Friday 23 October 2020

मुफ्त वैक्सीन ही क्यों, मुफ्त चिकित्सा क्यों नहीं



भाजपा ने बिहार चुनाव में कोरोना वैक्सीन मुफ्त में लगाने का वायदा किया तो तमिलनाडु और मप्र भी पीछे-पीछे चल पड़े। पहले गरीबों और फिर सभी को मुफ्त में कोरोना का टीका लगाने का वायदा सुनाई देने लगा। बड़ी बात नहीं जल्द ही चारों तरफ से मुफ्त-मुफ्त की आवाजें सुनाई देने लगें। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए वैक्सीन संबंधी आश्वासन में कहा था कि वह शीघ्र ही उपलब्ध होगी और सरकार उसे लगाने की कार्यप्रणाली प्राथमिकता के आधार पर तय कर रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जनवरी से भारत में कोरोना वैक्सीन उपलब्ध होने लगेगी। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन के अनुसार पूरे देश को वैक्सीन लगने में कम से कम छह महीने लग जायेंगे। सरकारी अनुमान के अनुसार अगर दीपावली के बाद दूसरी लहर नहीं आई तब आगामी वर्ष के फरवरी महीने तक कोरोना भारत से विदा हो जाएगा। और उस स्थिति में वैक्सीन को लेकर व्याप्त उत्सुकता शायद उतनी नहीं रहेगी। बहरहाल भाजपा ने इसे लेकर जो राजनीतिक पैंतरा चला उसका कितना लाभ उसे बिहार चुनाव में होगा ये तो परिणाम ही बताएँगे लेकिन इस बहाने स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बहस की गुंजाइश तो बन ही गई। अर्थात चुनावी आश्वासनों एवं वायदों में अब वैक्सीन नामक एक नई चीज और जुड़ गई। अमेरिका जैसे विकसित देश में तो स्वास्थ्य सेवाएँ चुनावों का मुद्दा बन जाती हैं लेकिन हमारे यहाँ चुनावी वायदे और आश्वासन तात्कालिक लाभ के नजरिये से किये जाते हैं क्योंकि सरकार में आने के बाद उन्हें पूरा करने संबंधी कोई वैधानिक या नैतिक जिम्मेदारी नहीं होती। चुनाव आयोग और यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय तक राजनीतिक दलों द्वारा किये जाने वाले अव्यवहारिक चुनावी वायदों पर टीका-टिप्पणी कर चुके हैं लेकिन उनमें और बढ़ोतरी होती जा रही है। तमिलनाडु में तो टीवी, मिक्सी और यहाँ तक कि मंगलसूत्र जैसे वायदे चुनाव में हो चुके हैं। बिहार में भी अतीत में सायकिल के जवाब में मोटर सायकिल जैसे लालच मतदाताओं को दिए गए। मुफ्त बिजली और कर्ज माफी तो बतौर रामबाण चुनाव में चलाये ही जाते हैं। बेरोजगारों को नौकरी का लॉलीपाप भी चिर-परिचित पहिचान बन गया है। बिहार में तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियाँ देने का दांव चला तो उसका मजाक उड़ाने वाली भाजपा ने उससे दोगुना आंकड़ा परोस दिया। विकास कार्यों के सपने तो जागती आँखों को दिखाए जाने में नेतागण यूँ भी सिद्धहस्त होते हैं। बहरहाल भाजपा द्वारा बिहार में सभी को कोरोना वैक्सीन बतौर मुफ्त उपहार दिए जाने के चुनावी वायदे के साथ ही पूरे देश से ये आवाज उठने लगी कि क्या बाकी राज्यों के लोगों को उसकी जरूरत नहीं है? सवाल है भी वाजिब क्योंकि कोरोना का कहर कुछ को छोड़कर सभी राज्यों पर टूटा । ऐसे में केवल चुनाव वाले राज्य में एक राष्ट्रीय पार्टी द्वारा मुफ्त वैक्सीन का वायदा स्वागतयोग्य होने के बाद भी अटपटा है। यद्यपि भाजपा के पास ये तर्क है कि प्रधानमंत्री ने देश भर के गरीबों को 5 लाख तक के मुफ्त इलाज की सुविधा तो पहले से ही दे रखी है जो उनके व्यापक दृष्टिकोण का परिचायक है । लेकिन बिहार चुनाव में मुफ्त कोरोना वैक्सीन के वायदे से तो ये एहसास निकलकर सामने आया कि अन्यथा वैक्सीन  के लिए लोगों को शुल्क देना पड़ता। अब चूँकि तमिलनाडु और मप्र की सरकार ने भी तत्संबंधी ऐलान कर दिया है इसलिए ये मान लेना गलत न होगा कि बाकी राज्य भी ऐसा ही करने को मजबूर हो जाएंगे और इसमें गलत कुछ भी नहीं है। लेकिन अब समय आ गया है जब चुनाव में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर चर्चा होना चाहिए। कोरोना काल में एक बात खुलकर सामने आ गई कि सरकारी चिकित्सा सेवा इतनी बड़ी आबादी के लिहाज से बहुत ही कम है और जितनी है भी , वह साधनहीनता का शिकार है। यही कारण रहा कि निजी क्षेत्र के चिकित्सा उद्योग को इस दौरान दोनों हाथों से लूटने का अवसर मिल गया और उसका अमानवीय चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया। ये देखने के बाद आपदा में अवसर तलाशने की जो समझाइश श्री मोदी ने दी उस पर सबसे पहले सरकार को ही अमल करते हुए स्वस्थ भारत के नारे को वास्तविकता में बदलने का अभियान शुरू करना चाहिए। आज भी देश की बड़ी आबादी तक प्राथमिक चिकित्सा  सुविधा नहीं पहुँच सकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में जो सरकारी चिकित्सा केंद्र हैं उनकी दशा किसी से छिपी नहीं है। इस दिशा में दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा शुरू की गई मोहल्ला क्लीनिक नामक व्यवस्था एक आदर्श के रूप में अपनाई जा सकती है लेकिन दिल्ली चूँकि एक महानगर है इसलिए उस जैसा इंतजाम सुदूर इलाकों में शायद संभव न हो सके । लेकिन 21 वीं सदी के भारत में अब स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में एक महत्वाकांक्षी कार्ययोजना शुरू करने का समय आ गया है। बीमारी से लड़ने में असमर्थ देश कभी विकसित की श्रेणी में नहीं आ सकता। इस बारे में उल्लेखनीय बात ये है कि कोरोना वायरस की अधिकांश वैक्सीन भारत में ही बन रही हैं क्योंकि वैक्सीन बनाने में भारत पहले से ही दुनिया का अग्रणी देश है। लेकिन चिकित्सा सुविधाओं के मामले में ये गौरव हासिल करना अभी बाकी है। बिहार चुनाव से मुफ्त वैक्सीन का जो मुद्दा शुरू हुआ वह मुफ्त इलाज के लक्ष्य तक जब तक नहीं पहुंचता तब तक भारत कल्याणकारी राज्य की कल्पना को साकार नहीं कर सकेगा। जिस तरह घर-घर बिजली और पानी पहुंचाना सरकार की प्राथमिकताओं में है ठीक उसी तरह से अब चिकित्सा भी सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे देश में शिक्षा और चिकित्सा जैसे दो सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र सरकारी उपेक्षा के कारण निजी क्षेत्र के लिए लूट खसोट का साधन बन गये।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment