Saturday 24 October 2020

फिलहाल कश्मीर विधानसभा को भंग रखना ही बेहतर रहेगा



जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने गत दिवस कहा कि जब तक राज्य का पुराना झंडा दोबारा उन्हें नहीं मिलेगा तब तक वे तिरंगा भी नहीं थामेगीं और चुनाव भी नहीं लड़ेंगी। उन्होंने अनुच्छेद 370 की बहाली का मुद्दा भी उठाया। स्मरणीय है जम्मू कश्मीर राज्य का अलग संविधान और झंडा हुआ करता था। गत वर्ष किये गये बदलाव के बाद वह विशेष स्थिति खत्म हो गई और अलग संविधान तथा झंडा इतिहास बन गया। नई व्यवस्था के अनुसार उसे दो केंद्र शासित राज्यों में बाँट दिया गया। जम्मू और कश्मीर जहाँ एक साथ रखे गए वहीं लद्दाख को अलग कर दिया गया। मोदी सरकार के उस दांव से इस राज्य में एक नये युग की शुरुवात हो गई। हालाँकि उसके राजनीतिक परिणाम आना बाकी हैं क्योंकि विधानसभा अब तक भंग है और महबूबा, फारुख अब्दुल्ला, उमर तथा उनके अलावा लगभग सभी अलगाववाद समर्थक नेता बीते सवा साल में अधिकतर समय बंद रखे गये। महबूबा भी हाल ही में रिहा की गईं थी। उसके बाद पीडीपी के अलावा नेशनल कांफ्रेंस औए कुछ छोटे दलों ने मिलकर 370 की वापिसी के लिए संघर्ष का ऐलान किया। महबूबा ने गत दिवस जो कुछ भी कहा वह उसी की शुरुवात लगती है। लेकिन पुराने झंडे की वापिसी तक तिरंगा भी नहीं फहराए जाने की बात से साबित होता है कि वे अपनी बनाई दुनिया से बाहर नहीं निकल पा रहीं। कश्मीर में अलगावावाद की भावना पूरी तरह खत्म हो गई ये कहना सच्चाई को झुठलाना है लेकिन ये सही है कि बीते लगभग 15 महीने में वहां की जनता ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जिससे लगता कि वह नेताओं की नजरबंदी के विरुद्ध हो। इस दौरान दर्जनों आतंकवादी मार गिराए गए लेकिन मुठभेड़ के दौरान उनके बचाव के लिए सुरक्षा बलों पर पथराव करने जैसी घटनाएँ पूरी तरह से रुक गईं। जनाजे में उमड़ने वाला जनसैलाब भी नजर नहीं आया। इसकी वजह ये रही कि केंद्र शासित हो जाने से राज्य की पुलिस और प्रशासन दोनों दिल्ली के नियन्त्रण में आ गये। फारुख , बात तो फांसी पर चढ़ जाने तक की करते हैं लेकिन बीते मार्च में पुत्र सहित रिहा होने के बाद भी 370 की बहाली के लिए किसी बड़े आन्दोलन की जमीन तैयार नहीं कर सके। महबूबा की रिहाई होने पर नेशनल कांफ्रेंस के साथ कुछ दलों की जो बैठक हुई उससे भी कोई ठोस बात सामने नहीं आई। उस बैठक में कांग्रेस की गैर मौजूदगी से ये संकेत मिला था कि वह इन पार्टियों के साथ खड़े होने से बच रही है। इसका प्रमाण गत दिवस कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा महबूबा के तिरंगे संबंधी बयान का विरोध किये जाने से मिला। तिरंगा नहीं थामने के अलावा चुनाव नहीं लड़ने के उनके बयान पर फारुख और उमर की कोई प्रतिक्रिया नहीं आने से ये साबित होता है कि राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियां एकमत नहीं हैं। महबूबा ने पहले भी धमकी दी थी कि 370 हटाने पर घाटी के भीतर तिरंगा उठाने वाला नहीं मिलेगा। दरअसल पीडीपी के अनेक बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और महबूबा भाजपा के साथ सरकार चलाकर अपनी धाक गंवा चुकी हैं। इसलिए चुनाव नहीं लड़ने का उनका ऐलान उंगली कटाकर शहीद होने का प्रयास लगता है। लेकिन उनका तिरंगा सम्बन्धी बयान हर दृष्टि से निंदनीय है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने उसकी आलोचना कर प्रशंसा योग्य कार्य किया है। बेहतर हो बाकी पार्टियाँ भी उसके विरोध में खड़ी हों। इस बारे में वामपंथी दलों की भूमिका पर भी सबकी नजर रहेगी। महबूबा की रिहाई के बाद जिन दलों की संयुक्त बैठक में 370 की बहाली के लिए संघर्ष का निर्णय हुआ था उसमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी। ऐसे में उसे ये साफ़  करना चाहिए कि क्या वह महबूबा के बयान से सहमत है? वैसे भी ये पार्टी चीन समर्थक मानी जाती है जो 370 हटाये जाने के विरुद्ध संरासंघ तक में भारत विरोधी मुहिम चला चुका है। कुल मिलाकर महबूबा ने एक ऐसा मुद्दा छेड़ दिया जिसका समर्थन करने में जम्मू कश्मीर की अन्य पार्टियाँ भी दस बार सोचेंगी। राज्य का अलग झन्डा होने की बात तो अब्दुल्ला एन्ड कम्पनी भी करेगी किन्तु चुनाव नहीं लड़ने जैसा फैसला नेशनल कांफ्रेंस शायद ही करे। ये भी कह सकते हैं कि महबूबा ने 370 समर्थक पार्टियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने के लिए ये दांव चला हो। बहरहाल इतना तो है कि नेशनल कांफ्रेंस ,  पीडीपी और हुर्रियत के पास अब पहले जैसा जनसमर्थन नहीं रहा। बीते एक साल में जनता को ये लग गया है कि अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार ने सत्ता के लिए सिद्धांतविहीन समझौते करने के साथ ही भ्रष्टाचार से अकूत दौलत कमाई और केंद्र से आया हुआ अरबों-खरबों रुपया खुर्द- बुर्द कर दिया गया। वैसे बेहतर यही होगा कि जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग ही रहने दी जाए तथा विकास के कामों में तेजी लाकर जनता को ये एहसास करवाया जाए कि अलगवावाद की बात करने वाले कश्मीर की तरक्की में सबसे बड़ा रोड़ा हैं। कुछ दिन पहले फारुख ने चीन का समर्थन लेने की बात कही थी और अब महबूबा ने तिरंगे और चुनाव के बहिष्कार का ऐलान करते हुए साबित कर दिया कि उनकी सोच कुत्ते की पूंछ समान है। कश्मीर के आम लोगों विशेष रूप से युवाओं को धीरे-धीरे ये समझाया जाना चाहिए कि 370 हटने से यदि किसी को नुकसान हुआ तो वह अब्दुल्ला और मुफ्ती खानदान के अलावा हुर्रियत के नेताओं का जिन्हें अलगाववाद की भावना बनाये रखने के लिए पाकिस्तान से समर्थन और संसाधन मिला करते थे। रही बात आम जनता की तो बीते एक साल में वह जितने शांतिपूर्ण माहौल में रही वह उसके लिए सुखद अनुभव है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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