Monday 9 November 2020

स्वच्छ और स्वस्थ पत्रकारिता ही हमारी प्रतिबद्धता



9 नवम्बर 1989 को मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस का पहला अंक आपके हाथ में आया था। महाकोशल में सांध्य दैनिक के रूप में इसके पहले से भी अनेक अखबार थे और कुछ बाद में भी आये। लेकिन तकनीक के विकास और पूंजी के प्रवाह ने समाचार पत्रों को पठनीय कम और दर्शनीय ज्यादा बना दिया तथा प्रतिस्पर्धा में गुणवत्ता की जगह व्यवसायिकता आ गई। परिणामस्वरुप पत्रकारिता में भी चारित्रिक बदलाव बीते कुछ दशकों में अनुभव किया गया। यही वजह है कि आज उस पर जिसे देखो वह उंगली उठा देता है। लेकिन पत्रकार बिरादरी पर छाया अपराधबोध इतना गहरा हो गया है कि आरोपों का प्रतिरोध करने का साहस तक नजर नहीं आता। विश्वसनीयता के जो सवाल समाचार माध्यम उठाकर सत्ता प्रतिष्ठान को घेरते थे उन्हीं का जवाब अब उनसे पूछा जाने लगा है परन्तु दूसरों की टोपी उछालने में विजेता भाव की अनुभूति करने वाले वर्ग के सामने अपनी पगड़ी बचाने की नौबत आ गई है। ऐसा एक दिन या बरस में नहीं हुआ। सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में नैतिक पतन की जो अनवरत प्रक्रिया चल रही है उससे समाचार जगत भी अछूता नहीं रहा। अख़बार जब से उद्योग की शक्ल लेने लगे तब से उनमें होने वाला अनाप-शनाप निवेश अंतत: येन केन प्रकारेण धन बटोरने की हवस का आधार बन गया। और यही वह वजह है जिसने समूचे अख़बार जगत की चाल, चरित्र और चेहरा बदलकर रख दिया। ऐसे में छोटी पूंजी और न्यूनतम संसाधनों के बल पर किसी अखबार का संचालन बड़ा ही कठिन कार्य है। बीते 31 साल के सफर में मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस ने व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ से खुद को दूर रखते हुए पत्रकारिता की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता को अक्षुण्ण रखने का प्रयास पूरी ईमानदारी से किया। इसमें हमारी सफलता का आकलन तो पाठकों का विशेषाधिकार है किन्तु हमें ये कहने में लेशमात्र भी संकोच नहीं है कि तीन दशक की संघर्षपूर्ण यात्रा करने के बाद भी मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस का रंग - रूप नहीं बदला तो उसकी वजह इसी ईमानदारी में छिपी हुई है। ये कड़वी सच्चाई है कि बाजारवादी युग में समाचार का भी खुलकर व्यापार होने लगा है। पेड और प्रायोजित समाचार अब निर्लज्जता के साथ प्रकाशित होते हैं। इस वजह से समाचारों की स्वतंत्रता और पवित्रता का क्षरण हुआ है। पत्रकार और संपादक भी पैकेज के वशीभूत होकर अपनी विचारशक्ति गंवाते जा रहे हैं। शासकीय नीतियां तथा बाजारवादी शक्तियां समूचे समाचार जगत को अपने इशारे पर नचाने पर आमादा हैं। इस सबके बीच एक मध्यम श्रेणी के अखबार का 31 साल तक निर्बाध प्रकाशन किसी चुनौती से कम न था। लेकिन आज ये कहते हुए हमें आत्मगौरव की अनुभूति हो रही है कि मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस ने विषम से विषम परिस्थिति में भी अपने पाठकों की अपेक्षाओं का सम्मान रखते हुए उच्चस्तरीय और निर्भीक पत्रकारिता की परंपरा का अनुसरण किया। इसके लिए हमारे असंख्य पाठक श्रेय के हकदार हैं जिन्होंने अपना समझकर इस अखबार पर स्नेह बनाये रखा। इस अवसर पर मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस प्रशंसकों के साथ ही उन जाने-अनजाने आलोचकों के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करता है जो हमें अपने कर्तव्य का बोध करवाते रहे हैं। यह साल देश के साथ पूरी दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व विपत्ति लेकर आया। कोरोना नामक महामारी ने सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया। आर्थिक संकट से समाज का हर वर्ग जूझ रहा है। ऐसे में समाचार पत्रों के सामने भी अस्तित्व का सवाल आ खड़ा हुआ है। विशेष रूप से लघु और मध्यम श्रेणी के अख़बारों के लिए तो कोरोना काल मानो प्राणवायु के अभाव जैसा है। इस वजह से हमें भी अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना इस दौरान करना पड़ा, जो आज भी जारी है। शासकीय नीतियाँ कहने को तो लघु और मध्यम श्रेणी के अख़बारों को सहायता देने की बात करती हैं लेकिन वास्तविकता ये है कि सत्ता में बैठे मठाधीश, चाहे वे किसी भी दल या विचारधारा के हों , इस बारे में घोर पक्षपाती और काफी हद तक स्वार्थी हो चुके हैं। इन परिस्थितियों में भी मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस हिम्मत और हौसले के साथ आगे बढ़ता जा रहा है। पाठकों का स्नेह और विश्वास ही हमारा सम्बल है। 31 वर्ष पूरे होने के इस अवसर पर हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद भी ये यात्रा निरंतर जारी रहेगी। स्वच्छ और स्वस्थ पत्रकारिता की विरासत को संभालकर रखने के प्रति हम सदैव प्रतिबद्ध रहे हैं और ये प्रतिबद्धता हमारे विचार और आचरण में निरन्तर परिलक्षित होती रहेगी, इस आश्वासन के साथ धनतेरस और दीपावली पर अग्रिम शुभकामनाएँ।
-रवीन्द्र वाजपेयी
संपादक


No comments:

Post a Comment