Monday 2 November 2020

पड़ोसी के घर की आग हमें भी झुलसा सकती है



सऊदी अरब द्वारा जी - 20 सम्मेलन के पहले जारी किये गए एक नक्शे में जम्मू-कश्मीर के गिलगित और बाल्टिस्तान इलाके को पाकिस्तान के कब्जे के बजाय एक स्वतंत्र क्षेत्र बताये जाने पर भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। पाकिस्तान के लिए तो ये एक कूटनीतिक धक्का था ही। लेकिन गत दिवस वहां के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने उक्त दोनों क्षेत्रों को पाकिस्तान का अस्थायी प्रान्त घोषित कर दिया। भारत ने तो इसके विरोध में कड़ा बयान देते हुए पाकिस्तान से ये इलाके खाली कर देने को कहा ही किन्तु समाचार माध्यमों से मिल रही जानकारी के अनुसार गिलगित और बाल्टिस्तान की जनता भी पाकिस्तान के आधिपत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। और इमरान सरकार के विरोध में सड़कों पर उतर आई है। वैसे भी वहां के अंदरूनी हालात बेहद खराब हैं। सिंध में हाल ही में सेना बुलानी पड़ी वहीं बलूचिस्तान पहले से ही आजाद होने के लिए संघर्षरत है। पाक अधिकृत कश्मीर कहने को तो एक स्वायत्त इलाका है लेकिन पाकिस्तान ने वहां कठपुतली सरकार बनवाकर जो दमनचक्र चला रखा है उसकी मुखालफत भी लम्बे समय से चल रही है। इसका अर्थ ये निकालना तो जल्दबाजी होगी कि वे भारत के साथ जुड़ने को तैयार हैं लेकिन इतना जरूर है कि पाकिस्तान के शोषण और ज्यादतियों से त्रस्त होकर उसके कब्जे से आजादी चाह रहे हैं। जबसे इमरान सरकार आई है तबसे पाकिस्तान के भीतरी हालात अनियंत्रित हो चले हैं। इसकी वजह राजनीतिक अनुभव की कमी के साथ-साथ उनका पूरी तरह सेना के नियन्त्रण में होना भी है। उनके दो प्रमुख प्रतिद्वंदी जनरल परवेज मुशर्रफ और नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के मुकदमों में फंसकर सत्ता की दौड़ से बाहर कर दिए गए हैं। उनकी गैर मौजूदगी से मुल्क में नए - नये क्षेत्रीय शक्ति समूह पैदा हो गए हैं। हालांकि इमरान खुद पठान समुदाय से ताल्लुकात रखते हैं किन्तु जिस तरह की परिस्थितियां नजर आ रही हैं उनके अनुसार देर सवेर खैबर पखनूस्तान में भी आजादी की दबी हुई चिंगारी फूटना तय है। अनेक विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही पंजाब और उर्दू भाषा के दबदबे के विरुद्ध देश के बाकी अंचलों में असंतोष बना हुआ है। जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर और उनके पति आसिफ अली जरदारी के रूप में  भले ही सिंध प्रांत को राजनीतिक नेतृत्व का अवसर मिला लेकिन अधिकतर फौजी जनरल चूंकि पंजाब प्रांत से ही आये इसलिए सरकार पर पंजाब का दबाव कायम रहा। इस वजह से प्रशासनिक और सांस्कृतिक तौर पर भी पंजाब को ही पाकिस्तान की पहिचान के तौर पर मान्यता मिली । जिस वजह से उर्दू सिंधी, बलूची और पश्तो भाषा पर लाद दी गयी। यही स्थिति उसके अवैध कब्जे वाले कश्मीर के साथ ही गिलगित और बाल्टिस्तान की है। जिनका भाषायी और सांस्कृतिक स्वरूप सर्वथा भिन्न है। पाकिस्तान ने आतंकवाद को प्रश्रय देने की जो नीति अपनाई उसके कारण देश में अराजकता और