Wednesday 21 October 2020

राहुल की आलोचना पर नाथ का जवाब नये समीकरणों का संकेत



मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस के वरिष्ट नेताओं में हैं। 1980 में जब वे छिंदवाडा से लोकसभा चुनाव लड़ने आये तब उन्हें वहाँ कोई नहीं जानता था। लेकिन स्वयं इंदिरा जी ने चुनावी सभा में उनको अपना तीसरा बेटा कहकर समर्थन की अपील की जिसका जादुई असर भी हुआ। सांसद बनने के बाद श्री नाथ ने छिंदवाड़ा से अपने रिश्ते इतने प्रगाढ़ कर लिए कि लोगों को ये याद ही नहीं रहा कि वे कभी बाहरी भी थे। गांधी परिवार से निकटता का लाभ लेते हुए वे मप्र की राजनीति में एक छत्रप बनकर स्थापित हो गये। इंदिरा जी की मृत्यु के बाद राजीव गांधी सत्ता में आये तब कमलनाथ की गिनती उनके ख़ासमखस में होने लगी। अपनी कार्यकुशलता और संपर्कों के बल पर वे कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में भी अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए। केन्द्रीय मंत्री के तौर पर भी उनका काम  सराहा गया , वहीं पार्टी संगठन में उन्हें महत्वपूर्ण जवाबदारी मिलती रही। लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी मप्र का मुख्यमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा अधूरी ही थी। अंतत: 2018 में जाकर वह पूरी हुई जब कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद सपा - बसपा और निर्दलीयों का समर्थन लेकर श्री नाथ ने प्रदेश की सत्ता हासिल कर ही ली। चूँकि उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस 15 साल बाद बहुमत की देहलीज तक पहुंच सकी इसलिए सत्ता उनके हाथ चली गई जिसमें उनके करीबी दिग्विजय सिंह का भी हाथ था जिनका उद्देश्य किसी भी तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताजपोशी को रोकना था। उल्लेखनीय है श्री सिंधिया कांग्रेस के चुनाव संचालक थे और भाजपा ने उन्हीं को प्रतिद्वन्दी मानकर पूरा प्रचार अभियान माफ़ करो महाराज , हमारा नेता शिवराज के नारे पर केन्द्रित रखा। ज्योतिरादित्य को भी लगता था कि राहुल गांधी से उनकी नजदीकी मददगार बनेगी किन्तु उनकी सोच गलत साबित हुई। इधर प्रदेश की सत्ता में दिग्विजय सिंह समानांतर मुख्यमंत्री की तरह से काम करने लगे। लोकसभा चुनाव में हालाँकि भोपाल सीट से उनको जबरदस्त पराजय मिली लेकिन उससे भी बड़ा चमत्कार हुआ गुना में श्री सिंधिया के हारने का और वह भी अपने पुराने सहयोगी के हाथों। इसके बाद से प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में कमलनाथ सर्वेसर्वा बनकर उभरने लगे। श्री सिंधिया को उम्मीद थी कि पार्टी हाईकमान उनको कम से कम प्रदेश अध्यक्ष का पद तो दिलवा ही देगा किन्तु श्री नाथ की मोर्चेबंदी की वजह से उनके अरमान पूरे नहीं हो सके और अंतत: वे बगावत की राह पर आगे बढ़े और मार्च खत्म होते तक कमलनाथ सरकार धराशायी हो गई। इसके लिए दिग्विजय सिंह को ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है किन्त्तु सही बात तो ये है कि कमलनाथ की पदलिप्सा की वजह से ही कांग्रेस के हाथ आई सत्ता खिसक गई। वे यदि अध्यक्ष पद पर श्री सिंधिया को बिठाए जाने का समर्थन कर देते तब शायद उनकी सरकार बची रहती। लेकिन उसके बाद भी वे प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद कब्जाये हुए हैं और प्रदेश में हो रहे मिनी आम चुनाव की पूरी कमान अपने नियन्त्रण