Monday 1 February 2021

किसान की पगड़ी और प्रधानमन्त्री का सिर नहीं झुकने देंगे जैसी टिप्पणी में छिपे कई संकेत



दो महीने से चले आ रहे किसान आन्दोलन का केंद्र अब दिल्ली के बाहरी इलाके गाजीपुर में स्थानांतरित हो गया है | ये जगह पश्चिमी उप्र का प्रवेश द्वार है जहाँ जाट समुदाय का वर्चस्व है | 26 जनवरी को हुए बलवे के बाद पंजाब प्रायोजित आन्दोलन बदनाम हो गया लेकिन  भारतीय किसान यूनियन नामक संगठन के नेता राकेश टिकैत ने बड़ी ही चतुराई से आन्दोलन को बिखरने से न सिर्फ रोक लिया अपितु खुद उसके सबसे बड़े नेता बन गये | इसका तात्कालिक परिणाम ये हुआ कि जिस आन्दोलन पर सिखों का कब्जा दिखाई देता था वह जाटों की मुट्ठी में आ गया | हालांकि इसे परिस्थितिजन्य बदलाव कहा जा सकता है लेकिन इसके पीछे भी कहीं न कहीं टिकैत बंधुओं की अपनी महत्वाकांक्षा छिपी  हुई है | स्मरणीय है किसान  संगठनों और सरकार के बीच वार्ताओं के बीच ही यूनियन के अध्यक्ष और राकेश के बड़े भाई नरेश टिकैत ने खुले आम आरोप लगाया था कि वार्ता में जब भी समाधान की सम्भावना नजर आने लगती है तब कतिपय नेता रायता फैलाते हुए गतिरोध बनाये रखने का कारण बन जाते हैं | हालांकि उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया लेकिन उसके बाद पंजाब के एक किसान नेता द्वारा दिल्ली में अनेक राजनीतिक नेताओं से मिलने का  मप्र के किसान नेता शिवकुमार कक्का द्वारा विरोध किये जाने पर उक्त नेता द्वारा उन्हें रास्वसंघ का एजेंट बता दिया गया | उक्त दो उदाहरणों से ये साफ़ हो चला था कि किसान संगठनों के बीच अन्तर्विरोध और अविश्वास बना हुआ था | भले ही ये आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ लेकिन जब ये दिल्ली के दरवाजे पर आया तब टिकैत परिवार को  लगा कि इसका नेतृत्व येन केन प्रकारेण उनके हाथ आ जाए | हालाँकि किसानों के बीच अच्छी पकड़ की बावजूद  राकेश टिकैत दो बार चुनाव लड़े लेकिन  सजातीय जाट मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में भी उनको सफलता नहीं मिली | इस बारे में एक बात बड़ी ही महत्वपूर्ण है कि चौधरी चरण सिंह के वारिस बने उनके बेटे अजीत सिंह अब राजनीतिक हाशिये पर हैं और उनके बेटे जयंत भी लगातार दो चुनाव हारकर अप्रासंगिक हो गये हैं | इस कारण जाट समुदाय में कोई बड़ा राजनीतिक चेहरा नजर नहीं आ रहा | हालाँकि भाजपा ने जाटों में से अनेक नेताओं को अपनी तरफ खींचकर राजनीतिक ओहदा दिया लेकिन वे पूरे समुदाय को प्रभावित करने में सक्षम  नहीं हैं | राकेश और नरेश टिकैत को किसान आन्दोलन में उतनी रूचि नहीं थी क्योंकि उनके प्रभाव वाले पश्चिमी उप्र की  समस्याएँ पंजाब और हरियाणा की तुलना में काफी अलग हैं | लेकिन उन्होंने दूसरों के मंच पर कब्जे का सुनहरा अवसर लपक लिया | संयोगवश 26 जनवरी को आन्दोलन के अनियंत्रित होने के बाद से पंजाब के किसान नेता कमजोर पड़ने  लगे और टिकैत बंधुओं ने बिना देर किये सहायक कलाकार की बजाय खुद को नायक की भूमिका में ला खड़ा किया | शुरू में ऐसा लगा कि उनका शो भी फ्लॉप होगा लेकिन घटनाचक्र जिस तेजी  से घूमा उसके कारण टिकैत बंधु किसान आन्दोलन के प्रतीक बनकर समूचे परिदृश्य पर छा  गये | न सिर्फ  