Friday 26 February 2021

गोडसे पूजक को शामिल कर खुद को कठघरे में खड़ा कर लिया कमलनाथ ने



मप्र में हिन्दू महासभा के एक नेता द्वारा गत दिवस कांग्रेस की सदस्यता लिए जाने पर राजनीतिक बवाल मचा है। उक्त नेता द्वारा कुछ साल पहले महात्मा गांधी के हत्यारे नथूराम गोडसे की मूर्ति की पूजा किये जाने के चित्र सोशल मीडिया के जरिये प्रसारित होते ही टिप्पणियों की बाढ़ आ गई। कांग्रेस के लिए निश्चित रूप से ये बहुत बड़े असमंजस की घड़ी है। अतीत में भाजपा के अनेक नेता भी उसका दामन थाम चुके हैं लेकिन गोडसे की पूजा करने वाले व्यक्ति को पार्टी में शामिल किये जाने का फैसला मप्र के पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को ही रास नहीं आया जिसका प्रमाण उनका वह ट्वीट  है जिसमें उन्होंने तंज  कसा कि गांधी हम शर्मिन्दा हैं ...। चूंकि उक्त कृत्य  प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की मौजूदगी में हुआ इसलिए पार्टी के बाकी नेता न थूक पा रहे हैं और न ही निगलने की स्थिति में हैं। वहीं  भाजपा को बैठे-बिठाये एक मुद्दा मिल गया कांग्रेस पर हमलावर होने का। एक तरह से ये भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने अपने इस  निर्णय से भाजपा को क्लीन चिट दे दी। वैसे बाबूलाल चौरसिया नामक उक्त नेता का दावा है कि वे जन्मजात कांग्रेसी हैं और पिछले नगर निगम चुनाव में कांग्रेस द्वारा टिकिट काट दिए जाने से हिन्दू महासभा में चले गये थे। हालांकि वे गोडसे की मूर्ति की पूजा वाले कार्यक्रम का हिस्सा न बने होते तब शायद इतना हल्ला नहीं मचता। कांग्रेस के अनेक नेताओं ने भी कांग्रेस में इस नए सदस्य के आगमन पर नाक सिकोड़ी है। वह पहले कांग्रेसी था या नहीं ये बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि आजकल कौन कब किस पार्टी से निकलकर दूसरी में चला  जाए और फिर लौटकर घर वापिसी का राग अलापे ये कहना मुश्किल है। नवजोत सिंह सिद्धू ने भाजपा में रहते हुए राहुल गांधी और डा. मनमोहन सिंह पर जितने तीखे कटाक्ष किये उनके मद्देनजर उन्हें कांग्रेस  में बर्दाश्त किया जाना नाकाबिले बर्दाशत था। इसी तरह विगत लोकसभा चुनाव में मायावती ने उन मुलायम सिंह यादव का प्रचार किया जो गेस्ट हाउस  काण्ड के बाद उनके लिए दुशासन से कम न थे। और भी ऐसे अनगिनत वाकये हैं जो सिद्धांतविहीन दलबदल के उदाहरण के तौर पर जाने जाते हैं लेकिन गोडसे पूजक का कांग्रेस प्रवेश निश्चित रूप से चौंकाने वाला है। ऐसा नहीं है कि भाजपा भी इस मामले में दूध की धुली हो। कुछ बरस पहले बाहुबली नेता कहे जाने वाले डीपी यादव को उसने अपना सदस्य बनाया था लेकिन चौतरफा फजीहत के बाद शाम होते-होते उनकी छुट्टी कर दी गयी। अपराधी नेताओं से भी किसी पार्टी को परहेज नहीं रहा। लेकिन आज भी भारतीय राजनीति में गांधी जी के नाम पर थोड़ी बहुत लोकलाज  बची हुई है। उनके वैचारिक विरोधी भी उनका  नाम आदर से लेते हैं।  उस दृष्टि से बाबूलाल चौरासिया को सदस्यता देकर कांग्रेस ने अपने हाथों से अपने चेहरे पर कालिख पोत ली है। इस बारे में  शोचनीय बात ये है कि उक्त नेता का इतना आभामंडल भी  नहीं है जिससे वह कांग्रेस के लिए बड़ा जनसमर्थन जुटा सके। मान लीजिये ऐसा है तब भी जितने वोट वे दिलवाएंगे उससे ज्यादा गोडसे पूजक की उनकी तस्वीर नुकसान करवा देगी। कमलनाथ बहुत ही अनुभवी नेता हैं जिनकी राजनीतिक समझ पर संदेह नहीं किया जाता किन्तु बाबूलाल चौरासिया जैसे  महत्वहीन व्यक्ति को अपनी मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता देकर उन्होंने अपना अवमूल्यन करवा लिया। वैसे भी  वर्तमान में कांग्रेस बिना राजा की फौज जैसी होती जा रही है। बजाय भाजपा से लड़ने के उसके शीर्ष नेता आपस में लड़ने में अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं। राहुल गांधी द्वारा दक्षिण भारत के मतदाताओं को अपेक्षाकृत अधिक परिपक्व बताये जाने पर जिस तरह से उत्तर भारत  के अनेक कांग्रेस नेताओं ने खुलकर नाराजगी जताई उससे ये बात खुलकर सामने आई है कि पार्टी में नीतिगत एकता नहीं रही और सब उसे अपने ढंग से चलाना चाह रहे हैं। मप्र में कमलनाथ की सरकार के गिरने के पीछे भी व्यक्तिगत खींचातानी ही रही। ऐसे समय जब श्री गांधी दक्षिण भारत के दौरे पर हैं तब पुडुचेरी की सरकार गिर गयी लेकिन ऐसा लगा ही नहीं कि कांग्रेस के उच्च नेतृत्व को उससे कोई  फर्क पड़ा हो। इसका एक कारण ये भी है कि कांग्रेस में राज्य और स्थानीय स्तर पर जनाधार वाले नेताओं को किनारे बिठाकर दरबारी  संस्कृति को बढ़ावा दिया गया जिससे वास्तविक स्थिति से शीर्ष नेतृत्व अनभिज्ञ रहता है। फिलहाल पार्टी के पास राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ की सरकार है जबकि  महाराष्ट्र में वह शिवसेना और राकांपा  की जूनियर पार्टनर है। लेकिन उसके कब्जे वाले उक्त तीनों राज्यों में सिर्फ छत्तीसगढ़ में राजनीतिक शांति है लेकिन पंजाब में अमरिंदर और सिद्धू के बीच तलवारें चल रही हैं तो राजस्थान में गहलोत और पायलट में सांप और नेवले जैसा बैर किसी से छिपा नहीं है। मप्र में भी कमलनाथ की उनके करीबी रहे दिग्विजय सिंह के साथ पहले जैसी नहीं पट रही। बाबूलाल चौरसिया सरीखे मामूली व्यक्ति को सदस्य बनाकर कमलनाथ ने कांग्रेस के माथे पर व्यर्थ में बदनामी पोत दी। अब किस मुंह से पार्टी गांधी के हत्यारों को गाली देगी ये बड़ा सवाल है। भाजपा की देखासीखी राम भक्ति का दिखावा करने के बाद श्री नाथ ने गोडसे की पूजा कर चुके व्यक्ति को पार्टी में जगह देकर खुद को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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