Saturday 31 October 2020

मुनाफा गलत नहीं लेकिन शोषण बंद करें तेल कम्पनियां



अनेक महत्वपूर्ण खबरें अमूमन अखबारों के व्यापार पृष्ठ में छुपकर रह जाती हैं। ऐसी ही एक खबर आज पढ़ने मिली जिसका प्रत्यक्ष संबंध भले ही कम्पनी के घाटे और मुनाफे से हो लेकिन आम भारतीय नागरिक की जेब से उसका सीधा रिश्ता है। इसलिए उसको प्रमुख समाचारों का हिस्सा होना चाहिए था। कोरोना संकट के कारण निजी और सार्वजानिक क्षेत्र के अनेक उद्यम या तो घाटे में चल रहे हैं या फिर उनका मुनाफा घट गया। लेकिन भारत सरकार के स्वामित्व वाली प्रमुख तेल कम्पनी इंडियन ऑयल ने इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में गत वर्ष की तुलना में 10 गुना से ज्यादा मुनाफा कमाकर अपनी स्थिति मजबूत कर ली। जो जानकारी आई है उसके अनुसार गत वित्तीय वर्ष में जून से सितम्बर की तिमाही में इस कम्पनी ने 563 करोड़ का लाभ अर्जित किया था जबकि इस वर्ष की दूसरी तिमाही में इसका लाभ बढ़कर 6000 करोड़ से भी ज्यादा हो गया। इस बारे में चौंकाने वाली बात ये भी है कि गत वर्ष की तुलना में इस तिमाही में बिक्री का आंकड़ा 12 फीसदी घट गया। इसी तरह इंडियन ऑयल ने संदर्भित अवधि में गत वर्ष से 175 लाख टन कम तेल का परिशोधन किया। गत वर्ष की दूसरी तिमाही की अपेक्षा इस साल जून से सितंबर के बीच कम्पनी के बिक्री और परिशोधन दोनों के आंकड़े घटने के बावजूद उसने यदि 10 गुना से भी ज्यादा मुनाफा कमाया जो कि प्रबन्धन के साथ ही सरकार के लिए भी खुशी और संतोष का विषय होगा। किन्तु इस बारे में जो बात निकलकर आ रही है उसके अनुसार लम्बे समय से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम लगातार घटते गये। कोरोना के प्रकोप ने जब दुनिया भर को जकड़ा तब डीजल और पेट्रोल की मांग में भी अप्रत्याशित रूप से कमी आ गई। ऐसे में तेल कम्पनियों ने जमकर खरीदी करते हुए सस्ते कच्चे तेल का आयात करते हुए भण्डारण कर लिया। व्यापारिक दृष्टि से ये एक अच्छा कदम था लेकिन इसका लाभ भारतीय उपभोक्ता तक नहीं पहुंचने से जनता के मन में नाराजगी है। एक ज़माना था जब दाम घटने के बाद भी सरकार ऑयल पूल के पिछले घाटे की भरपाई का बहाना बनाते हुए दाम यथावत रखने का औचित्य साबित किया करती थी। लेकिन फिर एक ऐसा दौर भी आया जब कच्चा तेल लगातार औंधे मुंह गिरता रहा। लेकिन भारत सरकार की तेल कम्पनियों के अलावा केन्द्र और राज्य सरकारों ने ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूलने के नाम पर दाम घटने नहीं दिये। अनेक अवसरों पर देखा गया कि तेल कम्पनियों ने तो कीमतें गिराईं लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारों ने अविलम्ब एक्साइज और वैट बढ़ाकर आम जनता को मिलने वाली राहत में भांजी मार दी। हालाँकि इस नीति के पीछे तेल कम्पनियों और सरकार के अपने तर्क हैं जिनमें कुछ को नकारा भी नहीं जा सकता किन्तु इस बारे में विचारणीय बात ये भी है कि जब पेट्रोल और डीजल के दामों पर से सरकार ने अपना नियन्त्रण खत्म करते हुए उन्हें बाजार के जिम्मे कर दिया तब फिर उनकी कीमतों में कमी का लाभ उपभोक्ता को सीधे क्यों नहीं मिले, इस प्रश्न का समुचित उत्तर सरकार को देना चाहिए। वैसे आयात और निर्यात में संतुलन बनाये रखने की दृष्टि से कच्चे तेल का आयात कम होना फायदेमंद है किन्तु वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत में अपने उन पड़ोसी देशों तक की तुलना में डीजल और पेट्रोल की कीमतें अपेक्षाकृत ज्यादा रहती हैं जिनकी अर्थव्यवस्था हमसे बहुत छोटी है। दरअसल हमारे सरकारी तंत्र का आर्थिक प्रबंधन केवल टैक्स बढ़ाकर खजाना भरने में ही यकीन करता है। जबकि उपभोक्ता को राहत देकर अप्रत्यक्ष रूप से उतने ही कर संग्रह को बेहतर विकल्प माना जाता है। कच्चे तेल के आयात को घटाना निश्चित रूप से एक राष्ट्रीय आवश्यकता है। लेकिन वह सरकारी मुनाफाखोरी का जरिया न बने ये भी उतना ही जरूरी है। इंडियन ऑयल सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी है इसलिए उसे होने वाली कमाई अंतत: सरकार के खजाने को भरने के काम ही आएगी लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र में जिस तरह की फिजूलखर्ची होने लगी है उसे रोकना भी एक उपाय है। कोरोना काल ने आम जनता के साथ ही निजी क्षेत्र को भी कम खर्च में काम करने का जो सबक सिखाया है उसे सार्वजनिक क्षेत्र को भी अपनाना चाहिए। केवल तेल कम्पनियां ही नहीं बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी ग्राहकों का शोषण कर अपनी बैलेंस शीट सुधारने में लगे हुए हैं। कोरोना काल में जब आम आदमी के सामने चौतरफा संकट है और उसकी आय के स्रोत निरंतर सिकुड़ते जा रहे हैं तब शासकीय विभाग और उपक्रम जिस तरह से उगाही के नए-नए रास्ते ढूंढ रहे हैं उनसे ये लगता है कि उनमें तनिक भी व्यवहारिकता नहीं रह गई। एक तरफ तो सरकार बाजार को सहारा देने के लिए अरबों रूपये कर्मचारियों की जेब में डालकर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना चाह रही है वहीं दूसरी तरफ  तेल कम्पनियां पेट्रोल डीजल पर अनाप शनाप मुनाफा बटोरकर जनता की जेब काटने के खेल में लिप्त हैं। ये विरोधाभासी नीति समझ से परे है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम खूब कमाएं और देश के विकास में सहभागी बनें इसमें किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए। लेकिन उनकी कमाई जनता के शोषण का रूप न ले ये भी ध्यान रखने वाली बात है। उम्मीद है इंडियन ऑयल और उस जैसी बाकी सरकारी तेल कम्पनियां बजाय मुनाफे का रिकॉर्ड बनाने के राहत देने का कीर्तिमान भी स्थापित करेंगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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