Wednesday 28 October 2020

कश्मीर में भू स्वामित्व : काश ये निर्णय पहले हो पाता



वैसे तो नागालैंड और हिमाचल प्रदेश में भी किसी अन्य राज्य का नागरिक जमीन-जायजाद नहीं खरीद सकता लेकिन जम्मू कश्मीर की स्थिति कुछ अलग है। गत दिवस केंद्र सरकार ने वहाँ के भू स्वामित्व अधिनियम में बदलाव करते हुए जो नए प्रावधान किये उनके अनुसार अब वहां मकान, उद्योग, दुकान अदि के लिए भारत का कोई भी नागरिक भूमि खरीद सकेगा। लेकिन अभी भी खेती हेतु जमीनें खरीदने पर रोक रहेगी। गत वर्ष केंद्र शासित राज्य का दर्जा मिलने के बाद से इस राज्य की विशेष स्थिति को बदलने की दिशा में अनेक कदम उठाये जा चुके हैं। लेकिन इस संशोधन से जम्मू कश्मीर और शेष भारत का सम्बन्ध सही मायनों में मजबूत होगा। केंद्र सरकार इस राज्य के विकास के लिए जो ढांचा खड़ा करना चाहती है उसके लिए इस तरह के प्रावधान आवश्यक हैं अन्यथा भूस्वामित्व के बिना कोई भी वहां निवेश करने से हिचकिचायेगा। कोरोना के कारण वैश्विक निवेशक सम्मेलन नहीं हो सका, वरना अब तक वहां विकास के नये प्रकल्प शुरू हो चुके होते। सबसे बड़ी बात ये है कि शासकीय सेवा या किसी और कारण से जि़न्दगी का बड़ा हिस्सा इस राज्य में व्यतीत करने वाले दूसरे राज्यों के हजारों लोग वहां घर बनाकर रहने के अधिकार से वंचित थे। आजादी के बाद पंजाब से वाल्मीकि समाज के हजारों लोगों को इस राज्य में सरकारी नौकरी दी गई। लेकिन आज तक उन्हें न वहां की नागरिकता मिल सकी थी और न ही संपत्ति का अधिकार। गत वर्ष अनुच्छेद 370 और 35 ए हटने के बाद वे इस राज्य के नागरिक बनाए गए और मतदान करने का अधिकार भी उन्हें दिया जा रहा है। इस रोक की वजह से जम्मू कश्मीर में अलगाववाद की भावना को विकसित करने में मदद मिली। यहाँ तक कि इस सीमावर्ती राज्य की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले किसी अन्य राज्य के सैनिक के परिवारजन तक यहां बसने के लिए अपात्र थे। जहाँ तक बात हिमाचल सहित कुछ पूर्वोत्तर राज्यों की है तो वहां के हालात जम्मू-कश्मीर से सर्वथा भिन्न हैं और फिर वहां भूमि की उपलब्धता भी कम है। वैसे भी नागालैंड आदि मुख्यधारा में पूरी तरह से शामिल हो चुके हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के पहले से ही देश विरोधी भावनाओं का बीजारोपण शेख अब्दुल्ला द्वारा कर दिया गया था। दुर्भाग्य से पंडित नेहरु उनके मोहपाश में जकड़े रहे जिसका खामियाजा सात दशक तक देश को भुगतना पड़ा। बहरहाल, गत वर्ष हुए बदलाव के बाद अब जम्मू-कश्मीर को व्यवहारिक रूप से भारत के साथ जोड़ने की प्रक्रिया के अंतर्गत भूस्वामित्व अधिनियम में किया गया ताजा संशोधन एक नए युग का सूत्रपात करेगा। बहुत सारे सेवानिवृत्त फौजी भी इस राज्य में बसना चाहते हैं। केंद्र सरकार को चाहिये उनके लिए विशेष आवासीय व्यवस्था करे क्योंकि उनके वहां रहने से राष्ट्रवादी लोगों को मानसिक संबल मिलेगा। जहाँ तक बात कश्मीरी पंडितों की वापिसी की है तो वह तभी सम्भव हो सकेगी जब दूसरे समुदाय के लोग भी उनके साथ वहां बसाए जाएं। अन्यथा उनकी स्थिति पहले जैसी ही दांतों के बीच में जीभ की तरह होकर रह जायेगी। उस दृष्टि से केंद्र सरकार का संदर्भित निर्णय बहुत ही दूरगामी प्रभाव डालने वाला है और 370 तथा 35 ए हटाने का असली लाभ इसके लागू होने के बाद ही देखने मिलेगा। हालांकि ये काम उतना आसान नहीं है जितना ऊपर से लग रहा है। अलगाववादी ताकतें लोगों को बरगलाने की कोशिशें बंद कर देंगी ये सोचना तो जल्दबाजी होगी। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया इसका संकेत है। कुछ लोगों को ये आशंका भी है कि नये संशोधनों से वहां भूमाफिया और बड़े उद्योगपति जमीन कब्जाने का काम करने लग जायेंगे। लेकिन दूसरा पहलू ये भी है कि इस राज्य का औद्योगिक विकास अब तक इसीलिये रुका रहा क्योंकि भूस्वामित्व के अभाव में देश के बड़े उद्योगपतियों ने यहाँ निवेश में रूचि नहीं ली। दरअसल अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार चाहते भी नहीं थे कि राज्य, विशेष रूप से घाटी में औद्यगिक ढांचा खड़ा हो सके। ले देकर कश्मीर घाटी में पर्यटन ही एकमात्र पालक उद्योग है और वह भी आतंकवाद की वजह से काफी प्रभावित हुआ। इस संशोधन से अब जम्मू अंचल सहित घाटी में विकास का सूर्योदय हो सकेगा। सबसे बड़ी बात ये है कि वहां का जनसंख्या असन्तुलन भी इसके कारण दूर होगा जो कि रणनीतिक तौर पर बेहद जरूरी है। कुल मिलाकर केंद्र सरकार का ये फैसला बहुप्रतीक्षित और बहुउद्देशीय है। खेती के लिए जमीन खरीदने को इससे मुक्त रखना समझदारी भरा कदम है वहीं स्कूल , अस्पताल आदि के लिए कृषि भूमि के उपयोग परिवर्तन की सुविधा भी स्वागतयोग्य है। कोरोना संकट के बाद यहाँ निवेश की प्रचुर संभावनाएं हैं। भूस्वामित्व अधिनियम में बदलाव इस राज्य को समस्याग्रस्त से सम्भावनायुक्त बनाने में निर्णायक साबित होगा, ये उम्मीद करना बेमानी नहीं है। इसके सफलतापूर्वक लागू होने के बाद हिमाचल और नागालैंड आदि में भी ऐसे ही बदलाव किये जाने का रास्ता खुल जायेगा। काश, ऐसा फैसला यदि पहले किया जा सकता तब कश्मीर में अलगाव और आतंकवाद की जड़ें इतनी गहराई तक नहीं फ़ैल पातीं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment