Friday 27 November 2020

कोरोना की दूसरी लहर से गाँव और आदिवासी अंचल को बचाना ज़रूरी




जैसी आशंका थी वैसा ही हो रहा है। बीते कुछ दिनों से कोरोना के नए मामले जिस तरह बढ़ने लगे हैं उसे दूसरी लहर का नाम दिया जा रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में तो तीसरी बार कोरोना ने जोरदार हमला किया है। सुदूर केरल में भी संक्रमण बढ़ोतरी पर है जबकि शुरुवात में कोरोना को नियंत्रित करने के बारे में केरल के मॉडल को देशव्यापी प्रशंसा मिली थी। वैक्सीन आने को लेकर नए-नए दावे तो रोजाना होते हैं। उन्हें बनाने वाली तमाम कम्पनियां अपने उत्पाद को सफल बताने में भी जुटी हुई हैं। लेकिन पक्के  तौर पर उनकी उपलब्धता कब से हो जायेगी ये कह पाना कठिन है। भारत सरकार ने हालाँकि वैक्सीन लगाने के बारे में अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं और जैसा कि सरकारी सूत्र बता रहे हैं उसके अनुसार जनवरी 2021 के बाद से ही व्यापक पैमाने पर कोरोना का टीकाकरण हो सकेगा। देश भर में इस हेतु प्रशासनिक स्तर पर प्राथमिकता तय करने का काम प्रारम्भ होने की जानकारी भी मिल रही है। चिकित्सा कार्य में जुटे लोगों को सबसे पहले और उसके बाद अति बुजुर्ग और वरिष्ठ नागरिकों को वैक्सीन लगाने की योजना है। सभी लोगों तक सरकारी वैक्सीन पहुंचने में तो जैसा केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन कह चुके हैं कम से कम छ: महीने तो लग ही जाएंगे। इसी के साथ ये सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है कि विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में बनवाई गईं वैक्सीन इसी साल दिसम्बर से बाजार में विक्रय हेतु उपलब्ध हो जायेगी। ये सब पढ़ और सुनकर हर देशवासी आशान्वित हो चला है। उसकी जो अनुमानित कीमत बताई जा रही है वह भी मध्यम आय वर्गीय व्यक्ति के बस में लगती है। ऐसे में यदि विदेशी कम्पनियों की वैक्सीन जल्दी आ गई तब आर्थिक दृष्टि से सक्षम लोग सरकार के भरोसे न रहते हुए उसका उपयोग कर लेंगे। लेकिन देश में आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों की संख्या बहुत बड़ी होने से सरकारी वैक्सीन का इन्तजार किया जाना स्वाभाविक है। सही बात तो ये है कि इस वर्ग के भीतर भी बड़ी संख्या उन लोगों की है जिनके लिए कोरोना कोई मुद्दा ही नहीं रहा। मास्क लगाने तक के प्रति वे लापरवाह हैं। सैनेटाईजर जैसी चीज का उपयोग तो उनकी कल्पना से बाहर की बात है। लॉक डाउन लगने के बाद इस वर्ग के सामने पेट भरने की जो समस्या खड़ी हुई वह केंद्र सरकार ने मुफ्त अनाज और जनधन खातों में नगद राशि जमा करवाकर काफी हद तक हल कर दी। इस बारे में ये चौंकाने वाली बात है कि स्वास्थ्य संबंधी मापदंडों के लिहाज से बेहद स्तरहीन परिस्थितियों में रह रहे करोड़ों लोगों पर कोरोना संक्रमण का वैसा असर नहीं हुआ जैसा आशंकित था। इसी तरह आदिवासी अंचलों में भी कोरोना का प्रकोप न के बराबर रहने से वह महामारी नहीं बन सका , वरना हालात अमेरिका से भी बदतर हो सकते थे। चिकित्सा विज्ञान से जुड़े शोधकर्ताओं को इसके कारणों का अध्ययन करना चाहिए। वैसे साधारण तौर पर ये माना जा रहा है कि इस वर्ग के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने से वे इस संक्रमण से बचे रह सके। लेकिन आगे भी ऐसा होता रहेगा इसे लेकर आश्वस्त हो जाना खतरनाक हो सकता है। दुनिया के अनेक देशों में ये देखने मिल रहा है कि कोरोना ने अपने दूसरे हमले में पहले से अछूते इलाकों को अपनी लपेट में ले लिया जिसकी वजह से अपने को सुरक्षित मानकर चल रहे लोग उसकी गिरफ्त में आ गए। इसलिए भारत के लिए अगले दो महीने विशेष सावधानी के रहेंगे। दीपावली के समय बाजारों में उमड़ी भीड़ देखकर कोरोना की जिस दूसरी लहर का अंदेशा व्यक्त किया गया था उसका आगमन साफ़ तौर पर नजर आने लगा है। विशेष रूप से बड़े शहरों में तो हालात पहले जैसे बनने लगे हैं। अब चूँकि लॉक डाउन हट चुका है और आवाजाही भी बढ़ गई है इस कारण कोरोना संक्रमण के सुदूर ग्रामीण अंचल, विशेष रूप से आदिवासी इलाकों तक पहुँचने का खतरा पहले से कहीं ज्यादा है। इसलिए इस बारे में शासन-प्रशासन को विशेष सावधानी बरतना होगी। दुर्भाग्य से आदिवासी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं की हालत बहुत खराब होने से वहां मलेरिया जैसी बीमारी तक का समुचित इलाज समय पर उपलब्ध नहीं होता। ऐसे में कोरोना संक्रमण की चिकित्सा तो दूर उसकी समय पर जाँच भी नामुमकिन होगी। इसीलिये कोरोना की दूसरी लहर से ऐसे क्षेत्रों को बचाकर रखना बहुत जरूरी है। केंद्र और राज्य सरकारों को इस दिशा में गंभीरता से ध्यान देना होगा। ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में कोरोना से रोकथाम के उपायों के बारे में लोगों को जागरूक के साथ जिम्मेदार भी बनाया जाना चाहिए क्योंकि इन क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का पहुँचना इसे महामारी में बदल सकता है। ऐसा न हो कि पूरा ध्यान केवल महानगरों और नगरों पर ही सीमित रहे और कोरोना दबे पाँव हमारे गांवों और आदिवासी क्षेत्रों में तांडव करने लगे।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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