Wednesday 24 February 2021

मंत्री टूटे-फूटे बंगलों में न रहें लेकिन जनता के धन पर ऐश औचित्यहीन



मप्र की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। राज्य सरकार लगातार कर्ज लेने को मजबूर है। सरकारी भुगतान रुके पड़े हैं। विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। कोरोना काल में सरकारी राजस्व भी घट गया जिसकी भरपाई होना मुश्किल है। ऊपर से लॉक डाउन के दौरान गरीबों को राहत देने पर अतिरिक्त व्यय हुआ।  इस सबके बावजूद शिवराज सिंह चौहान की सरकार के कतिपय मंत्रियों के आवास की साज-सज्जा पर करोड़ों रूपये खर्च किया जाना ये दर्शाता है कि सत्ता में आने के बाद जनता के सेवक बने रहने का ढोंग रचने वाले जनप्रतिनिधि किस तरह से सरकारी  धन की होली खेलते हैं। गत दिवस राज्य विधानसभा में एक प्रश्न के जवाब में  दी गई  जानकारी से जो आंकड़े सामने आये वे ये साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि सत्ता में आते ही चाल, चरित्र और चेहरे की सारी बातें भोपाल के ताल में डूब जाती हैं। मुख्यमंत्री सहित अनेक मंत्रियों के सरकारी आवास की साज-सज्जा पर खर्च हुए करोड़ों रुपयों का क्या औचित्य था ये समझ से परे है। लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव ने अकेले ही 56 लाख का काम अपने आवास  पर करवा लिया। वहीं गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने 44 लाख फुंकवा दिए। मुख्यमंत्री के पास शामला हिल के साथ ही एक और बँगला है। दोनों में मिलाकर 32 लाख के करीब का काम हुआ। अन्य मंत्रियों के नाम भी इस सूची में हैं। हमारे देश में इस तरह की शाही फिजूलखर्ची चूँकि सत्ता की पहिचान बन गई हुई इसलिए किसी को न ऐतराज होता है और न ही  आश्चर्य किन्तु जनता के नजरिये से देखें तो इस अय्याशी का बोझ आखिरकार उसी के कन्धों पर पड़ता है। पिछली सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी मुख्यमंत्री आवास में जाने के पहले बड़े पैमाने पर सुधार और साज-सज्जा करवाई थी। हालांकि ऐसा करने वाला मप्र अकेला राज्य नहीं है। केंद्र सरकार के मंत्री भी इस बारे में पीछे नहीं हैं। मनमोहन सरकार में मंत्री बने शशि शरूर तो कई महीनों पञ्च सितारा होटल में रहे क्योंकि उन्हें आवंटित सरकारी बंगले की  साज-सज्जा उनके मुताबिक बहुत ही निम्न स्तर की थी। सवाल ये है कि सरकार बदलते ही मंत्रियों के बंगलों को नए सिरे से सजाने का औचित्य क्या है ? आखिरकार उनके पूर्ववर्ती मंत्री भी तो सरकारी खर्च  पर ऐशो-आराम से ही रहते होंगे। व्यक्तिगत रूचि अथवा आवश्यकता के अनुसार छोटे-मोटे सुधार करवाना तो लाजमी है लेकिन बेरहमी के साथ लाखों रूपये फूंक देना जनता के धन की लूटपाट नहीं तो और क्या है ? भाजपा खुद को स्व.दीनदयाल उपाध्याय से प्रेरित बताती है, लेकिन सत्ता में आते ही उसके मंत्री गण पंक्ति के अंतिम छोर पर खड़े उस आम नागरिक की परेशानियों  को भूल जाते हैं जिसकी  चिंता करने का उपदेश दीनदयाल जी ने दिया था। मप्र की मौजूदा सरकार के पहले बनी कमलनाथ सरकार 15 महीने में ही गिर गई थी। उसके मंत्रियों ने भी अपने बंगलों पर बेतहाशा खर्च किया था। महज 15 महीनों बाद ही उन्हीं बंगलों पर दोबारा लाखों रूपये लुटा देना जनता के धन की  बर्बादी नहीं तो और क्या है? हालाँकि ऐसी बातें हमारे देश में जल्द ही भुला दी जाती हैं लेकिन अब जबकि सरकारी खर्च चलाने के लिए पेट्रोल-डीजल पर अनाप-शनाप कर थोपा जा रहा है तब इस तरह की फिजूलखर्ची को जनता के  साथ धोखा ही कहा जाना चाहिए। मंत्री गण टूटे-फूटे घरों में रहें ये कोई नहीं चाहेगा। उनके आवास पर सैकड़ों लोग मिलने आते हैं। निर्वाचन क्षेत्र से आने-जाने वालों को ठहराने की व्यवस्था भी उन्हें करनी होती है। बावजूद इसके सत्ता  बदलते ही सरकारी आवास पर किया जाने वाला भारी-भरकम खर्च जन अपेक्षाओं के पूरी तरह विपरीत है। शिवराज सिंह जनता से जुड़े नेता हैं तथा  हमेशा गाँव और गरीब की बात करते हैं। आम लोगों के दु:ख-दर्द में शामिल  होकर अपनी संवेदनशीलता साबित करने  में भी पीछे नहीं रहते, परन्तु  उनकी सरकार उस सादगी को अपनाने के  प्रति पूरी तरह लापरवाह है जिसका उदाहरण मप्र में भाजपा के पितृ पुरूष रहे स्व. कुशाभाऊ ठाकरे और स्व.प्यारेलाल खंडेलवाल जैसे नेताओं ने प्रस्तुत किया था। हालाँकि समय  के साथ बहुत  कुछ बदलता है और उस लिहाज  से  भाजपा भी पार्टी विथ डिफऱेंस का कितना भी दावा करे किन्तु सत्ता में आने के बाद नेताओं के आचरण में बदलाव तो आता ही है। लेकिन रास्वसंघ की पाठशाला से निकले स्वयंसेवक भी जब सत्ता रूपी मेनका के मोहपाश में फंसते हैं तब उनके समर्थक भी ये कहने को बाध्य हो जाते हैं कि हमाम में जाने के बाद सभी एक जैसे हो जाते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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