Monday 19 October 2020

थरूर में साहस था तो बलूचिस्तान और सिंध जैसे मुद्दे उठाते



कांग्रेस सांसद शशि थरूर की शैक्षणिक योग्यता और राजनयिक अनुभव पर कोई संदेह नहीं कर सकता। अच्छे लेखक और वक्ता के रूप में भी वे प्रतिष्ठित हैं। केरल की तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट से लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद वरिष्ठ सांसदों में उनकी गिनती होती है । लेकिन पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर की तरह वे भी अक्सर ऐसा कुछ कह जाते हैं जिससे उनकी फजीहत तो होती ही है लेकिन कांग्रेस पार्टी को भी मुंह छिपाना पड़ता है। ताजा वाकया श्री थरूर द्वारा लाहौर लिटरेचर फेस्टिवल में वीडियो कांफ्रेंसिंग  के जरिये दिया भाषण है जिसमें उन्होंने कोरोना प्रबंधन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को असफल बताते हुए ये आरोप भी लगाया कि उनकी सरकार ने कोरोना के लिए तबलीगी जमात को जिम्मेदार ठहराकर धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दिया। पूर्वोतर भारत के लोगों की शक्ल के आधार पर उनके साथ भेदभाव का सवाल भी श्री थरूर ने उठाया लेकिन उनके बयान में कोरोना की रोकथाम में भारत की तुलना में पाकिस्तान को सफल बताये जाने पर भाजपा ने जोरदार हमला बोलते हुए कांग्रेस को इस बात के लिए कठघरे में खड़ा किया कि उसके नेता विदेशी मंचों पर भी देश की छवि खराब कर रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने पूर्व गृह मंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा दो दिन पूर्व जम्मू कश्मीर में धारा 370 को पुन: लागू किये जाने संबंधी बयान का भी उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसा कहकर उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की मांग को एक तरह से समर्थन दे दिया। भाजपा प्रवक्ता द्वारा श्री थरूर के भाषण की आलोचना में राजनीति देखी जा सकती है लेकिन निष्पक्ष तौर पर देखें तो एक शत्रु देश के मंच पर देश विरोधी बात कहना श्री थरूर जैसे वैश्विक अनुभव संपन्न नेता से तो कम से कम अपेक्षित नहीं था। लाहौर लिटरेचर फेस्टिवल जयपुर की तर्ज पर आयोजित होता है। श्री थरूर बतौर लेखक उसमें शिरकत करते हुए अपनी पुस्तक या वैसे ही किसी विषय पर बात करते तो किसी को आपत्ति न हुई होती। अगर उन्होंने भारत और पाकिस्तान की साझा साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख करते हुए उसे आगे बढ़ाने की बात कही होती तब उनका स्वागत हुआ होता। यहाँ तक कि अतिथि धर्म का पालन करते हुए कोरोना प्रबंधन के लिए पाकिस्तान सरकार की तारीफ  कर देते तब उसे शिष्टाचार का रूप देते हुए नजरअंदाज किया जा सकता था लेकिन उन्होंने राजनीतिक लाभ की लालसा में अपने ही देश और सरकार की आलोचना करते हुए जो मुद्दे छेड़े वे घोर आपत्तिजनक हैं। कोरोना से लड़ने में भारत सरकार का प्रदर्शन कैसा रहा ये किसी साहित्यिक समागम की विषय सूची का हिस्सा नहीं है। इसी तरह तबलीगी जमात से जुड़े विवाद और पूर्वोत्तर के लोगों के साथ भेदभाव जैसे विषय उठाने का औचित्य और आवश्यकता भी गले नहीं उतरती। श्री थरूर यदि बलूचिस्तान, सिंध और पाक अधिकृत काश्मीर में पाकिस्तान सरकार और सेना द्वारा किये जा रहे अत्याचारों का उल्लेख करते हुए मानवाधिकारों के हनन का सवाल उठा देते तो पूरा देश उनकी शान में कसीदे पढ़ रहा होता। वे इमरान सरकार द्वारा आतंकवाद को प्रश्रय दिए जाने का जिक्र करते  तब लगता कि वे भारत के सही प्रतिनिधि हैं लेकिन ऐसा करने के बजाय उन्होंने लाहौर लिटरेचर फेस्टिवल में जो कुछ कहा वह अप्रासंगिक, अनावश्यक, औचित्यहीन और राष्ट्रीय हितों के सर्वथा विरुद्ध था। उनके वक्तव्य का पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उपयोग भारत विरोधी प्रचार में करे तब श्री थरूर उसका प्रतिवाद किस मुंह से करेंगे इसका जवाब भी उनसे मांगा जाना चाहिए। बेहतर होता कांग्रेस पार्टी खुद होकर श्री थरूर के बयान की आलोचना करते हुए उनसे सवाल करती। देश की सुरक्षा और विदेश नीति के मामले में घरेलू स्तर पर चाहे जितने मतभेद हों लेकिन विदेशी मंचों पर और कम से कम चीन और पाकिस्तान से जुड़े विवादों के बारे में सभी दलों नेताओं को एक स्वर में बोलना चाहिए। उस दृष्टि से श्री थरूर ने राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध जो बयान लाहौर लिटरेचर फेस्टीवल में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये दिया वह न केवल निंदनीय वरन आपतिजनक भी है। कहावत है होशियार कौआ भी कभी-कभार गलत जगह बैठ जाता है। श्री थरूर ने इसे चरितार्थ कर दिखाया। अक्ल का गरूर भी कभी-कभी महंगा साबित होता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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