Tuesday 24 November 2020

नेताओं और नौकरशाहों को अंग्रेजी राज वाली सुविधाएँ बंद की जाएं




देश की राजधानी दिल्ली में गत दिवस प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा सांसदों के लिए बनाये गये बहुमंजिला भवन का उद्घाटन किया गया। इसमें 76 फ्लैट हैं। लुटियन की दिल्ली कहलाने वाले वीआईपी इलाके में डा. बी.डी मार्ग स्थित आठ बड़े बंगले गिराकर बनाये गए इस बहुमंजिला भवन का निर्माण निर्धारित समय सीमा के भीतर होना भी उल्लेखनीय है। इसी के साथ कुछ और ऐसे ही शासकीय निर्माणों का भी लोकार्पण श्री मोदी ने किया। ब्रिटिश राज में लुटियन इलाके में बड़े-बड़े बंगले बनाये गये थे जो मंत्रियों और सांसदों के अलावा अन्य विशिष्ट हस्तियों तथा बड़े अधिकारियों को आवंटित किये जाते रहे हैं। साऊथ और नॉर्थ एवेन्यू में बनाये गये आवास अपेक्षाकृत छोटे हैं। बाद में स्वर्णजयंती अपार्टमेंट नामक बहुमंजिला आवसीय भवन में सांसदों के लिए  आधुनिक सुविधाओं से युक्त फ़्लैट भी निर्मित हुए। उसी के बाद से कई एकड़ में बने बंगले तोड़कर बहुमंजिला भवन बनाकर सांसदों को उनमें स्थानांतरित किया जाने लगा। इसके साथ ही शासकीय कार्यालयों में स्थानाभाव को दूर करने के लिए भी यही प्रयोग किया गया। दिल्ली में बढ़ती आबादी और यातायात की समस्या के कारण भी सरकारी दफ्तरों के दूर-दूर होने की समस्या खड़ी होने लगी थी। राष्ट्रपति भवन के हिस्से के तौर पर बने नॉर्थ और साउथ ब्लॉक भी अब छोटे पड़ने लगे हैं। यहाँ तक कि संसद भवन में भी जगह कम महसूस होती है। इसीलिये नई संसद और उसके साथ केन्द्रीय सचिवालय बनाने का प्रकल्प भी तैयार है। हालांकि विपक्ष इसका विरोध कर रहा है। लुटियन की दिल्ली की समूची परिकल्पना उस ज़माने के लिहाज से सही रही होगी किन्तु जमीनों के बढ़ते दाम के साथ ही वीआईपी सुरक्षा के मद्देनजर बड़ी-बड़ी आलीशान कोठियों के स्थान पर बहुमंजिला भवन बनाकर उनका आवासीय अथवा कार्यालयीन उपयोग समय की मांग और जरूरत है। उस दृष्टि से दिल्ली में हो रहे इस तरह के निर्माण पूरे देश के लिए एक नीति निर्देशक की तरह होना चाहिए। यूँ भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि और नौकरशाहों को मिलने वाली सामंतशाही आवासीय और अन्य सुविधाएँ लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध हैं। आज भी हर बड़े शहर में अंग्रेज साहब बहादुरों के लिए बनाई गई सिविल लाइंस हैं। यहाँ बने विशाल बंगले ब्रिटिश राज की याद दिलवाते हैं। इनके रखरखाव पर भी खासा खर्च होता है। दिल्ली की तर्ज पर बहुमंजिला आवासीय भवन बनाकर उनमें जनप्रतिनिधियों तथा नौकरशाहों के आवास की व्यवस्था किया जाना जनधन की बर्बादी रोकने के साथ ही बहुमूल्य शासकीय भूमि के बेहतर और अधिकाधिक उपयोग के अवसर उत्पन्न करेगा। विशेष रूप से राजधानियों में राजनेताओं और अधिकारियों को बड़े बंगलों की बजाय बहुमंजिला भवनों में फ्लैट बनाकर स्थानांतरित कर दिया जाए तो यह प्रशासनिक और आर्थिक दृष्टि से लाभदायक तो होगा ही साथ ही वीआईपी सुरक्षा के लिहाज से भी बेहतर रहेगा। सबसे बड़ी बात आम जनता के मन में नेताओं और नौकरशाहों के बारे में जो नकारात्मक अवधारणा बन गई है , वह भी काफी हद तक कम हो सकेगी। भारत में राजनीति के प्रति आकर्षण के पीछे जनप्रतिनिधियों को मिलने वाली सामन्ती सुविधाएँ भी हैं। इसी तरह सरकारी अफसरशाही भी अंग्रेजी राज की मानसिकता छोड़ नहीं पा रही। ये देखते हुए पूरे देश में निर्वाचित नेताओं और नौकरशाहों को दी जा रही सुविधाओं की समीक्षा की जानी चाहिए। आज़ादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर इस तरह की व्यवस्थाओं को लागू किया जाना चाहिए जिससे आम जनता के मन से ये धारणा दूर की जा सके कि अंग्रेजी राज भले चला गया हो लेकिन सियासत और हुकूमत दोनों अभी भी उसके प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकी।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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