में ले रखी है। यहाँ तक कि उनके बेहद निकट कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह भी किनारे लगा दिए गए। अजय सिंह राहुल , अरुण यादव और सुरेश पचौरी जैसों का तो अता - पता ही नहीं है। श्री नाथ को उम्मीद है कि उपचुनाव के नतीजे उन्हें दोबारा सत्ता में ले आयेंगे। लेकिन बीते दिनों भाजपा प्रत्याशी इमरती देवी के बारे में की गई अशोभनीय टिप्पणी को कांग्रेसजनों ने भी पसंद नहीं किया। यहाँ तक कहा जाने लगा कि श्री नाथ ने भाजपा को बैठे बिठाये एक मुद्दा दे दिया। चुनाव आयोग ने भी उसे गम्भीरता से लिया। उल्लेखनीय है इमरती देवी कमलनाथ सरकार में भी मंत्री रहीं। उनके बारे में कही गयी बात का संज्ञान लेते हुए कांग्रेस के पूर्व और भावी अध्यक्ष राहुल गांधी ने नाराजगी व्यक्त करते हुए साफ़ - साफ़  कहा कि वे इस तरह की भाषा का समर्थन नहीं करते और जो श्री नाथ ने कहा वह दुर्भाग्यपूर्ण था। उपचुनावों के दौरान राहुल का ऐसा कहना श्री नाथ के लिए किसी तमाचे से कम न था। कांग्रेस में गांधी परिवार के किसी सदस्य द्वारा कही गयी बात को बिना प्रातिवाद के मान लेने का चलन रहा है। लेकिन हाल के कुछ घटनाक्रमों से ये महसूस किया जा सकता है कि वह परम्परा खंडित होने लगी है। कांग्रेस में  पूर्णकालिक अध्यक्ष के लिए चुनाव करवाए जाने की मांग करने वाली चिट्ठी पर तमाम वरिष्ठ नेताओं के हस्ताक्षर किये जाने से ये बात साबित हो गई कि गांधी परिवार का लिहाज टूटने लगा है। जो नेता सोनिया गांधी का नेतृत्व बेहिचक स्वीकार करते रहे वे राहुल के झंडे तले खड़े होने में असहज महसूस करने लगे हैं। इसका ताजा प्रमाण है श्री गांधी की आलोचनात्मक टिप्पणी पर कमलनाथ का माफी मांगने से साफ इंकार करते हुए ये कहना कि ये उनकी राय है। वैसे कमलनाथ सोनिया जी के काफी निकट माने जाते हैं। उनको मुख्यमंत्री बनाये जाने में प्रियंका वाड्रा की भूमिका भी थी लेकिन गत दिवस राहुल द्वारा की गई आलोचना पर उनकी उपेक्षापूर्ण प्रतिक्रिया कांग्रेस के भावी भीतरी समीकरणों का संकेत दे रही है। मप्र के उपचुनाव श्री नाथ ही नहीं बल्कि प्रदेश में कांग्रेस का भविष्य भी तय करने वाले होंगे। जैसी कि सम्भावना व्यक्त की जा रही है उसके अनुसार ले देकर शिवराज सिंह अपनी सरकार बचा ले जायेंगे और तब कांग्रेस में नये सिरे से भगदड़ मचने की आशंका मजबूत हो जायेगी। उससे भी बड़ी बात ये होगी कि सत्ता में वापिस नहीं आई तब श्री नाथ के लिए प्रदेश अध्यक्ष तो दूर नेता प्रतिपक्ष बने रहना भी कठिन हो जाएगा। कांग्रेस की समस्या ये है कि दिग्विजय और कमलनाथ दोनों उम्रदराज हो चुके हैं और ज्योतिरादित्य ने भाजपा का दामन थाम लिया है। इनके अलावा जो वरिष्ठ और युवा नेता हैं उनकी छवि और क्षमता पार्टी को दोबारा खड़ा करने लायक नहीं लगती। ऐसे में राहुल गांधी द्वारा की गई आलोचना के जवाब में कमलनाथ की प्रतिक्रिया पार्टी के भीतर आने वाले तूफान का पूर्व संकेत हो सकती है। ये राहुल जी की राय है लेकिन मैं माफी नहीं मागूंगा जैसा जवाब देकर श्री नाथ ने कौन सा सियासी दांव चला है ये देखने वाली बात होगी। लेकिन मप्र के कांग्रेसजन इस बात को लेकर परेशान होंगे कि इमरती देवी प्रकरण पर वे राहुल की अलोचना का समर्थन कर्रें या उस पर कमलनाथ के जवाब का।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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