Monday 8 February 2021

ये इससे बड़े हादसे की चेतावनी भी हो सकती है



गत दिवस उत्तराखंड के चमोली में हिमशैल ( ग्लेशियर ) के टूटने से जो हालात उत्पन्न हुए वे प्रलय के पूर्वाभ्यास से कम नहीं थे | देखते   - देखते जल सैलाब आया और उसकी चपेट में आई हर चीज पलक झपकते बर्बाद हो गयी | शुरुवाती आंकड़ों में जनहानि की जो जानकारी आई उसमें और वृद्धि की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता | ऋषि गंगा नामक अलकनंदा की सहायक नदी पर बन रहे बाँध सहित कुछ और पनबिजली परियोजनाओं का  निर्माण भी तबाही  का शिकार हो गया | उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा का ये पहला  मामला नहीं है | बढ़ते वैश्विक तापमान से ग्लेशियरों के सिकुड़ने का सिलसिला निर्बाध जारी है | लेकिन  सबसे बड़ी बात ये हुई कि बजाय गर्मियों के सर्दियों के मौसम में बर्फ का पहाड़ टूटकर  भयंकर बर्बादी का कारण बन गया | जिस नन्दा देवी क्षेत्र में हादसे की जगह स्थित है उसे बेहद संवेदनशील मानकर पर्यावरण वैज्ञानिक  प्राकृतिक संतुलन से की जा रही छेड़छाड़ के प्रति चेताते रहे हैं | 2013 में  हुए केदारनाथ हादसे के बाद भी विशेषज्ञों की अनेक समितियाँ बनीं जिनकी रिपोर्ट में उत्तराखंड में विकास कार्यों के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर चिंता व्यक्त की गई थी किन्तु जैसी कि प्रारम्भिक जानकारी आई उसके अनुसार उनके  सुझावों पर गौर करने की जरूरत ही नहीं समझी गई | एक बात और भी जो इस हादसे के संदर्भ में उल्लिखित है , वह है उत्तराखंड में फोरलेन सड़कों का जाल बिछाने के लिये पहाड़ों को तोड़ने - फोड़ने के लिए किये जाने वाले विस्फोटों के  कम्पन से हिमशैलों का आधार कमजोर हो जाना | कुछ लोग इस हादसे में चीन के हाथ होने का भी जिक्र कर रहे हैं परन्तु  उस बारे में बिना पुख्ता सबूत के कुछ कहना उचित न होगा | लेकिन हमारे हिस्से की जो गलतियाँ हैं उनसे नहीं सीखने की चारित्रिक विशेषता की वजह से ऐसे किसी भी हादसे के बाद बुद्धिविलास तो बहुत होता है लेकिन ठोस काम नहीं होने से समय - समय पर उनकी पुनरावृत्ति होती रहती है | ताजा दुर्घटना के असली कारण की जाँच के बाद एक बार फिर मोटी - मोटी रिपोर्टों की फाइलें सरकारी आलमारियों की शोभा बढ़ाएंगी |  मरने वालों के परिवारों को नगद राशि का ऐलान तो राज्य और केंद्र दोनों सरकारों ने कर ही दिया , राहत और बचाव के काम भी कल से ही चल रहे हैं | कहा जा रहा है कि निजी क्षेत्र के तहत बन रही एक पनबिजली परियोजना का काम तो 95 फीसदी पूरा हो चुका था जो पूरी तरह मिट्टी में मिल गया | आर्थिक क्षति का आकलन  कमोबेश हो ही जाएगा लेकिन प्रभावित इलाके के पर्यावरण को जो नुकसान हुआ वह अपूरणीय है क्योंकि मानव निर्मित किसी ढांचे को तो दोबारा बनाया जा सकता है लेकिन एक पहाड़ के धराशायी होने के बाद उसका पुनर्निर्माण संभव नहीं होता | उत्तराखंड भारत की  सबसे पवित्र गंगा और यमुना नदी का उद्गम स्थल है | इसे देवभूमि भी कहा जाता है | हिन्दुओं और सिखों के पवित्र तीर्थ  होने के साथ ही यहाँ  पर्यटन के भी अनेक प्रसिद्ध स्थल होने से लाखों तीर्थयात्री और सैलानी प्रतिवर्ष यहाँ आते हैं | एक जमाना था जब चारधाम यात्रा पैदल की जाते थी किन्तु विज्ञान और तकनीक के विकास ने आवागमन के जो आधुनिक साधन विकसित किये उनकी वजह से उत्तराखंड ही नहीं वरन समूचे पहाड़ी क्षेत्रों का प्राकृतिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ चुका है | वर्तमान में चार धाम की यात्रा  के  लिए चौड़ी बारहमासी सडकें बनाये जाने के कारण पहाड़ों के आकार और आधार पर प्रहार हो रहा है | गत दिवस जो कुछ हुआ  उसने उन  तमाम आशंकाओं को सही  साबित कर दिया जो इसी क्षेत्र में दशकों पहले शुरू हुए चिपको आन्दोलन के समय से व्यक्त की जाती रही हैं | टिहरी बाँध परियोजना का विरोध करने वालों ने जो - जो खतरे बताये थे वे सब धीरे - धीरे सामने आते जा रहे हैं | सुन्दरलाल बहुगुणा और उन जैसे अनेक लोगों ने उत्तराखंड में  पर्यावरण संरक्षण के लिए जो आन्दोलन और अभियान चलाये उनको समर्थन और सम्मान तो खूब मिला लेकिन उनके सुझावों और मांगों को उपेक्षित किये जाने की वजह से हिमालय अपना धीर - गम्भीर स्वभाव बदलने पर बाध्य हो गया | प्रकृति की  अपनी  स्वनिर्मित संतुलन प्रणाली है जो मानव जाति के अस्तित्व को सुरक्षित रखती है लेकिन मनुष्य की विकास संबंधी वासना ने उस संतुलन को पूरी तरह तहस - नहस कर दिया | इस बारे जो लापरवाही बरती गई वह आपराधिक उदासीनता के सबसे बड़े उदाहरणों में से है | भारतीय जीवन शैली और ज्ञान परम्परा में प्रकृति के साथ संघर्ष की बजाय सामंजस्य बिठाने की जो सीख थी उसे विस्मृत कर दिए जाने से ही इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति जल्दी - जल्दी  होने लगी है | प्रकृति का धैर्य जब टूटता है तब तबाही के तौर पर उसकी अभिव्यक्ति होती है | गत दिवस हुआ हादसा वैसे तो अपने   आप में बहुत बड़ा था लेकिन उसे इससे   बड़ी किसी प्राकृतिक आपदा की पूर्व चेतावनी के तौर पर भी  लिया जाना चाहिए | आश्चर्य इस बात का है कि  अपनी  संचार क्रान्ति पर इठलाने वाली मानव जाति प्रकृति द्वारा  दिए जाने वाले संकेतों को समझने में असमर्थ है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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