Thursday 19 November 2020

गेंहू के बाद गौ संवर्धन में भी अग्रणी बन सकता है मप्र




मप्र की शिवराज सरकार ने गौ-कैबिनेट नामक नई योजना पेश करते हुए कहने को तो हिन्दू मतदाताओं को संतुष्ट करने का दांव चला लेकिन यदि उनकी सरकार वाकई गौ-संवर्धन के प्रति ईमानदार है तो उसे उस गौ माफिया का पर्दाफाश करना चाहिए जिसने उनके पिछले शासनकाल में गाय के नाम पर अपना घर भरा। वैसे ये संतोष का विषय है कि गौ पालन अब धर्म की सीमाओं से उठकर अर्थव्यवस्था का विषय बन रहा है। भले ही गाय के औषधीय महत्व का कुछ लोग मजाक उड़ाते रहे हों लेकिन धीरे-धीरे ये बात लोगों की समझ में आती जा रही है कि गाय का दूध, मूत्र और गोबर सभी बहुउपयोगी हैं। देश की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी में गाय के प्रति असीम श्रद्धा है। मांसाहारी हिन्दू और सिख भी गौमांस से परहेज करते हैं। लेकिन देश में गौवध को रोकने के सरकारी प्रयास अपेक्षित सफलता नहीं पा सके और जिसकी वजह से भारत गौमांस का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। स्मरणीय है 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने गौमांस के निर्यात का मामला जोरदारी से उठाया था लेकिन बीते छ: वर्ष में केंद्र और भाजपा शासित राज्यों के प्रयासों के बावजूद गौवध पर भले ही कुछ नियन्त्रण लगा हो लेकिन गौपालन और संवर्धन के क्षेत्र में जो प्रयास हुए वे सरकारी कर्मकांड के मकड़जाल में फंसकर रह गये। हालांकि निजी तौर पर अनेक गौ भक्तों के अलावा धार्मिक और समाजसेवी संस्थानों द्वारा बड़ी-बड़ी गौशालाओं का संचालन बड़ी ही कुशलता से किया जा रहा है जिन्हें गौ भक्तों का काफी सहयोग भी मिलता है। लेकिन ये कहना गलत न होगा कि मप्र सरकार द्वारा दिए गए प्रोत्साहन और अनुदान के लालच में जो गौशालाएं खुलीं उनमें गायों का संरक्षण कम उत्पीड़न  अधिक हुआ। अव्वल तो प्रति गाय जो राशि प्रतिदिन के लिए निर्धारित की गयी वह ऊँट के मुंह में जीरे से भी कम थी। ऊपर से जिन लोगों ने गौशालाएं खोलीं उनमें बड़ी संख्या ऐसे लोगों की ही है जिनका उद्देश्य गौ संवर्धन की बजाय सरकारी अनुदान एवं सुविधाएँ हासिल करना था । यही वजह रही कि बहुतेरी गौशालाएं हद दर्जे की अव्यवस्था का शिकार होकर गौ प्रताड़ना का अड्डा बनकर रह गईं। 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सरकार के पतन के बाद कमलनाथ मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने धार्मिक और आर्थिक के साथ -साथ गाय के राजनीतिक महत्व को भी समझा और सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रति कांग्रेस के झुकाव का संकेत देते हुए गौ पालन के प्रति रचनात्मक फैसले लिए। उनसे ऐसा लगने लगा कि मप्र अब गौ पालन का बड़ा केंद्र बनकर उभरेगा। लेकिन बीते मार्च में वह सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान ने दोबारा मप्र की कमान संभाली किन्तु उनकी स्थिति सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसी हो गयी। कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया जिससे शासन और प्रशासन दोनों सब काम छोड़कर उसमें उलझे रहे और फिर उसके बाद आ गई उपचुनाव जीतने की चुनौती। बहरहाल बीती दस तारीख को उपचुनावों के नतीजों के साथ शिवराज सरकार पर छाया अनिश्चितता का संकट खत्म हो गया और उसी के बाद मुख्यमंत्री ने गौ कैबिनेट के रूप में गाय के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए व्यापक पैमाने पर कदम उठाने की घोषणा कर दी। दो दिन पहले ही उप्र सरकार ने भी गौ वध रोकने के लिए कड़ा कानून बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया। ये सब सैद्धांतिक तौर पर तो स्वागतयोग्य है लेकिन सरकारी प्रयासों से गाय की रक्षा और गोवंश में वृद्धि तब तक संभव नहीं होगी जब तक गाय के आर्थिक महत्व को जनमानस में पुनर्स्थापित न किया जाए। भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बाद भी यहाँ प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता बहुत कम है। यहाँ तक कि मरीजों, गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों तक को पर्याप्त दूध सुलभ नहीं है। खेती के आधुनिकीकरण और ग्रामीण अंचलों में शहरी संस्कृति के प्रवेश के साथ गौ पालन के प्रति रूचि कम हुई है। वरना एक समय था जब गाय और बैल भारतीय ग्राम और कृषि के साथ अभिन्न रूप से जुड़े हुए थे। वैसे ये अच्छी बात है कि धीरे-धीरे ही सही लेकिन लोग गाय के दूध और उससे बने उत्पादों के महत्व और गुणवत्ता को समझने लगे हैं। ऐसे में यदि शासकीय संरक्षण और सहयोग सही तरीके से मिले तो गाय एक बार फिर भारतीय जनजीवन के करीब आ सकेगी। शिवराज सरकार को गौ शालाओं के नाम पर अतीत में जो भ्रष्टाचार और अनियमिततायें हुईं उनसे सबक लेते हुए जिस तरह से मप्र को गेंहू के क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य बनाया गया, ठीक उसी तरह गौ पालन और गौ संवर्धन में आगे ले जाना चाहिए। लेकिन इस दिशा में बढ़ते हुए ये ध्यान रखा जाना जरूरी है कि गाय की स्थानीय नस्लों को विकसित किया जाए जिनका रखरखाव अपेक्षाकृत आसान और सस्ता होता है और वे स्थानीय भौगोलिक संरचना और जलवायु में खुद को आसानी से ढाल लेती हैं। गाय भारतीय अर्थव्यवस्था का शाश्वत आधार है। जरूरत है सही और ईमानदार कोशिश की। उम्मीद है अपनी नई पारी में शिवराज सिंह चौहान पिछले अनुभवों से सीख लेकर गौ संवर्धन में देश को दिशा देने वाला कार्य कर दिखायेंगे।

- रवीन्द्र वाजपेयी



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