Tuesday 13 October 2020

ऐसी ही मेहरबानी उद्योग - व्यापार पर भी हो जाये तो बात बन जाए



कोई कुछ दे तो उसके प्रति आभार व्यक्त करना सौजन्यता का तकाजा है | लेकिन गत दिवस  वितमंत्री निर्मला सीतारमण ने केन्द्रीय कर्मचारियों  के लिए जो राहत पैकेज घोषित किया उससे किसे राहत मिलेगी ये विश्लेषण का विषय है | इसमें लीव ट्रेवल कन्सेशन की राशि के अलावा त्यौहारी अग्रिम की राशि भी शामिल है | इनमें पहली तो कर्मचारी को एक तरह से उपहार में दी गई है जबकि दूसरी किश्त्तों में  लौटाना होगी | इसमें भी रोचक बात ये है कि लीव ट्रेवल कन्सेशन की जो रकम दी जायेगी उससे कर्मचारी को 31 मार्च 2021 के पूर्व  ऐसी वस्तुएं खरीदकर उनकी रसीद पेश करनी होगी जिन पर 12 फीसदी से ज्यादा जीएसटी दिया गया हो | इसी तरह 10 हजार का त्यौहारी अग्रिम रुपे कार्ड में दिया जायेगा जिसे लौटाना तो 10 मासिक किश्तों में होगा लेकिन उस राशि  को भी आगामी वर्ष 31 मार्च तक खरीदी के तौर इस्तेमाल करना पड़ेगा | केंद्र सरकार का मानना है कि इससे एक तरफ तो कर्मचारी वर्ग खुश होगा क्योंकि दीपावली पर उसके हाथ में खर्च करने के लिए पैसा आयेगा और दूसरी तरफ बाजार में मांग बढ़ने  से उद्योग व्यापार में जान आने के साथ ही सरकार के खाते में जीएसटी के रूप में राजस्व आयेगा | सतही तौर पर देखने पर तो सरकार का फैसला समयानुकूल लगता है | निश्चित रूप से इसकी वजह से जैसा अनुमान है  लगभग 1 लाख करोड़ की राशि बाजार में आने से कारोबारी जगत को कुछ सहारा मिलेगा | कर्मचारी के पास त्यौहार में खुशियाँ मनाने के लिए नगद  रकम होगी और अन्ततः सरकारी खजाने में भी आवक होगी | लेकिन इसमें बिना ब्याज वाले त्यौहारी अग्रिम  को लेकर तो कोई परेशानी नहीं है क्योंकि ये पहले भी दिया जाता रहा किन्तु लीव ट्रेवल कंसेशन का नगदीकरण करते हुए उस राशि से अगले साल  मार्च तक अनिवार्य रूप से खरीदी करने का जो प्रावधान किया गया उसकी बजाय सरकार उतनी मेहरबानी  उद्योग  - व्यापार जगत पर  बतौर राहत कर दे तो उसका दूरगामी लाभ देश और अर्थव्यवस्था को मिलेगा | मसलन लॉक डाउन के दौरान बिजली बिलों के भुगतान में अब तक किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी गयी | लघु और मध्यम श्रेणी के व्यापारी और उद्योगपति को कोरोना काल में जो आर्थिक क्षति हुई उसकी भरपाई नहीं होने से अब तक उद्योग और व्यवसाय पटरी पर नहीं लौट सका | इसके कारण सरकार को मिलने वाला कर तो घटा ही लेकिन रोजगार में वृद्धि के अवसर भी उत्पन्न नहीं हो पा रहे हैं | उल्लेखनीय है केंद्र और राज्य सरकारें कर्मचारियों और किसानों के लिए तो काफी कुछ कर रही हैं  लेकिन उद्योग और व्यापार के लिए जितने भी पैकेज घोषित हुए उनमें सीधी राहत नहीं दिए जाने से अब तक उसके अपेक्षित परिणाम नहीं आये हैं | खरीददार के हाथ में नगदी होने से वह बाजार में आकर उसे खर्च करता है जिससे अर्थव्यवस्था गतिशील होने से एक तरफ जहां सरकार को राजस्व मिलता है वहीं श्रम शक्ति को भी रोजगार के रूप में आजीविका का साधन मिल जाता है | मौजूदा स्थिति में छोटी और मध्यम  श्रेणी की  लाखों औद्योगिक और व्यापारिक इकाइयां पूंजी के अभाव में घुटनों के बल चलने की स्थिति में हैं | उनके लिए सरकार ने  ऋण की व्यवस्था तो की है लेकिन पहले से कर्ज में डूबे तबके पर नए कर्ज का बोझ समझ से परे हैं | उस दृष्टि से केंद्र सरकार द्वारा गत दिवस घोषित राहत पैकेज कर्मचारियों को भले ही प्रसन्न कर  दे जिसका लाभ बिहार सहित देश में अनेक राज्यों में  होने जा रहे उपचुनावों में भाजपा  को हो जाये लेकिन इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने का उद्देश्य अधूरा रहेगा | बेहतर हो केंद्र सरकार दीपावली के त्यौहारी सीजन के पहले उद्योग व्यापार जगत के लिए भी ऐसी  राहत का ऐलान  करे जिससे कि वे उधार नामक  बैसाखी के बिना अपने पैरों पर खड़े हो सकें |  सरकार को ये बात अच्छी तरह से समझनी चाहिए कि अर्थव्यवस्था तब तक पूरी तरह गतिशील नहीं हो सकेगी जब तक उसे मौजूदा संकट से निकालने के लिए सरकार उदारता नहीं दिखाती | यूँ भी मोदी सरकार पर ये आरोप लगा करता है कि वह उद्योग व्यापार को जितना देती उससे ज्यादा वसूल लेती है | यदि उसका ये नजरिया नहीं बदला तो सकल घरेलू उत्पादन की गिरावट रिजर्व बैंक के अनुमानों से भी ज्यादा हो जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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