Friday 5 February 2021

ऐसी ही कार्रवाई जनता के लिफ्ट में फंसने पर भी होनी चाहिए



 दो दिन पहले एक खबर आई कि मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राजधानी भोपाल स्थित सचिवालय की लिफ्ट में कुछ मिनिटों  के लिए फंस गये | पलक झपकते अमला सक्रिय हुआ और वे सुरक्षित निकल आये | लिफ्ट में खराबी को अव्वल दर्जे की  लापरवाही मानकर दो - तीन शासकीय कर्मियों को  निलम्बित कर दिया गया  | ऐसा करना लाजमी भी था  | आखिरकार सूबे के मुख्यमंत्री की सुरक्षा में किसी भी प्रकार की चूक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता | गनीमत रही जो लिफ्ट में आई तकनीकी खराबी को तत्काल ठीक कर लिया गया जिससे श्री चौहान को ज्यादा देर उसके भीतर नहीं रुकना पड़ा | लेकिन छोटी सी ये घटना अनेक सवाल पैदा कर गई | हमारे देश में लिफ्ट खराब होना कोई अनोखी बात नहीं मानी जाती | आखिर मशीन है तो  खराब भी होगी | लेकिन उसका संज्ञान तभी लिया जाता है जब किसी विशिष्ट व्यक्ति को  उस कारण असुविधा हो जाए | उस दृष्टि से ये कहना गलत न होगा कि यदि राज्य सचिवालय की अन्य कोई लिफ्ट खराब हुई होती तब संभवतः न उसकी अख़बारों में खबर आती और न ही निलम्बन जैसी कोई  कार्रवाई होती | सचिवालय प्रदेश सरकार का प्रशासनिक मुख्यालय है जहां से शासन का संचालन किया जाता है | मुख्यमंत्री सहित  दर्जनों बड़े अधिकारी और उनके मातहत काम करने वाला अमला यहीं बैठता है | आम जनता भी आती -  जाती  रहती है , जिसे प्रवेश पत्र लेना  होता है | आधुनिक तकनीक की दर्जनों लिफ्ट लगी हैं | उनके रखरखाव का ध्यान भी रखा जाता है | लेकिन सचिवालय से दूर राजधानी में ही न जाने कितनी ऐसी बहुमंजिला इमारतें होंगीं जिनकी लिफ्ट आये दिन खराब होने से लोग हलाकान होते हैं | पुराने मॉडल की लिफ्ट में  लोगों के घंटों फंसे रहने के समाचार  भी अक्सर सुनाई देते हैं | सबसे बड़ी परेशानी अस्पतालों की लिफ्ट खराब होने से होती है | सरकारी अस्पतालों में तो लिफ्ट का खराब होना बहुत आम है | इसकी वजह से आम जनता को कितनी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं इसका अंदाज लगाया जा सकता है लेकिन शायद ही किसी ने सुना या पढ़ा हो कि सरकारी अस्पताल की लिफ्ट खराब होने पर किसी का निलम्बन किया गया | हमारा आशय मुख्यमंत्री की लिफ्ट में आई खराबी को नजरंदाज करने या  हलके में लिए जाने से  कदापि  नहीं है | लेकिन प्रजातंत्र में हर व्यक्ति के अधिकारों और सुख - सुविधाओं के प्रति समान सोच होनी चाहिए | ऐसे में ये अपेक्षा करना गलत नहीं है कि मुख्यमंत्री की लिफ्ट खराब होने पर जिस तत्परता से दोषी सरकारी कर्मियों पर गाज गिराई गयी वैसी ही दंडात्मक कार्रवाई हर सरकारी लिफ्ट की खराबी पर की जाये तो व्यवस्था के प्रति बढ़ता जा रहा असंतोष और अविश्वास  कुछ कम हो सकता है | अति विशिष्ट लोगों की सुरक्षा और सुविधाएँ निश्चित रूप से आम नागरिक की तुलना में बेहतर होनी चाहिए  लेकिन दोनों में जमीन - आसमान का अंतर लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है | इसी तरह उनके आगमन पर किया जाने वाला टीम - टाम भी सामंतवादी दौर की याद  दिलाता है | गत वर्ष जबलपुर में महामहिम राष्ट्रपति जी के आगमन के दो महीने पहले नगर निगम के आलीशान सभागार मानस भवन  को बंद कर नए सिरे से उसकी साज - सज्जा पर बड़ी राशि खर्च कर दी गयी | कतिपय कारणों से राष्ट्रपति महोदय का आगमन नहीं हुआ | प्रश्न ये है कि भारत सरीखे देश में इस तरह की सोच कब तक जारी रहेगी ? राष्ट्रपति बनते समय उनके  जीवन परिचय में बताया गया था कि वे बेहद साधारण पृष्ठभूमि से आये थे | ऐसे में वे शायद खुद भी इस तरह के शाही इंतजाम को पसंद न करते हों लेकिन जिन लोगों के हाथ में शासन - प्रशासन की व्यवस्था है वे आज भी अंग्रेजी राज की यादें ताजा किया करते हैं | मप्र के मुख्यमंत्री श्री चौहान भी बेहद सरल व्यक्ति हैं जिनका जनता से सीधा जुड़ाव उनकी लोकप्रियता  का सबसे बड़ा कारण है | लिफ्ट में उनके फंसने पर निलम्बित हुए कर्मचारियों की खबर भी उनकी  जानकारी में आई होगी | ