Saturday 3 October 2020

न ज्यादा उत्साहित हों न ही डरें लेकिन सतर्कता जरूरी



कोरोना संबंधी जो जानकारी कुछ दिनों से आ रही है उसके अनुसार देश भर में नये संक्रमणों की दैनिक संख्या एक लाख से घटते हुए अब 90 हजार से भी कम होने लगी है। इसी के साथ स्वस्थ होने वाले मरीज किसी-किसी दिन नए संक्रमितों से ज्यादा भी निकलने लगे हैं। निश्चित रूप से ये उत्साहजनक है। चिकित्सा जगत से अधिकृत तौर पर तो कुछ संकेत नहीं है लेकिन अनेक जानकार सूत्र ये बता रहे हैं कि भारत में कोरोना का चरम आ चुका है। उसके अनुसार अब लगातार नए मामले कम होते जायेंगे वहीं स्वस्थ होने वालों का प्रतिशत निरंतर बढ़ता जायेगा। जैसा कि देखने में आया है उसके अनुसार देश में कोरोना पर जीत हासिल करने वाले मरीजों का अनुपात वैश्विक स्तर से बहुत अच्छा है। कोरोना से मौत के गाल में समाने वालों की संख्या भले ही एक लाख पार कर चुकी हो लेकिन भारत की विशाल जनसँख्या, घनी और बेतरतीब बसाहट, बीमार स्वास्थ्य सेवाएं और संक्रामक बीमारियों के फैलाव के अनुकूल परिस्थितियाँ देखते हुए ये आशंका थी कि कोरोना भारत में विकराल रूप धारण कर लेगा और इसके सामुदायिक फैलाव की स्थिति सामने आयेगी। लेकिन अभी तक के अनुभव बताते हैं कि तमाम अव्यवस्थाओं के बावजूद भारत ने कोरोना के विरुद्ध जमकर लड़ाई लड़ी। इलाज और जांच की अपर्याप्त सुविधाएं, अस्पतालों में आईसीयू के अलावा साधारण बिस्तरों की भारी कमी, वैन्टीलेटर, मास्क और सैनिटाईजर जैसे साधनों का अभाव देखते हुए डर का माहौल था। इसीलिये केंद्र सरकार को लॉक डाउन लगाना पड़ा। जिसकी वजह से पूरा कारोबार चौपट होकर रह गया। हालाँकि दो माह बाद सब कुछ खुल गया और धीरे-धीरे ही सही अर्थव्यवस्था के साथ ही जनजीवन सामान्य होने लगा लेकिन ये स्थिति बड़ी ही नाजुक है और इसीलिये चिकित्सक और सरकार दोनों लोगों को आगाह कर रहे हैं कि भले ही आंकड़े उम्मीदें जगा रहे हों लेकिन कोरोना कब छापामार शैली में दोबारा जोरदार हमला कर दे ये कहना कठिन है। एक बात ये भी जो सुनने में आ रही है कि निजी अस्पतालों द्वारा कोरोना की जांच और मृतकों के आंकड़ों को छिपाया जा रहा है। पहले तो केवल सरकारी लैबों में ही कोरोना की जांच होती थी। लेकिन बाद में जबसे निजी लैबों को जाँच हेतु अनुमति मिली तबसे हेराफेरी होने की शिकायतें भी बढ़ चली हैं। ये भी कहा जा रहा है कि सरकारी अमला निजी जांच एजेंसियों को उपकृत करने के एवज में मोटा कमीशन खा रहा है। निजी अस्पताल वाले इन एजेंसियों से मिलकर फर्जी पॉजिटिव मामले निकलवाने का षडयंत्र रच रहे हैं। इस वजह से आंकड़ों को लेकर विश्वास का संकट बना हुआ है। हालाँकि इसके दो पक्ष हैं। एक का कहना है कि मरने वालों की संख्या ज्यादा है जिसे सरकार कम बताती है। दूसरी तरफ  एक आकलन ये भी है कि कतिपय निजी अस्पताल और जाँच एजेंसियां मिलकर निगेटिव को भी पॉजिटिव बनाने जैसा अमानवीय कृत्य करते हुए अपनी तिजोरी भरने में जुटी हुई हैं। और ऐसा इसलिये संभव हो सका क्योंकि सरकारी तंत्र भी इस धंधे में भागीदार है। किसी-किसी मरीज को जबरन निजी अस्पताल वाले बिना जरूरत के भर्ती किये रहते हैं जिससे उनका बिल बढ़ता रहे वहीं दूसरी और जब उन्हें लगता है कि और ज्यादा पैसा देने वाला आ गया तब वे पूरी तरह से ठीक नहीं हुए मरीज को भी घर भेजने की जल्दबाजी करते हैं। ये सब देखते हुए आम जनता को कोरोना संबंधी सभी सावधानियों का पालन गम्भीरता के साथ करना चाहिए। कोरोना का चरम आ चुका या नहीं ये अधिकृत तौर पर स्पष्ट नहीं है और जिस बड़ी संख्या में नए संक्रमण सामने आ रहे हैं उन्हें देखते हुए किसी भी प्रकार का आशावाद घातक हो सकता है। अनेक राजनेता तथा अन्य विशिष्ट जन अपनी लापरवाही के कारण कोरोना ग्रसित हुए। दिल्ली में भी स्थिति पूरी तरह से नियंत्रित हो जाने के बाद वहां की सरकार और जनता दोनों बेफिक्र हो चले थे जिसका दुष्परिणाम कोरोना की दूसरी लहर के तौर पर सामने आया जो पहले की अपेक्षा ज्यादा तेज थी। यही हाल मुम्बई की धारावी झोपड़ बस्ती में हुआ। वहां कोरोना को नियंत्रित किये जाने की खबर ने दुनिया भर का ध्यान खींचा और विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने उसकी प्रशंसा करते हुए उसे एक मॉडल के रूप में स्वीकार किया। लेकिन कुछ समय बाद वहां दोबारा संक्रमण फैलने की शुरुवात हो गई। इसलिये एक तरफ तो सरकार द्वारा दिए जा रहे आंकड़ों से उम्मीद बांधी जा सकती है लेकिन जब ये पता चलता है कि कोरोना कहीं धूप तो कहीं छाँव का खेल रच रहा है तब डर भी लगता है। इसलिए आम जन के लिए बेहतर यही होगा कि परस्पर विरोधी खबरों से न तो ज्यादा उत्साहित हों और न ही हतोत्साहित। कोरोना को लेकर जो भी सावधानियां अपेक्षित और आवश्यक हैं उनका पालन करना ही उससे बचाव का तरीका है। उस दृष्टि से ये समय बहुत ही महत्वपूर्ण है। जिन राज्यों या शहरों में कोरोना का प्रकोप कम हुआ है वहां भी पूरी तरह सतर्क रहना जरूरी है। तमाम सर्वेक्षणों से ये बात सामने आई है कि कोरोना के जो मामले अब आ रहे हैं उनके लिए वे लोग जिम्मेदार हैं जो मास्क जैसी छोटी सी चीज के इस्तेमाल में अपनी तौहीन समझते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी



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