Friday 30 October 2020

फ्रांस की घटना से उठा सवाल : ऐसे में कौन इन्हें शरण देगा




फ्रांस कोरोना की दूसरी जबर्दस्त लहर से भयाक्रांत है जिस कारण वहां बड़े पैमाने पर तालाबंदी करने की स्थिति आ गई। वहीं दूसरी तरफ इस्लामी आतंकवाद ने उसकी नाक में दम कर रखा है। बीते कुछ ही दिनों में इस्लाम के नाम पर जिस तरह से गला रेतकर हत्याएं की गईं उसके बाद यूरोप का यह शक्तिशाली देश मुसीबत में फंस गया है। हाल ही के कुछ सालों में वहां इस्लामी आतंकवाद का जिस तरह फैलाव हुआ वह पूरे यूरोप के लिए चिंता का विषय है। बीते पांच साल में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा लगभग 250 लोगों का मारा जाना इस बात का प्रमाण है कि इस देश की शांति व्यवस्था को भंग करने की एक सुनियोजित साजिश चल पड़ी है। मध्य एशिया में उत्पन्न संकट के कारण जब लाखों लोग वहां से पलायन कर यूरोप के अनेक देशों में शरण हेतु पहुंचे तब वहां की सरकारों के सामने धर्मसंकट पैदा हो गया। मानवीय दृष्टिकोण के कारण आखिरकार न सिर्फ  फ्रांस बल्कि ब्रिटेन, स्वीडन, और जर्मनी आदि ने भी मध्य एशिया से आये उन शरणार्थियों को अपने यहाँ रहने की जगह दी। कुछ समय तो वे नियन्त्रण में रहे लेकिन धीरे-धीरे इस्लाम की आड़ में हिंसात्मक गतिविधियाँ देखने में आने लगीं। फ्रांस में तो लगातार इस्लामी आतंकवादी हत्याएं करते आ रहे हैं। बीते कुछ दिनों के हालात ये बताते हैं कि मजहब के नाम पर बेरहमी से कत्ल करना आम हो गया है। किसी भी धर्म और उसके महापुरुषों के अपमान का कोई भी समझदार इन्सान समर्थन नहीं करेगा। लेकिन जो भी इस लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करता है उसे सजा देना कानून का काम होना चाहिए न कि किसी कट्टरपंथी का। फ्रांस की घटनाओं पर मलेशिया और ईरान के शासकों ने जो प्रतिक्रिया दी वह भी बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी भी धर्म के प्रवर्तक के बारे में कोई भी आपत्तिजनक अभिव्यक्ति चाहे वह ज़ुबानी , लिखित या चित्र के रूप में ही क्यों न हो , किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकती। और फ्रांस तो शिष्टाचार के मामले में एक आदर्श माना जाता है। ईसाई बहुल होने के बावजूद उसने मध्य एशिया से आये शरणार्थियों को मानवीय संवेदनाओं के आधार पर अपने यहाँ शरण दी। लेकिन जिस तरह का व्यवहार शरणार्थियों के एक वर्ग द्वारा किया जा रहा है वह अतिथि धर्म का अपमान है। ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले ये भूल जाते हैं कि उनके वहशीपन का बुरा असर दुनिया भर में फैले इस्लाम के अनुयायियों पर होता है। इसके साथ ही शरण देने वाले देशों को भी अपने फैसले पर अफसोस होता है। फ्रांस के अलावा अन्य यूरोपीय देशों में भी इस्लामी आतंक जिस तरह से सामने आता रहा है उसके बाद भविष्य में मध्य एशिया के इस्लामी देशों से पलायन करने वालों को कोई पनाह देने से पहले सौ बार सोचेगा। इस बारे में विचारणीय बात ये भी है कि फ्रांस सहित अनेक यूरोपीय देशों में जनता के एक वर्ग द्वारा सीरिया सहित अन्य मध्य एशियाई देशों से आये शरणार्थियों का जबरदस्त विरोध किया गया था। बावजूद उसके वहां की सरकारों ने मानवीय आधार पर उन्हें अपने यहाँ रहने और बसने की सुविधा दी। लेकिन बजाय शांति के साथ समय काटने के उनमें से आतंकवादी निकलकर यहाँ-वहां खूनी नज़ारे पेश करने लगे। ऐसे लोगों की वजह से ही इस्लाम पूरी दुनिया में संदेह के घेरे में आ गया है। इस बारे में चौंकाने वाली बात ये है कि मध्य एशिया के अलावा भी अन्य इस्लामी देशों से निकलने वाले शरणार्थी गैर इस्लामिक देशों में शरण लेते समय तो दयनीय बने रहते हैं लेकिन एक बार ठिकाना मिलते ही वे हावी होने की कोशिश करने लगते हैं। भारत भी इसका भुक्तभोगी है। बांग्लादेशियों के साथ ही रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी भी एक लाइलाज मर्ज बनकर रह गये हैं। बांग्लादेश अपने ही नागरिकों को लेने के लिए तैयार नहीं है। देखने वाली बात ये भी है कि दुनिया भर में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए बड़ी मात्रा में धन भेजने वाले सऊदी अरब और सम्पन्नता के प्रतीक बन चुके संयुक्त अरब अमीरात ने भी सीरिया आदि से जान बचाकर निकले शरणार्थियों को अपने यहाँ बसाने में कोई रूचि नहीं ली। फ्रांस की ताजा घटनाएँ ये साबित करती हैं कि शरणार्थियों की शक्ल में ऐसे उग्रवादी भी विदेशों में शरण ले लेते हैं जिनका उद्देश्य खून बहाना मात्र है और ऐसे लोगों को इस्लाम का अनुयायी नहीं कहा जा सकता। जिन इस्लामी देशों के शासनाध्य्क्ष इस तरह की हिंसात्मक वारदातों के औचित्य को साबित करने के लिए कुतर्क देते हैं उनसे भी विश्व बिरादरी को सवाल पूछने चाहिए क्योंकि इस तरह की सोच के चलते जो शरणार्थी दुनिया भर में फैले हैं उनके सामने दोबारा विस्थापन का खतरा पैदा हो जाये तो आश्चर्य नहीं होगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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