Friday 19 February 2021

जीवनदायिनी नदियों के जीवन की रक्षा ही सही भक्ति



आज पुण्यसलिला नर्मदा  का प्राकट्य उत्सव समूचे नर्मदा क्षेत्र में पूरे भक्ति भाव से मनाया जा रहा है | सुबह से ही भक्तगण नर्मदा तटों पर एकत्र होकर इस  जीवनदायिनी सरिता के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त कर  रहे हैं | इस दौरान लाखों श्रद्धालु उसके जल में स्नान करने के साथ ही दीपदान और पूजन सामग्री  प्रवाहित करेंगे | नर्मदा तटों पर मेले जैसा माहौल बना रहेगा | लेकिन  कल सुबह उन घाटों के जो चित्र समाचार  माध्यमों के जरिये प्रसारित होंगे वे विचलित करने वाले रहेंगे | सर्वत्र गंदगी दिखाई देगी | किनारों पर फूल वगैरह उतराते मिलेंगे | सौभाग्यवश नर्मदा उन गिनी - चुनी नदियों में से है जो प्रदूषण से काफी हद तक मुक्त है | इसका कारण इसके किनारे बसे  शहरों में अपेक्षाकृत कम औद्योगिकीकरण होना है | लेकिन बीते कुछ वर्षों से नर्मदा भक्ति जिस तेजी से बढ़ी उसकी वजह से इस पवित्र नदी का  हाल भी अन्य नदियों  जैसा होने का खतरा बढ़ गया है | भगवान शिव की पुत्री होने से उसका पौराणिक महत्व भी है | ये एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है | नर्मदा के महात्म्य पर पुराण की रचना भी की गई | आद्य शंकराचार्य ने इस पर जो अष्टक लिखा वह नर्मदा भक्तों की जुबान पर रहता है | समूचे नर्मदा क्षेत्र में नमामि देवी नर्मदे का स्वर सुनाई देता है | बीते काफी समय से यह भक्तों के साथ राजनेताओं की श्रद्धा का केंद्र भी बन गई है | कुछ इसकी  परिक्रमा करते हैं तो कुछ नित्य दर्शन | लेकिन इस सबसे अलग हटकर आज के दिन नर्मदा पर हो रहे अत्याचार पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए | नर्मदा से अवैध रेत उत्खनन में राजनेताओं की भूमिका सर्वविदित है | सरकारी बंदिशें इस कारण बेअसर होकर रह जाती हैं | इसी तरह से साधु - संतों ने नर्मदा के किनारों पर अपने आश्रम बना लिए हैं | आवासीय बस्तियां भी कुकुरमुत्तों की शक्ल में नजर आती हैं | ये सब मिलकर नर्मदा को प्रदूषण की गर्त में धकेलने का काम कर रहे हैं , जो चिंता का विषय होना चाहिए | आज माँ स्वरूप इस नदी के  प्राकट्य दिवस पर  केवल उसकी पूजा - अर्चना तक सीमित न रहकर उसकी रक्षा के प्रति दायित्वबोध जाग्रत करने पर भी विचार किया जाना जरूरी है | हमारे देश में नदियों को माँ मानकर पूजित किया जाता है | छोटी - छोटी नदियों को भी गंगा का प्रतीक मानकर लोग अपना श्रद्धा भाव व्यक्त करते हैं | नदी स्नान आध्यात्मिक विधान का हिस्सा है | कुम्भ और उस सदृश अन्य मेले नदियों के किनारे ही आयोजित होते हैं | त्यौहारों पर नदियों में स्नान की परम्परा है | लेकिन बढ़ती आबादी और बेतहाशा शहरीकरण ने नदियों के अस्तित्व के लिए संकट उत्पन्न कर दिया है | दुर्भाग्य से नर्मदा की पवित्रता भी अब प्रदूषण की चपेट में आने लगी है | मप्र के अमरकंटक से गुजरात के भड़ूच तक की इसकी यात्रा प्रकृति की गोद में होती है | इसे सौन्दर्य की नदी भी कहा गया है | लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि ये सौन्दर्य पहले जैसा नहीं रहा | कारण वही हैं जिनकी वजह से गंगा और यमुना दुर्दशा का शिकार हुईं | ऐसे में अनगिनत नर्मदा भक्तों का ये दायित्व है कि वे आज के दिन नर्मदा के पूजन - अर्चन के साथ ही  उसकी रक्षा का प्रण लेकर उस दिशा में प्रयास भी  करें | नर्मदा की विलक्षणता नदियों की पवित्रता के अभियान का आधार बन सके तो ये बहुत बड़ी बात हो सकती है | भारत को प्रकृति ने नदियों के रूप में जो उपहार दिया उसे सहेजकर रखना उसके भक्तों का कर्तव्य है | यदि हम नदियों की पवित्रता को सुरक्षित रखने के प्रति उदासीन  हैं तो फिर ये कहना गलत न होगा कि उनके प्रति  हमारी भक्ति महज पाखंड है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी



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