कल से नवरात्रि प्रारम्भ हो रही है | इसी के साथ भारत में त्यौहारी मौसम की शुरुवात हो जायेगी | खरीफ फसल भी आने लगी है | बरसात के बाद घरों की साफ़ - सफाई का काम भी रफ्तार पकड़ने लगा है | महीनों से सूने पड़े देवी मंदिरों पर भक्तों की मौजूदगी नजर आयेगी | दीपावली महोत्सव की शुरुवात भी इसी समय से हो जाती है | दुर्गा पूजा और दशहरा के कारण सर्वत्र चहल पहल होना स्वाभाविक है | बीते लगभग सात महीने से कोरोना के कारण भय का जो महौल बना हुआ था उसमें कुछ हफ्तों से कमी आई है | इसका कारण संक्रमण में गिरावट आना है | जिस तेजी से सक्रिय मरीजों की संख्या घट रही है वह इसी योजना का हिस्सा है या वास्तविकता ये तो स्पष्ट नहीं है लेकिन उस कारण देश में दशहरा - दीपावली को लेकर उत्साह बढ़ा है | सरकारी तौर पर भी सार्वजनिक दुर्गा पूजा को कतिपय प्रतिबंधों के साथ आयोजित किये जाने की अनुमति दे दी गई है | बाजारों में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विज्ञापनों का दौर चल पड़ा है | केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों में एक लाख करोड़ रूपये बांटकर उन्हें खरीदी करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है ताकि उद्योग और व्यापार दोनों को सहारा मिले और उसको राजस्व | लेकिन कोरोना का प्रभाव कम भले हो रहा है फिर भी ये मान लेना भयंकर भूल होगी कि उसकी विदाई का समय आ चुका है | ऐसा कहने के पीछे न तो लोगों का मनोबल तोड़ने का उद्देश्य है और न ही त्यौहारों की खुशी में खलल डालने का , मगर ध्यान देने वाली बात ये है कि लॉक डाउन के जरिये भारत में कोरोना के फैलाव को रोकने में जो सफलता मिली उससे सरकार और जनता दोनों अति उत्साह में आ गये और लॉक डाउन में ढील दे दी गई | जब पहली बार शराब की दुकानें खोली गईं तो पीने के शौकीनों ने सारे नियंत्रणों को धता बाते हुए व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दीं | वह एक तरह का संकेत था लोगों के स्वभाव और व्यवहार का | लेकिन अर्थव्यवस्था के दबाव के कारण सरकार को भी मजबूर हो जाना पड़ा | बहरहाल जिस दिन से लॉक डाउन हटा उसी के बाद से कोरोना का संक्रमण सुरसा के मुंह की तरह फैलता चला गया और सितम्बर का आखिरी हफ्ता आते - आते तक एक लाख से ज्यादा नए कोरोना मरीज प्रतिदिन की औसत से निकलने लगे | इसकी वजह से शासकीय चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई | जिसका लाभ उठाते हुए निजी अस्पतालों ने मरीजों का जमकर शोषण किया | बहरहाल बीते तीन सप्ताह से संक्रमण पर काफी नियन्त्रण होता दिखाई दिया है और जो आंकड़े आ रहे हैं उनके अनुसार रोजाना स्वस्थ होने वाले मरीज नये संक्रमितों की तुलना में ज्यादा होने से ऐसा माना जाने लगा है कि भारत में अब कोरोना का ढलान शुरू हो गया है और बड़ी बात नहीं यदि नवंबर खत्म होते तक वह पूरी तरह से खत्म हो जाए | सरकारी दावों के अनुसार जनवरी 2021 से कोरोना की वैक्सीन भारत में उपलब्ध हो जायेगी | लेकिन यूरोप के दो अति विकसित देश फ़्रांस और जर्मनी के ताजा हालात भारत के लिए चेतावनी हैं | इन दोनों ने कोरोना पर काफ़ी हद तक काबू पा लिया था जिसके बाद वहां जनजीवन पूरी तरह सामान्य होने लगा | सीमित जनसंख्या के अलावा इन देशों की स्वास्थ्य सेवाएं भी उच्चस्तरीय हैं और हर व्यक्ति के पास चिकित्सा बीमा जैसी सुविधा भी होती है | उस दृष्टि से भारत काफी पीछे है | हालांकि कोरोना काल में हमारे यहाँ भी चिकित्सा सुविधाओं का काफी विकास होने के साथ ही जांच का काम भी तेज हुआ लेकिन फ़्रांस और जर्मनी से तुलना करने पर हमारी कमियां खुलकर सामने आ जायेंगी | चिकित्सा बीमा सुविधा से भी आबादी का बड़ा वर्ग वंचित ही है | उक्त दोनों देशों में अचानक कोरोना ने दोबारा हमला किया और देखते ही देखते स्थिति कर्फ्यू लगाने तक आ पहुँची | फ़्रांस और जर्मनी दोनों इसकी वजह से सकते में हैं | जबकि वहां कोरोना से सम्बन्धित सावधानियों का पालन करने के प्रति लोगों में काफी जागरूकता है और सार्वजनिक आचरण भी काफी अनुशासित होता है | इसके विपरीत भारत में हालात काफी उलट हैं | घनी आबादी , बेतरतीब बसाहट , सर्वत्र भीड़ , धक्का - मुक्की और नियमों के पालन के प्रति लापरवाही युक्त हेकड़ी हमारी पहिचान है | ऐसे में नवरात्रि से प्रारम्भ हो रहे त्यौहारी मौसम में कोरोना से बचाव के प्रति थोड़ी सी भी असावधानी संक्रमण को महामारी में बदल सकती है जिससे सौभाग्यवश अभी तक भारत बचा रहा | अनेक चिकित्सा विशेषज्ञ भी इसे लेकर सतर्क कर रहे हैं | दुर्गा पूजा के दौरान बंगाल सहित समूचे पूर्वी भारत में जबर्दस्त उत्साह रहता है | इसीलिये इस बात का भय जताया जा रहा है कि नवरात्रि के बाद बंगाल में कोरोना सुनामी बनकर कहर ढा सकता है | ऐसी ही आशंका देश के अन्य हिस्सों में भी बनी हुई है | अर्थव्यवस्था और सरकार की अपनी - अपनी मजबूरियां हैं, लेकिन आम जनता को भी अपनी और अपनों की जान की हिफाजत के लिए पूरी तरह सावधान रहना होगा | त्यौहार मनाते समय अपनी खुशी और जोश को नियन्त्रण में रखना समय की मांग है | दुर्गा पूजा से लक्ष्मी पूजा तक का समय इस दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील रहेगा | इस दौरान बरती गयी जरा सी लापरवाही रंग में भंग न कर दे ये देखना हर जिम्मेदार नागरिक का दायित्व है |
-रवीन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment