Wednesday 3 February 2021

मध्यम वर्ग की अनदेखी अन्याय : आय कर छूट की सीमा 10 लाख की जाए



बजट के बाद देश के मध्यम वर्ग में , जिसे सामान्यतः नौकरपेशा माना  जाता है बहुत निराशा है |  इस वर्ग का कहना है कि बजट बनाते समय सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की  , वह सभी वर्गों के लिए कुछ न कुछ करती है लेकिन मध्यम वर्ग उपेक्षित रह जाता है | कोरोना काल में बड़ी संख्या में नौकरियां चली गईं | शासकीय कर्मियों का  महंगाई भत्ता स्थिर कर दिया | निजी क्षेत्र ने तो सीधे - सीधे वेतन में ही कटौती कर डाली | इसी तरह महीनों कारोबार बंद रहने से मध्यम वर्गीय व्यापारी की आर्थिक दशा भी डगमगा गई | हालात किसी से छिपे नहीं हैं | यद्यपि  इसके लिए सरकार को दोष देना कतई ठीक नहीं होगा क्योंकि समस्या  अभूतपूर्व और पूरी तरह अकल्पनीय थी | और उसने जो और जैसा भी बन सका किया भी | करोड़ों गरीबों को मुफ्त अनाज देने का फैसला बहुत ही बुद्धिमत्ता और दूरदर्शितापूर्ण था | बैंकों से कर्ज वसूली को टालकर सरकार ने उद्योग और व्यवसाय से जुड़े लोगों को भी समयानुकूल राहत दी | बिजली बिल के साथ ही स्थानीय निकायों के करों की वसूली भी स्थगित रखी गई | आयकर और जीएसटी के बारे में भी मोहलत दी जाती रही | लेकिन जैसे ही लॉक डाउन हटा त्योंही सब कुछ पहले जैसा  हो गया | सरकारी महकमे ठेठ पठानी शैली  में वसूली पर आमादा हो गए | बैंक वाले भी सुबह - शाम परेशान करने में जुट गए | सरकार का खजाना खाली होने से ऐसा करना स्वाभाविक ही था | लोगों को उम्मीद थी कि शायद बैंकों  का ब्याज कुछ माफ़ हो जाएगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ | लेकिन इस सबके बीच सबसे ज्यादा पिसा मध्यम वर्ग जिसे न मुफ्त अनाज मिला और न ही अन्य किसी प्रकार की सहायता | उसकी तनख्वाह और भत्ते भी घट गये | जिनकी  नौकरी गई उनकी  पीड़ा के लिए तो शब्द ही नहीं हैं | ऐसे में कर्मचारी और मझोले किस्म के व्यापारी को लग रहा था कि केन्द्रीय  बजट में उसकी समस्याओं का कुछ न कुछ निदान तो होगा | हालांकि  निर्मला सीतारमण ने ये एहसान तो अवश्य किया कि करों का बोझ नहीं बढ़ाया किन्तु उसमें किसी भी प्रकार की कमी नहीं किये जाने से  निराशा और बढ़ गई | इस वर्ग को  उम्मीद थी कि आयकर सहित अन्य करों में उसे कुछ रियायत मिलेगी | करों में छूट की सीमा बढ़ाये जाने के साथ ही अन्य बचत योजनाओं पर  लाभ बढ़ाये जाने की अपेक्षा भी थी | लेकिन वित्त मंत्री ने उस बारे में कुछ नहीं किया | सबसे प्रमुख बात ये है कि नौकरपेशा मध्यम वर्ग ही ईमानदारी से आय कर देता है | इसके साथ ही अप्रत्यक्ष करों में भी बतौर उपभोक्ता उसका  बड़ा योगदान  है | कोरोना काल के बाद बाजारों में मांग बढाने के लिए तरह - तरह के जतन किया जा रहे हैं | आर्थिक विशेषज्ञ भी ये मान रहे हैं कि जब तक बाजार में उपभोक्ताओं की भीड़ नहीं उमड़ती तब तक अर्थव्यवस्था रफ़्तार नहीं  पकड़ सकती | लेकिन ये भीड़ मध्यम वर्ग की ही हो सकती है | ऐसे में ये जरूरी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की इस रीढ़ को और मजबूत किया जाए | लेकिन श्रीमती सीतारमण ने  इस वर्ग को एक तरह से हाशिये  पर धकेल दिया गया है | अभी बजट संसद के सामने विचारार्थ प्रस्तुत हुआ है | ऐसे में  उसमें संशोधन की गुंजाईश है | बेहतर होगा मध्यम वर्ग को आयकर में छूट सहित बचत योजनाओं से मिलने वाले लाभों में भी वृद्धि हो जिससे इस वर्ग के पास अतिरिक्त पैसा आये  ताकि वह बाजार की  रौनक बढ़ाने में मददगार हो सके | कोरोना काल में इस वर्ग के मन में असुरक्षा का जो भाव आ गया है उसके कारण खरीदी के प्रति उसका हौसला कमजोर हुआ है जिसे बढ़ाये बिना अर्थव्यवस्था में उछाल लाना कठिन होगा |  वित्तमंत्री यदि वाकई वित्तीय वर्ष 2021- 22 में 11 फीसदी  की विकास दर के अनुमान को हकीकत में बदलना चाहती हैं तब उन्हें बजट पर बहस के दौरान संशोधन पेश करते हुए आयकर छूट की सीमा 10 लाख कर देनी चाहिए | ऐसा होने पर भले ही आयकर  की कमाई कम हो जाये लेकिन उससे होने वाली कर की बचत सीधे बाजार में आयेगी जिससे उद्योग - व्यापार तो फलेंगे - फूलेंगे ही लगे हाथ  सरकारी खजाने में ही जीएसटी के तौर पर जबरदस्त राजस्व आयेगा | हमारे देश में बजट दर बजट प्रयोग होते आये हैं | कुछ कारगर रहे तो कुछ असफलता की खाई में गिरकर विलुप्त हो गए | ऐसे में निर्मला जी इस सुझाव को भी अमल में लाकर  देख लें | वे चाहें तो इसे कोरोना काल के मद्दे नजर अस्थायी राहत के  तौर पर लागू करें और यदि उसके अनुकूल नतीजे आयें तो उसे आगामी सालों में भी जारी रखा जाये | मौजूदा हालात में  आयकर छूट की सीमा बढाकर 10 लाख  किया जाना भी क्रान्तिकारी  कदम होगा | वैसे भी देश के इतने विशाल वर्ग को बजट में ठेंगा दिखाना उसके साथ अन्याय नहीं तो और क्या है ?

- रवीन्द्र वाजपेयी

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