पाश्चिमी  उप्र बल्कि हरियाणा की खाप पंचायतों ने अभूतपूर्व सक्रियता दिखाते हुए इसे किसान की  आड़ में  जाट अस्मिता से जोड़ दिया | यही नहीं तो जिन  राजनीतिक  नेताओं को अब तक आन्दोलन स्थल पर फटकने की इजाजत तक न थी वे खुले आम आकर राकेश के प्रति समर्थन व्यक्त करते दिखने लगे |  सबसे मजेदार बात ये है कि वे अपने साथियों सहित गिरफ्तारी देने जा रहे थे किन्तु भाजपा विधायक द्वारा की गई  कथित हरकत के बाद  बिदक गये जो कि उनकी रणनीति का हिस्सा था | जिस सुनियोजित ढंग से खाप पंचायत आयोजित हुईं और गाजीपुर में शक्ति प्रदर्शन किया गया उसमें कृषि कानून से ज्यादा राकेश टिकैत और उनके बहाने जाट समुदाय को गोलबंद ,किये जाने की कोशिश अधिक थी | दो दिन पहले  तक ऐसा लग रहा था कि किसानों  के साथ केंद्र सरकार की सम्वाद प्रक्रिया पूरी तरह ठप्प हो गई लेकिन सर्वदलीय बैठक  और  रेडियो पर प्रधानमन्त्री की मन की बात का प्रसारण होने के बाद 2 फरवरी को फिर बातचीत किये जाने का फैसला सामने आ गया | यही नहीं तो टिकैत बन्धु किसान की पगड़ी और प्रधानमन्त्री के साथ ही संसद के सम्मान को बनाए  रखने जैसी बातें करने लगे | हालाँकि न सरकार ने कानून वापिस लेने का संकेत दिया और न ही टिकैत या अन्य किसी किसान नेता द्वारा अपनी घोषित नीति से पीछे हटने का | फिर भी बातचीत का सिलसिला किस आधार पर शुरू किया जा रहा है ये बताने कोई तैयार नहीं | और जब इस बारे में राकेश से पूछा गया तब वे बोले ये अंदर की बात है | राजनीति के जानकार मान रहे हैं कि सरकार के साथ समझौता हो न हो लेकिन  राकेश और नरेश टिकैत की जुगलबन्दी ने एक झटके में पंजाब के वर्चस्व से किसान आन्दोलन को अपने हाथों में केन्द्रित कर लिया है जो संभवतः केंद्र और भाजपा दोनों को रास आने वाला है | इस बारे में उल्लेखनीय है कि बादल परिवार से अलगाव के बाद भाजपा  के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जो सिख समुदाय और गुरुद्वारों के साथ समन्वय स्थापित कर सके | लेकिन जाटों के साथ ये परेशानी नहीं आयेगी क्योंकि पश्चिमी उप्र के राजनीतिक समीकरण भाजपा के काफी अनुकूल रहे हैं और शुरुवाती  नाराजगी के बावजूद चुनाव में जाट उसे ही  समर्थन देते हैं | मौजूदा प्रकरण का पटाक्षेप कैसे होगा और होगा भी या नहीं ये आज कह पाना कठिन है लेकिन 26 जनवरी के बाद अचानक बहुत कुछ ऐसा हुआ है जिससे माना जा सकता है कि किसान आन्दोलन की दिशा बदल सकती है और इसका कारण टिकैत बंधु बनेंगे  | विभिन्न किसान संगठनों के नेताओं ने सार्वजनिक   तौर पर ये स्वीकार किया कि राकेश और नरेश ने आन्दोलन को नवजीवन दे दिया | भाजपा के विरोध में खड़े विपक्ष को भी अचानक जाटों के नए नेता के रूप में टिकैत नजर आने लगे | 2 फरवरी को होने वाली बातचीत किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी या पहले की तरह गतिरोध  बना रहेगा ये तो बैठक के बाद ही सामने आयेगा लेकिन राकेश की ये टिप्पणी  कि सरकार की कोई मजबूरी हो तो हमें बताये और हम प्रधानमंत्री का सिर नहीं झुकने देंगे , समूचे प्रकरण में किसी नए मोड़ का  संकेत है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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