विजयादशमी सम्पन्न होते ही भारत में दीपावली का माहौल बनने लगता है। इस साल कोरोना के कारण दुर्गा पूजा के दौरान पहले जैसी रौनक नहीं रही। बंगाल जहां शारदेय नवरात्रि सबसे बड़ा लोक महोत्सव होता है , वहां भी इस वर्ष एक चौथाई भव्यता ही रही। इसी तरह उत्तर भारत में इस दौरान होने वाली अधिकतर रामलीलाएं भी आयोजित नहीं की जा सकी। इस सबका असर बाजार पर भी पड़ा। हालाँकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कोरोना संक्रमण बीते एक महीने से लगातार कमजोर होता जा रहा है लेकिन इसके बाद भी उसका भय देवी मंदिरों में भक्तों की कम भीड़ से प्रमाणित हो गया। भले ही कोरोना को लेकर पूर्ववत डर लोगों में नहीं रहा हो और बाजारों सहित सार्वजनिक स्थानों पर खूब चहल पहल भी दिखाई देने लगी है लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो कोरोना को लेकर व्यक्त की जा रही आशंकाओं के प्रति पूरी तरह से गंभीर भी है और चिन्त्तित भी। उसकी चिंता हर दृष्टि से वाजिब भी है क्योंकि कोरोना का चरित्र देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि एक संक्रमित व्यक्ति हजारों को ग्रसित कर सकता है। तमाम चिकित्सा विशेषज्ञ इस बात के प्रति आगाह कर चुके हैं कि आगामी वर्ष फरवरी तक कोरोना का प्रकोप भारत में रहेगा ही रहेगा और जनवरी तक वैक्सीन आ जाने के बावजूद सभी का टीकाकरण करने में कम से कम छह महीने लग जायेंगे। ये चेतावनी भी अधिकारिक तौर पर दी जा रही है कि सर्दियां शुरू होते ही कोरोना के दोबारा फैलाव के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित हो जायेंगी। विशेष तौर पर अस्थमा जैसी बीमारी से ग्रसित बुजुर्ग उसकी चपेट में आ सकते हैं। इसलिये एक महीने से आ रहे संतोषजनक आंकड़ों को कोरोना की इतिश्री मान लेना मूर्खता होगी। बेहतर यही होगा कि जीवन को पहले जैसा सामान्य बनाने के साथ ही कोरोना से बचाव के समस्त सुझाये हुए तरीके अपनाते हुए त्यौहार मनाया जाए जिससे कि हम खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों के लिये भी समस्या पैदा न करें। एक और बात जो इस मौके के लिए जरूरी है वह ये कि ज्यादा से ज्यादा खरीदी स्थानीय व्यापारी से की जाए। रोजमर्रे के काम में आने वाली वस्तुएं मसलन किराना वगैरह की खरीदी तो अपने निवास के निकटतम स्थित छोटे अथवा मध्यम व्यापारी से ही किया जाना समयोचित होगा । आजकल ऑन लाइन व्यापार तेजी से पैर पसार रहा है। मध्यम , उच्च मध्यम और उच्च वर्ग में इसकी पहुंच काफी गहराई तक जा पहुँची है। बाजार से कम दाम और घर बैठे आपूर्ति की व्यवस्था सामान्य उपभोक्ता के नजरिये से देखने पर तो फायदे का सौदा है। ख्ररीदी हुई वस्तु को लौटाने की सुविधा ने भी ऑन लाइन व्यापार की प्रगति में उल्लेखनीय योगदान दिया। यद्यपि आधुनिकता के साथ व्यापार के पारम्परिक तौर - तरीके भी बदलने स्वाभाविक हैं और उपभोक्ता अपने अधिकार और सुविधाओं के प्रति काफी सजग भी हुआ है। लेकिन ऑन लाइन शॉपिंग को बढ़ावा देने के साथ ही हमें उस छोटे स्थानीय व्यापारी की रोजी - रोटी की चिंता भी करनी चाहिए जो हर परिस्थिति में हमारी छोटी - छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए तैयार रहता है। कोरोना क़ाल में लॉक डाउन के दौरान जब सब कुछ बंद हो गया तब गली - मोहल्ले के छोटे - छोटे व्यापारी हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहे। हालाँकि इससे उनकी आजीविका भी जुड़ी हुई थी लेकिन जान को खतरा भी कम नहीं था। बेहतर होगा उस प्रतिबद्धता के आभार स्वरूप इस दीपावली पर ज्यादा से ज्यादा खरीद छोटे व्यापारी से की जाए। ऑन लाइन व्यापार करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से खरीददारी करने के पहले हमें एक बार छोटे स्थानीय व्यापारी का ध्यान करना चाहिए जो हमारी सामाजिक व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है। ये दीपावली भारतीय समाज के हर हिस्से के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। लगभग सात महीने के ठहराव के बाद किसी तरह देश पटरी पर लौट रहा है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि अर्थव्यवस्था के मूल आधार के प्रति समाज सम्वेदनशीलता का परिचय दे। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा वोकल फॉर लोकल का जो सूत्र दिया वह केवल स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित करने तक ही सीमित न रहकर स्थानीय व्यापारी के लिए भी है । कोरोना रूपी संकट का जिस तरह पूरे समाज ने एकजुट और अनुशासित होकर मुकाबला किया वैसा ही अब अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए भी हो और ऐसा करते समय छोटे कारोबारी का ध्यान उसी तरह रखा जाना चाहिए जिस तरह मिट्टी से बने दिये खरीदते समय हम उन्हें बनाने और बेचने वाले की मदद करने के भाव से प्रेरित होते हैं।
- रवीन्द्र वाजपेयी
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