Wednesday 4 November 2020

रेल यातायात रोकना जनविरोधी : सख्त कार्रवाई जरुरी



राजस्थान में गुर्जर आरक्षण की मांग कर रहे आन्दोलनकारी रेल की पटरियों पर धरना दिए हुए हैं। महिलाएं भी साथ आ गई हैं। दिल्ली-मुम्बई के बीच चलने वाली दर्जनों यात्री और मालगाड़ियां रद्द करनी पड़ी हैं। दीपावली मनाने अपने घर जाने वाले हजारों यात्री इस वजह से फंस गये हैं। प्रदेश सरकार द्वारा कुछ मांगें मान लिए जाने के बाद एक गुट ने तो आन्दोलन वापिस ले लिया लेकिन गुर्जरों का दूसरा तबका अब भी असंतुष्ट है और वही रेल पटरियों पर जमा हुआ है। राजस्थान की कांग्रेस सरकार के लिए ये आन्दोलन बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है। दूसरी तरफ पंजाब में भी किसान केंद्र के कृषि सुधार कानूनों के विरोध में रेल पटरियां कब्जाए बैठे हैं। पहले तो मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह सहित पूरी कांग्रेस और अकाली दल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए किसानों को लामबंद करते रहे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ट्रैक्टर पर बैठकर आन्दोलन का नेतृत्व किया। केंद्र के कानूनों को बेअसर करने के लिए राज्य सरकार ने नये कानून बनाकर किसानों को खुश करने का दाँव चला लेकिन उसके बाद भी वे संतुष्ट नहीं हुए। रेल पटरियां खाली करने भेजे गये मंत्रियों तक को उलटे पाँव लौटा दिया गया। इस तरह ये साफ़ हो गया कि राजस्थान के गुर्जर और पंजाब के किसान आन्दोलन में एकता नहीं है और दोनों राज्यों की सरकारों द्वारा उनके तुष्टीकरण हेतु उठाये गए कदमों का कोई असर नहीं दिख रहा। आंदोलनकारियों की मांगे उचित हैं या अनुचित ये अलग विश्लेषण का विषय है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि रेल पटरियों पर कब्जे द्वारा यात्रियों को मुसीबत में डालकर अपनी मांगें मनवाने का दबाव बनाना कहाँ तक सही है और राज्य सरकारें ऐसे आन्दोलन को रोकने के लिए सख्ती करने से क्यों डरती हैं? राजस्थान और पंजाब दोनों में कांग्रेस की सरकारें हैं। आन्दोलन के पीछे भी इसी पार्टी के नेताओं की भूमिका थी। राजस्थान के हालिया राजनीतिक संकट के परिप्रेक्ष्य में ये भी माना जा रहा है कि गुर्जर आरक्षण आन्दोलन के पीछे सचिन पायलट का हाथ भी हो सकता है। स्मरणीय है श्री पायलट ने जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरुद्ध बगावत का रास्ता अख्तियार किया तब पड़ोसी राज्यों के गुर्जर समाज ने भी उनके समर्थन में आवाज उठाई थी। श्री गहलोत के मनाने पर गुर्जरों का एक गुट तो ठंडा हो गया लेकिन जिस गुट ने अभी तक रेल पटरियां कब्जा रखी हैं वह श्री पायलट का समर्थक हो सकता है। इसी तरह पंजाब में जब तक किसान केंद्र सरकार के विरुद्ध आन्दोलनरत रहे तब तक तो वे अमरिंदर सरकार की आँखों के तारे बने रहे लेकिन अब वे उनके हाथ से भी निकल गए हैं। ये दो उदाहरण भारत में जनादोलनों के बेपटरी होने का ताजा प्रमाण हैं। लेकिन सरकारों में बैठे लोगों को अब इस बात को समझना चाहिए कि अपने क्षणिक राजनीतिक स्वार्थों के लिए राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुँचाने वाले क़दमों को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। रेल की पटरी पर बैठने वाले कोई भी हों लेकिन वे देश के हितचिन्तक नहीं हो सकते। हमारे देश में सड़कों पर चकाजाम करने वालों के विरूद्ध तो अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाता है लेकिन रेल यातायात अवरुद्ध करने वालों की मान-मनौवल की जाती है ,  और वह भी सरकार के मंत्री भेजकर। पंजाब के किसानों और राजस्थान के गुर्जरों को अपनी मांगें मनवाने के लिए आंदोलन करने का पूरा अधिकार है । लेकिन इसके लिए वे हजारों रेल यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचने से रोक दें और जरूरी सामान की आवाजाही में बाधा बनें तो वह आन्दोलन नहीं बल्कि अपराध है। और अपराध करने वालों के प्रति नरमी बरतना दूसरों को वैसा ही करने के लिए प्रोत्साहित करता है। पंजाब और राजस्थान दोनों के मुख्यमंत्री बेहद अनुभवी राजनेता हैं। उन्हें देशहित समझाने की कोई जरूरत भी नहीं है। लेकिन अभी तक उन दोनों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे लगता कि वे अपने राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर भी सोचते हैं। दीपावली पर अपने घर लौटने वालों को वैसे भी बहुत दिक्कतें हो रही हैं। कोरोना के कारण अभी तक सभी रेल गाड़ियाँ शुरू नहीं हो सकीं। ऐसे में रेल यातायात को ठप्प कर देना पूरी तरह से जनविरोधी कदम है। इसलिए पंजाब और राजस्थान सरकार को रेल पटरी पर कब्जा किये बैठे आन्दोलनकारियों को तत्काल हटने की चेतावनी देने के बाद भी यदि वे न मानें तब उन्हें गिरफ्तार करने में कोई संकोच नहीं चाहिए। दु:ख की बात है कि गुर्जर आन्दोलन के नेताओं में कुछ पूर्व फौजी अफसर भी हैं। पंजाब में भी किसानों के आन्दोलन में अनेक ऐसे चेहरे आगे- आगे नजर आये जिन्हें सुशिक्षित कहा जा सकता है। बेहतर हो प्रजातंत्र को अराजक होने से बचाने के लिए आन्दोलन के ऐसे तरीके अपनाए जाएं जिनसे दूसरों के हित प्रभावित न हो और देश का नुकसान भी न हो। लोकतंत्र सभी को अपनी आवाज उठाने का अधिकार देता है लेकिन उसके साथ कुछ कर्तव्य भी हैं जिनको भुला देना हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन गया है।


-रवीन्द्र वाजपेयी

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