन रहा किन्तु उसके बाद जब ढिलाई दी गई तब कोरोना संक्रमण जिस तेजी से बढ़ा उससे सब कुछ खुला होने और बाजारों में भीड़ के बाद भी वह उत्साह नजर नहीं आया जो अपेक्षित और आवश्यक था। यद्यपि लगातार सुधार के संकेत मिल रहे हैं लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि न सिर्फ  मध्यम अपितु उच्च आय वर्ग में भी एक अदृश्य भय सा समा गया जिसके कारण वह अपने खर्चों में कमी करने को बाध्य हुआ। हालाँकि कुछ व्यवसायों में मांग आश्चर्यजनक तौर पर बढ़ी किन्तु समग्र तौर पर देखने पर ये महसूस हुआ कि अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान से उबरने में लम्बा समय लगेगा। दो दिन पूर्व रिजर्व बैंक ने भी माना कि कारोबारी हालात लगातार सकारात्मक संकेत दे रहे हैं फिर भी वर्तमान  वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में 9 प्रतिशत से भी ज्यादा कमी आयेगी। इसका अर्थ ये हुआ कि दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था कम से कम पांच साल पीछे चली गयी। लेकिन ये विश्वव्यापी परिदृश्य है। माना जा रहा है कि केवल चीन को छोड़कर बाकी सभी देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट परिलक्षित होगी। उस दृष्टि से भारत का प्रदर्शन बहुत बुरा नहीं कहा जा सकता। यदि अभी तक भारत में कोरोना से होने वाली मौतें वैश्विक स्तर से काफी कम हैं तो उसका कारण लॉक डाउन की शुरुवाती सख्ती भी थी जिसके लिए केंद्र सरकार को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। लेकिन बीते कुछ दिनों से आ रहे सुखद संकेतों से बेफिक्र होना आत्मघाती होगा क्योंकि जांच की संख्या को लेकर संदेहास्पद स्थिति बनी हुई है। ये भी कहा जाने लगा है कि अगस्त और सितम्बर में कोरोना संक्रमण में जिस तरह उछाल आया उसकी वजह से सरकारी अस्पतालों की क्षमता जवाब देने लगी और  निजी अस्पताल वालों को लूटमार का अवसर मिल गया। जिसके पास नगद रहित चिकित्सा बीमा जैसी सुरक्षा थी उससे भी निजी अस्पतालों ने जबरन अग्रिम राशि जमा करवाई। इस वजह से डर और घबराहट फैली। लेकिन बीते दो  हफ्ते इस लिहाज से काफी राहत भरे रहे। सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की उपलब्धता के कारण निजी क्षेत्र के अस्पताल अपनी दरें घटाने मजबूर हो गये। लेकिन कुछ ऐसी बातें भी सुनने में आई हैं जिनके कारण कान खड़े हो जाते हैं। पहली तो ये कि त्यौहारी मौसम उद्योग-व्यापार जगत के लिए मददगार रहे इसलिए सुनियोजित तरीके से कोरोना संक्रमण के आंकड़ों में कमी प्रचारित की जा रही है। इसके लिए जांच में कमी किये जाने के  दावे भी कतिपय सूत्र कर रहे हैं। हालांकि ये भी सुनने में आ रहा है कि शीघ्र ही सस्ती जांच किट सरकार के पास आ जायेगी जिसके बाद जाँच कार्य फिर से तेज किया जावेगा। इसी बीच दो विरोधाभासी आकलन भी सामने आये हैं। जिनमें एक के मुताबिक तो नवंबर महीने में देश हर्ड इम्युनिटी की स्थिति में आ जायेगा। अर्थात आधे से ज्यादा लोगों में कोरोना की एंटीबॉडी विकसित होने से यह संक्रमण शिथिल पड़ता जाएगा। लेकिन दूसरी तरफ  ये आशंका भी  है कि नवम्बर में सर्दियां शुरू होते ही कोरोना दोबारा हमला करेगा। ऐसा कहने वाले उन देशों का उदाहरण दे रहे हैं जिनमें कोरोना को खत्म मानकर लोग निश्चिन्त हो गये थे। लेकिन कुछ समय बाद कोरोना दोगुनी ताकत से लौटा तब जाकर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। ऐसे में भारत में इस संक्रमण को लेकर जिस तरह का आशावाद बीते कुछ दिनों से फैलाया जा रहा है उसके कारण यदि सावधानी न रखी गई तो वह प्राणलेवा हो सकती है। भारतीय परिस्थितियों में हर्ड इम्युनिटी को लेकर कोई अधिकृत दावा किया जाना खतरे से खाली नहीं होगा। दिल्ली उसका खामियाजा भुगत चुकी है। ऐसे में आने वाला समय बहुत ही नाजुक होगा। बाजार, त्यौहार और सरकार इन तीनों के बीच फंसी आंकड़ेबाजी अपनी जगह है लेकिन अपनी जान की रक्षा करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है और उसके लिए अपुष्ट दावों और अनधिकृत बातों के प्रति अतिरिक्त सावधानी रखनी चाहिए। दीपावली के पहले देश भर में साफ़ -सफाई का दौर चलने से करोड़ों टन कूड़ा-कचरा घरों से निकलता है और मौसम भी बदलता है। वहीं दीपवली के अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के सख्त निर्देशों के बाद भी जमकर आतिशबाजी होने से वायु प्रदूषण चरम पर जा पहुंचता है जिससे साँस के मरीजों को खतरा बढ़ जाता है। शायद इसी आधार पर नवंबर में कोरोना के फिर जोर पकड़ने का अंदेशा बताया जा रहा है। इसलिए उससे बचाव के समस्त तौर-तरीके बिना किसी गफलत में पड़े अमल में लाये जाने चाहिए क्योंकि अब तक के अधिकांश आशावादी अनुमान झमेले में पड़ चुके हैं। वैक्सीन के आने की तारीखें आगे खिसकते जाना इसका सबसे अच्छा प्रमाण है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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