Tuesday 17 November 2020

गांधी परिवार कांग्रेस की एकता की बजाय टूटन का कारण बन रहा




बिहार चुनाव के बाद सर्वाधिक चिंताजनक स्थिति कांग्रेस की है जो 2015 से ज्यादा सीटें लड़ने के बाद भी मात्र 19 सीटें जीत सकी। और यही वजह रही कि पूरे चुनावी परिदृश्य में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करवाने वाला महागठबंधन बहुमत की दहलीज पर आकर रुक गया। चुनाव पूर्व अधिकतर सर्वेक्षण में एनडीए की आसान विजय की संभावना का जमकर मजाक उड़ाया जाता रहा। तेजस्वी यादव द्वारा 10 लाख रोजगार का वायदा किये जाने से उनकी जनसभाओं में युवा मतदाताओं की भीड़ उमड़ने लगी तब चुनाव सर्वेक्षण करने वाले भी अपनी राय बदलने को मजबूर हुए और मतदान के बाद एक्जिट पोल में जिन एजेंसियों ने एनडीए की जीत की भविष्यवाणी की थी वे भी तेजस्वी के तेज का गुणगान करने में जुट गईं। नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान तो पहले से ही था लेकिन एग्जिट पोल के बाद तो विश्लेषक प्रवासी मजदूरों के पलायन के समय  मोदी सरकार के कुप्रबंधन को भी एनडीए की हार का बड़ा कारण बताने में जुट गए। वैसे भी बिहार के राजनीतिक माहौल में तेजस्वी के तेज उभार का एहसास होने लगा था। लेकिन जब नतीजे आये तब अच्छे-अच्छे हतप्रभ रह गए। राजद के साथ महागठबंधन में शामिल वामपंथियों ने तो अपनी सदस्य संख्या में कई गुना वृद्धि करते हुए अपनी जमीन को दोबारा हासिल करने का कारनामा कर दिखाया लेकिन कांग्रेस ने तेजस्वी पर दबाव डालकर 70 सीटें तो हासिल कर लीं परन्तु वह पूरे मनोयोग से लड़ने की बजाय महागठबंधन के भरोसे बैठी रही। अगर वह पिछली बार जितनी सीटें भी जीत जाती तो आज तेजस्वी यादव देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल कर लेते। एनडीए की जीत के लिए अधिकतर लोग असदुद्दीन ओवैसी को जिम्मेदार मान रहे हैं जिनकी पार्टी जीती तो महज 5 सीटें लेकिन सीमांचल की मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम मतों का बंटवारा करने में वह कामयाब रही जिससे राजद और कांग्रेस को करीब 20 सीटों का नुकसान हो गया और यही नीतीश की वापिसी का मुख्य कारण माना जा रहा है। लेकिन वास्तविकता ये है कि कांग्रेस ने इस चुनाव में जिस तरह की लापरवाही दिखाई उसका खामियाजा महागठबंधन को भुगतना पड़ा। हालाँकि अभी तक तेजस्वी ने तो इस बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन राजद के वरिष्ठ नेता शिवानन्द तिवारी ने गत दिवस ये कहकर कांग्रेस पर तीखा प्रहार किया कि वह गठबंधन पर बोझ बन गई। उन्होंने राहुल गांधी की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि उनसे बड़ी उम्र में भी जहां नरेंद्र मोदी बिहार में पूरा जोर लगा रहे थे वहीं खुद को युवा नेता कहलवाने राहुल गांधी अपनी बहिन प्रियंका वाड्रा के साथ पिकनिक मनाते रहे। उल्लेखनीय है श्री गांधी ने मात्र तीन रैलियां की जबकि श्री मोदी ने उनसे चार गुना ज्यादा में शिरकत की। कांग्रेस पर कमजोर प्रत्याशियों को उतारने का भी आरोप लग रहा है। श्री तिवारी की आलोचना को अप्रत्यक्ष रूप से तेजस्वी द्वारा प्रेरित ही माना जा रहा है जो स्वाभाविक भी है लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने गत दिवस ही कांग्रेस के आला नेतृत्व पर जिस तरह हमला किया वह मायने रखता है। श्री सिब्बल उन नेताओं में से हैं जिन्होंने चिट्ठी लिखकर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करवाने की मांग की थी। अपने ताजा बयान में उन्होंने पार्टी नेतृत्व को आढ़े हाथ लेते हुए कहा कि पराजय पार्टी की नियति बन गई है। बिहार चुनाव के परिणामों पर कोई अधिकृत प्रतिक्रिया नहीं दिए जाने पर भी उनकी नाराजगी झलकी। श्री सिब्बल ने देश भर में हुए उपचुनावों में कांग्रेस के शर्मनाक प्रदर्शन पर चिंता जताते हुए कहा कि गुजरात में शून्य और उप्र में दो के अलावा बाकी की सीटों में जमानत जप्त हो जाना पार्टी की कमजोर स्थिति का प्रमाण है जिस पर फौरन विचार जरूरी है। लगे हाथ उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति में मनोनयन पर भी निशाना साधा। उधर पी चिदम्बरम के बेटे कार्ति चिदम्बरम ने भी पार्टी में मंथन की जरूरत पर बल दिया। बिहार चुनाव के बाद वामपंथी दलों के भीतर भी इस बात पर विचार शुरू हो गया है कि बंगाल विधानसभा के आगामी चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन को जारी रखा जाये या नहीं ? पूरे देश से जो खबरें आ रही हैं उनके अनुसार लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस संगठन की हालत खराब है। ऐसा लगता है राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने की मुहिम पार्टी के भीतर विभाजन की स्थिति पैदा कर सकती है। ये बात लगातार प्रमाणित होती जा रही है कि श्री गांधी और प्रियंका नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। पार्टी के भीतर ये सोचने वालों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है कि जिस गांधी परिवार को कांग्रेस की एकता का आधार माना जाता था वही उसकी टूटन का कारण बन रहा है। सोनिया गांधी अपनी अस्वस्थता के कारण लगातार संगठन संबंधी मामलों से दूर होती जा रही हैं और ऐसे में सारे महत्वपूर्ण फैसले राहुल और प्रियंका मिलकर लेने लगे हैं जो वरिष्ठ नेताओं को हजम नहीं हो रहा। बिहार चुनाव पार्टी के साथ गांधी परिवार के भविष्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण था लेकिन राहुल की अपरिपक्वता और लापरवाही ने वह अवसर गँवा दिया। 2021 कांग्रेस के लिए यदि और बुरी खबरें लेकर आये तो आश्चर्य नहीं होगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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