अस्थिरता का माहौल चरमोत्कर्ष पर आ गया है। वैसे तो पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता उसके जन्म के कुछ समय बाद ही शुरू हो चुकी थी जिसके कारण फौज समानांतर सत्ता के रूप में स्थापित होने में कामयाब हो गई। और यही उसकी सबसे बड़ी समस्या है। फौजी जनरलों ने अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए मुल्क को सदैव तनावग्रस्त बनाये रखा और प्रजातान्त्रिक तरीके से चुने गए किसी भी नेता को ताकतवर नहीं बनने दिया। वह फौज ही है जिसने पाकिस्तान में धर्मान्धता को राष्ट्रीय चरित्र बनाने में मदद की। आतंकवाद को पाकिस्तान की पहिचान बनाने में भी उसकी प्रमुख भूमिका रही। जुल्फिकार अली भुट्टो, नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो सभी उच्च शिक्षित और आधुनिक सोच वाले माने जाते थे लेकिन वे सभी फौज पर नियन्त्रण रख पाने में असफल रहे और सत्ता से बेदखल किये जाते रहे। इमरान भी उसी श्रेणी के राजनेता बनकर उभरे जिनसे उम्मीद थी कि वे अपनी आधुनिक सोच और वैश्विक छवि के अनुरूप पाकिस्तान को कट्टरपन और आतंकवाद से मुक्त करवाकर नई दिशा की ओर ले जाते हुए भारत के साथ सम्बन्ध सुधारकर विकास का माहौल बनाएंगे। लेकिन उनके साथ भी ये दुर्भाग्य जुड़ गया कि वे जनरल बाजवा के दबाव में आकर भारत से उलझ गये और आज वे पाकिस्तान के अब तक के सबसे कमजोर शासक के तौर पर बदनाम हो चुके हैं। घरेलू हालात के साथ वैश्विक मंचों पर भी इमरान बुरी तरह शिकस्त खा रहे हैं। अपने देश को आतंकवादी घोषित होने से बचाने की उनकी सभी कोशिशें बेकार साबित होने से अमेरिका सहित अन्य देशों से मिलने वाली मदद भी बंद सी ही है। चीन अकेला उसका संरक्षक है लेकिन संरासंघ में वह भी इमरान की मदद नहीं कर पा रहा। वन बेल्ट वन रोड नामक सड़क का गिलगित-बाल्टिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के अनेक इलाकों में जबरदस्त विरोध होने से चीन ने इमरान पर दबाव डालकर उनकी स्वायत्तता खत्म करने के लिए बाध्य किया। इन क्षेत्रों में चुनाव कराए जाने का भी भारत विरोध कर रहा था। हालिया फैसलों पर भारत सरकार की बेहद तीखी प्रतिक्रिया के बाद यदि सीमा पर तनाव बढ़ जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। लेकिन इससे बढ़कर बात अब पाकिस्तान के बांग्ला देश जैसे कुछ और हादसों से गुजरने तक पहुंचने की आशंका तक जा पहुंची है। इमरान खान अपने बनाये जाल में जिस तरह फंसते जा रहे हैं उससे देश में गृह युद्ध के आसार बन गये हैं जिसमें सेना खुद सत्ता पर कब्जा कर सकती है। बलूचिस्तान, गिलगित और बाल्टिस्तान से आ रही खबरें भारत के लिए भी चिंता का कारण है क्योंकि बौखलाहट में पाकिस्तान चीन के साथ मिलकर सीमा पर जंग के हालात पैदा कर सकता है। चीन इन इलाकों में जितना पैसा फंसा चुका है उसके बाद उसका शांत बैठना भी मुश्किल है। ऐसे में भारत को बेहद सतर्क रहना होगा क्योंकि पड़ोसी के घर की आग से अपनी दीवारें भी गर्म तो होती ही हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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