बिहार विधानसभा चुनाव का अंतिम परिणाम गत मध्यरात्रि के बाद आया | कुछ सीटों पर मुकाबला काफी नजदीकी था इसलिए अंतिम क्षण तक अनिश्चितता बनी रही | अंततः भाजपा की अगुआई वाला एनडीए 125 सीटें लेकर सत्ता में लौट आया | चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा कही गई बात अंत भला तो सब भला पर मतदाताओं के फैसले से मुहर लग गई | लेकिन स्पष्ट बहुमत का ये आंकड़ा भी उनके लिए खुश होने वाली बात नहीं है | वे निश्चित रूप से मुख्यमंत्री के चेहरे थे लेकिन चुनाव प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नाम लिख गया | भाजपा ने जनता दल ( यू ) से काफी ज्यादा सीटें जीतकर दबाव बनाए रखने की हैसियत हासिल कर ली | उसके अलावा एक संकट आख़िरी क्षणों में एनडीए से जुड़े वीआईपी और हम नामक दो दलों के भी चार - चार विधायक जीतकर आये हैं | नीतीश की ताजपोशी में इनकी भूमिका संजीवनी बूटी जैसी होगी | इसलिये ये कड़ी सौदेबाजी करें तो अचरज नहीं होगा | भाजपा भी सत्ता में बड़ा हिस्सा मांगेगी | वीआईपी और हम यदि समर्थन न दें तो एनडीए का बहुमत नहीं रहेगा | जो 8 अन्य जीते भी हैं उनमें दो निर्दलीय और एक बसपा विधायक है | उन्हें नीतीश आसानी से खींच सकते हैं | बचे हुए 5 चूँकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के हैं इसलिए वे भाजपा की संगत वाले नीतीश को शायद ही समर्थन देंगे | ऐसे में भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वायदा तो निभायेगी लेकिन वे सत्ता के केंद्र में रहते हुए भी उतने महत्वपूर्ण और ताकतवर नहीं रहेंगे | सबसे बड़ी बात नई विधानसभा में विपक्ष की प्रभावशाली संख्या होगी | राजद के 75 के अलावा कांग्रेस के 19 और वाम दलों के 16 विधायक मिलाकर सरकार के लिए सदन के भीतर और बाहर कठिन चुनौती पेश करते रहेंगे | हालाँकि कांग्रेस के लिए अपने विधायकों को सहेजकर रखना भी बड़ी समस्या होगी क्योंकि उसके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ही जद ( यू ) के कार्यकारी अध्यक्ष हैं | नीतीश कुमार भले ही इस चुनाव में अपनी पहले जैसी चमक और धमक बरकरार नहीं रख सके लेकिन उनकी राजनीतिक समझबूझ पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए और ये देखते हुए वे कांग्रेस में तोड़फोड़ कर भाजपा तथा बाकी छोटे - छोटे सहयोगियों के दबाव से मुक्त होने का प्रयास सकते हैं | कांग्रेस के विधायकों में से अनेक अपने सुरक्षित भविष्य की खातिर पाला बदल लें तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा | इस लिहाज से चुनाव के बाद भी बिहार में राजनीतिक रस्साखींच जारी रहेगी | नीतीश भले ही सबसे ज्यादा बार शपथ लेने का कीर्तिमान बना रहे हों लेकिन वे अब मजबूर मुख्यमंत्री होंगे और जैसा वे खुद कह चुके हैं ये उनका आख़िरी चुनाव था | बिहार की राजनीति में ये चुनाव दो ताकतों के लिए सुखद रहा | पहली भाजपा जो राजद की बराबरी पर आकर खड़ी होने से अब मुख्यधारा में आ गयी और दूसरी है वाम दल जो लम्बे समय के बाद विधानसभा में दमदारी से बैठेंगे | गत चुनाव में उनकी संख्या महज तीन थी | उल्लेखनीय है एक ज़माने में बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्ष वामदल ही होते थे किन्तु मंडल की राजनीति ने उनको किनारे कर दिया | लेकिन उनका पुनरोदय तेजस्वी यादव के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है क्योंकि अरसे बाद अपने खोई हुई जमीन मिलने के बाद वामपंथी उसका आकार और बढ़ाने में जुटेंगे जिसका खमियाजा सबसे ज्यादा राजद को ही होगा | वैसे नीतीश भी उसमें सेंध लगाने से बाज नहीं आएंगे | मुख्यमंत्री बनने का सपना अधूरा रह जाने के बाद तेजस्वी के आभामंडल में भी कमी आयेगी | उनमें जोश तो है लेकिन उनके पिताश्री की छवि उनका पीछा नहीं छोड़ रही | भले ही वे चुनावी प्रचार में लालू प्रसाद यादव के चित्र और जिक्र से बचते रहे लेकिन ज्योंहीं प्रधानमन्त्री ने जंगल राज का उल्लेख किया त्योंही मतदाताओं को लालू युग की वापिसी का भय सताने लगा जिसने तेजस्वी के हाथ से जीत छीन ली | विपक्ष का नेता बनकर वे कितने सक्रिय रहते हैं इस पर उनका भविष्य निर्भर करेगा | लेकिन उन्हें पार्टी को परिवार से बाहर निकालकर नेतृत्व में नये चेहरों को शामिल करना होगा | वरना उनकी हालत भी उप्र के अखिलेश यादव जैसी होकर रह जायेगी | बड़ी बात नहीं लालू की राजनीतिक विरासत पर काबिज होने के लिए तेजस्वी , उनकी बेटी मीसा भारती और बड़े पुत्र तेजप्रताप के बीच ही महाभारत होने लगे | कुल मिलाकर बिहार की राजनीति अब मंडल युग से बाहर निकलकर राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल हो गई है | लालू युग ढलान पर है , रामविलास पासवान रहे नहीं और उनके बेटे चिराग ने अपनी दुर्गति करवा ली | बचे नीतीश कुमार तो ये वाकई उनका आखिरी चुनाव साबित होगा | लेकिन बिहार की जनता ने भाजपा पर भी बड़ी जिम्मेदारी डाला दी है | नीतीश पूरे चुनाव में दबे - दबे रहे लेकिन प्रधानमन्त्री की धाक और साख ने उनकी नैया पार लगा दी | उस दृष्टि से ये जनादेश भाजपा के कन्धों पर चढ़कर आया है और अगले चुनाव में नीतीश के बजाय वह जवाबदेह होगी जनता की अदालत में | श्री मोदी ने डबल इंजिन वाली सरकार का जो दांव चला वह कारगर रहा | इसलिये अब नया बिहार बनाने के लिए भाजपा को मेहनत करनी होगी | जहाँ तक कांग्रेस का सवाल है तो वह राष्ट्रीय पार्टी होने की ऐंठ तो खूब दिखाती है लेकिन उसके पास न नीति है न ही नेतृत्व | 2015 में वह कम सीटों पर लड़कर जितनी जीती उससे ज्यादा सीटों पर लड़ने के बाद भी उसकी संख्या घट गई | बिहार के नतीजों ने बंगाल के आगामी चुनाव में भाजपा की उम्मीदों को ऊँचा कर दिया है | विपक्षी एकता की संभावनाएं भी कांग्रेस के लचर प्रदर्शन के कारण कमजोर हो रही हैं | राहुल गांधी की अधकचरी राजनीति के कारण भी भाजपा को ताकत मिल रही है | कोरोना के बाद हुए बिहार चुनाव् में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को जो समर्थन मिला उसके बाद भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण और तेज होगा | बिहार के सीमांचल इलाके में एनडीए को मिली सफलता काफी कुछ कह गई |
- रवीन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment