Saturday 6 February 2021

टिकैत के बढ़ते वर्चस्व ने सरकार को दबाव मुक्त कर दिया



ऐसा लगता है केंद्र सरकार ने भी ये भांप लिया है कि नए कृषि संशोधन कानूनों के विरोध में हो रहा किसान आन्दोलन गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुए उपद्रव के बाद अपराधबोध से ग्रसित होकर रह गया है | हालाँकि दिल्ली  के बाहर टिकरी और  सिंघु में आन्दोलनकारियों का जमावड़ा है लेकिन जिस तेजी से उसका केंद्र गाजीपुर स्थानांतरित हुआ उसकी वजह से आन्दोलन का नेतृत्व कर रहा संयुक्त मोर्चा तो पृष्ठभूमि में चला गया और भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत आन्दोलन के चेहरे बन गये | यद्यपि वे आये दिन इस बात का स्पष्टीकरण देते हैं कि सभी नीतिगत फैसले  सामूहिक तौर पर ही लिए जाते हैं लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि पंजाब के जो  नेता आन्दोलन की अगुआई कर रहे  थे वे खबरों से बाहर हो गये और समाचार माध्यमों को भी राकेश टिकैत में ही टीआरपी नजर आने लगी | गाजीपुर में लगे  आन्दोलन के मंच पर यदाकदा सिख समुदाय का एकाध प्रतिनिधि नजर आ जाता है लेकिन मुख्य रूप से अब वहां जाटों का बोलबाला है जो निकटवर्ती इलाकों में ही रहते हैं | 28 जनवरी को राकेश के नाटकीय दांव ने किसान आन्दोलन का समूचा रंग - रूप बदल दिया और देखते - देखते वह एक समुदाय विशेष की सामाजिक  एकता और सम्मान पर आकर अटक गया | किसान पंचायतों की जगह जाटों की खाप पंचायतों ने ले ली और राजनेताओं को आन्दोलन के पास तक न फटकने देने वाली  जिद भी एक  झटके में दरकिनार कर दी गई | जो राजनेता किसान आन्दोलन को दूर से देखते थे वे राकेश टिकैत को समर्थन देने आने लगे | हालांकि उन्होंने उनको मंच और माइक न देने के साथ ही आन्दोलन की जमीन पर वोटों की फसल की उम्मीद छोड़ देने की नसीहत भी दे डाली लेकिन ये बात किसी से छिपी नहीं रह सकी कि आन्दोलन का मुख्यालय अघोषित तौर पर जैसे ही गाजीपुर सरका त्योंही राजनेताओं की आवाजाही वहां बढ़ गयी | यहाँ तक कि विपक्ष का संयुक्त प्रतिनिधमंडल उनसे मिलने आ रहा था जिसे प्रशासन ने रोक दिया | इसी के साथ ही हरियाणा के जाट बहुल इलाकों में भी खाप पंचायतें होने लगीं जिनमें राकेश या उनके भाई नरेश ने शिरकत की | लेकिन प्रारंभिक रोकथाम के बावजूद उनमें राजनेताओं को मंच मिलने लगा | जिससे किसान आन्दोलन में राजनीति खुलकर घुसने में कामयाब हो गई | जो विपक्षी नेता धरना स्थल पर नहीं आये उन्होंने भी फोन पर राकेश से बात कर अपना समर्थन दिया | इस पर उनके द्वारा ये सफाई दी गयी कि कोई समर्थन दे तो उसमें बुराई क्या है ? धीरे - धीरे टिकैत परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा सामने आने लगी जिस पर राजनेता भी निगाह जमाये हुए थे | उल्लेखनीय है अगले साल इन्हीं दिनों उप्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और किसान आन्दोलन के बहाने राजनीतिक गोटियाँ बिठाने की कोशिशें तेज हो चली हैं | टिकैत परिवार अब तक चुनावी राजनीति में कुछ नहीं कर सका | राकेश दो चुनाव  लड़कर बुरी तरह हारे | लेकिन तब वे रालोद पर आश्रित थे लेकिन अब उन्हें लगने लगा है कि वे जाट मतों की फसल अकेले काटने में सक्षम हैं | लेकिन इसकी भनक लगते ही चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी ने गत दिवस रालोद के बैनर तले किसान महापंचायत आयोजित कर बड़ी भीड़ बटोरकर टिकैत परिवार को एक तरह से ये संकेत दे दिया कि वे खुद को जाट समुदाय का चौधरी समझने की भूल न करें | इस तरह पहले खालसा से खिसककर जो किसान आन्दोलन खाप के हाथ में आया था अब वह जाट राजनीति के मकड़जाल में उलझने लगा है | बीती 2 फरवरी को केंद्र सरकार के साथ होने वाली बातचीत जिस तरह बिना होहल्ले के रद्द हुई , वह रहस्यमय है | उसके बाद राकेश ने आन्दोलन को अक्टूबर तक खींचने की घोषणा कर डाली | प्रधानमन्त्री और संसद का माथा नहीं झुकने नहीं देंगे जैसा उनका बयान भी किसी अंदर की बात का हिस्सा बन गया | आज होने वाले चकाजाम से उप्र और उत्तराखंड को मुक्त रखने वाला बयान देकर राकेश ने ये साबित कर दिया कि वे संयुक्त किसान मोर्चे के स्वयंभू प्रवक्ता बन बैठे हैं | उप्र और उत्तराखंड में चका जाम नहीं किये जाने का कोई औचित्य भी वे नहीं बता सके | संयुक्त्त मोर्चे के जो प्रमुख नेता लगातार दो महीनों तक अग्रिम मोर्चे पर रहकर सुर्ख़ियों में रहे वे 26 जनवरी के बाद से जिस तरह से शांत हो गए वह किसी रणनीति के अंतर्गत है या आन्दोलन में आई दरार उसके पीछे है ये फिलहाल तो पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता । लेकिन ये बात साफ़ है कि बीते एक सप्ताह में किसान आन्दोलन टिकैत परिवार के कब्जे में आ गया है | और उसी के बाद केंद्र सरकार ने भी अपना रुख कड़ा कर लिया | प्रधानमन्त्री ने एक फोन कॉल की दूरी वाली बात कहते हुए भी साफ़ कर दिया था कि आख़िरी वार्ता के समय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर  द्वारा रखे गये प्रस्ताव पर किसान नेता अपना जवाब लेकर आयें | उसके बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी कृषि कानूनों की जमकर तारीफ किये जाने से ये लगा कि सरकार पूरी तरह दबाव मुक्त हैं | और गत दिवस संसद में श्री तोमर द्वारा जिस तरह के आक्रामक तेवर दिखाए गये उससे लगता है सरकार लचीला रुख छोड़ चुकी है | उसके बाद प्रधानमंत्री ने कृषि मंत्री का भाषण सुनने की सलाह देकर न सिर्फ विपक्ष अपितु किसान आन्दोलन के कर्ताधर्ताओं को भी ये एहसास करवा दिया कि अब सरकार से किसी नरमी की उम्मीद न करें | ये बात भी गौर तलब है कि राकेश टिकैत के बयानों में तीखेपन और तल्खी  की जगह अब दार्शनिक अंदाज ने ले ली है जिसमें स्वाभाविकता कम और बनावटीपन ज्यादा दिखाई देता है | इस प्रकार  अब किसान आन्दोलन की धार यदि कमजोर हो रही है तो उसकी वजह  साफ़ है | पंजाब का वर्चस्व लगातार घट रहा है | दो दिन पहले जिस तरह  से कुछ विदेशी हस्तियों ने आन्दोलन के समर्थन में बयान दिया उससे भी उसका नैतिक पक्ष कमजोर हुआ है | रही - सही  कसर टिकैत परिवार की एकला चलो नीति और राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी कर  रही है | संयुक्त मोर्चे के बाकी नेता टिकैत परिवार के इस आचरण  से हतप्रभ हैं लेकिन कुछ करने के स्थिति भी उनकी नजर नहीं आ रही | इन्हीं सब कारणों से दो महीने तक दबाव में दिखी केंद्र सरकार अब ऊंची आवाज में बात  करते हुए दिख रही है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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