Wednesday 18 November 2020

मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता भारतीय समाज में स्वीकार्य नहीं



एक जमाना था जब भारतीय फिल्मों में चुम्बन दृश्य दिखाए जाने की अनुमति नहीं थी। सत्तर के दशक में खोसला आयोग ने इस बारे में अपनी रिपोर्ट में इसकी सिफारिश की जिसे बड़े ही संकोच के साथ स्वीकार किया गया। फिल्मों में अश्लीलता परोसे जाने पर भी सेंसर बोर्ड बहुत ही सख्त हुआ करता था। हालांकि धीरे-धीरे पाश्चात्य समाज की देखा - सीखी भारतीय फिल्मों में भी खुलापन आने लगा। लेकिन फिर भी काफी कुछ लक्ष्मण रेखा बनी रही। दरअसल वह दौर था जब सिनेमा पूरे परिवार के मनोरंजन का साधन था और तब ये बात मायने रखती थी कि आप किशोरवय बेटे-बेटी के साथ कोई फिल्म देख सकते हैं या नहीं? लेकिन बीते तीन दशक में विशेष रूप से टेलीविजन और उसके बाद से मोबाईल के प्रसार ने मनोरंजन की दुनिया को ही बदलकर रख दिया। और फिर इन्टरनेट ने तो मानो क्रांति ही कर दी जिसकी वजह से मनोरंजन के समय और स्वरूप दोनों में आमूल बदलाव हो गया। सिनेमा हॉल से हटकर पहले फिल्म ने टीवी के परदे की जरिये घरों में प्रवेश किया। और फिर केबल टीवी से होते हुआ डिश टीवी और अब डिजिटल माध्यम ने सूचना तंत्र को अकल्पनीय रूप से सुलभ बना दिया। वीसीआर जैसे उपकरण भी बीच में आये और चलते बने। सिनेमा हॉल की जगह मल्टीप्लेक्स ने ले ली। इसके बाद भी तकनीक की दौड़ रुकने का नाम नहीं ले रही। और एक कदम आगे बढ़कर वह वेब तक जा पहुँची। बीते लगभग 9 महीनों में कोरोना काल ने जब सब कुछ बंद सा कर दिया तब वेब सीरीज के रूप में मनोरंजन की एक नई दुनिया ही बस गई और देखते-देखते उसने मल्टीप्लेक्स को महत्वहीन बनाकर रख दिया। नई फिल्में  अब ओटीटी पर ही प्रदर्शित होने लगी हैं।  धारावाहिक भी वेब सीरीज के हमले से हलाकान होते लग रहे हैं। और इसका कारण है वह बेलगाम खुलापन जिसे भारतीय समाज आज भी अश्लीलता की श्रेणी में रखता है। भद्दी गालियों की भरमार के साथ ही पारिवारिक माहौल से परे इस तरह की सामग्री मनोरंजन के नाम पर पेश की जा रही है जिसे हमारा समाज सार्वजनिक स्वीकृति नहीं देता। सोशल मीडिया की स्वछंदता तो पहले से ही समस्या बनी हुई थी लेकिन अब वेब सीरीज के रूप में मनोरंजन की जो शैली हमारे सामने लाई जा रही है, उस पर उँगलियाँ उठने लगी हैं। सेंसर बोर्ड के नियन्त्रण से बाहर होने से यह माध्यम मनमानी करने के लिए स्वतन्त्र है। पहले तो टीवी और फिल्मों में दूसरे दर्जे के कहे जाने वाले कलाकार वेब सीरीज के जरिये सामने आये क्योंकि उनसे निर्माता और निर्देशक वह सब करवा सकते थे जो फिल्मों और धारावाहिकों के साथ ही सितारा कलाकारों के साथ संभव नहीं होता। लेकिन इस माध्यम की सफलता ने फिल्मी दुनिया के नामचीन निर्माताओं और कलाकारों तक को वेब की दुनिया के प्रति आकर्षित कर लिया है और ये कहा जाने वाला है कि ये भविष्य का सिनेमा है। लेकिन इसके माध्यम से आ रही वर्जनाहीन संस्कृति और अश्लीलता ने सरकार के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय तक के कान खड़े कर दिए हैं। और इसीलिये अब न सिर्फ  फेसबुक, व्हाट्स एप, इन्स्टाग्राम, ट्विटर , यू ट्यूब जैसे आभासी अपितु वेब के नाम से तेजी से उभरे माध्यम की उन्मुक्त उड़ान पर नियन्त्रण का रास्ता खोजने पर जोर दिया जाने लगा है। हालाँकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इन्टरनेट पर विदेशी नियन्त्रण जैसी समस्याओं के संचार और सूचना संबंधी अंतर्राष्ट्रीय समझौते इस काम में बाधक बन सकते हैं लेकिन हर देश इस बारे में अपनी नीति बनाने का अधिकार भी रखता है। चीन ने तो फेसबुक, व्हाटस एप जैसे सोशल मीडिया पर रोक लगाकर अपना नेटवर्क तैयार कर रखा है। हालाँकि भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में ऐसा करना वांछनीय न होगा लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गूगल जैसे भारतीय सर्च एंजिन के विकास की चर्चा छेड़कर एक संकेत दे दिया है जो इन्टरनेट के भारतीय संस्करण की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। अन्तरिक्ष विज्ञान में उल्लेखनीय सफलताओं के कारण अब स्वदेशी सर्च इंजिन जैसी व्यवस्था की जरूरत महसूस की जाने लगी है। वैसे भी विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए संचार क्षेत्र में आत्मनिर्भरता जरूरी होगी क्योंकि अब इन्टरनेट भी कमाई का बड़ा जरिया बन चुका है। वेब सीरीज के कारण उठी चर्चाओं के बीच अब इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। अपसंस्कृति के फैलाव को चरमोत्कर्ष तक पहुँचने के पहले ही उसके बारे में नियमन करना जरूरी है। वरना स्थितियां अनियंत्रित हो जायेंगी। सबसे बड़ा खतरा किशोरावस्था के लड़के- लड़कियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का है जिन्हें मनोरंजन के नाम पर परोसी जा रही सामग्री समय से पहले व्यस्क बना रही है। बढ़ते यौन अपराधों के पीछे एक बड़ा कारण इंटरनेट के जरिये आ रही नग्नता भी है। भारत कितना भी आधुनिक हो जाये लेकिन पश्चिम की वर्जनाहीन मानसिकता को वह स्वीकार नहीं सकता क्योंकि हमारे देश में व्यक्तिगत स्वतंत्रता से ज्यादा सामाजिक मर्यादाओं को महत्व दिया जाता है और इसी कारण भारतीय संस्कृति अनगिनत झंझावातों से सुरक्षित निकलकर अपना अस्तित्व कायम रख सकी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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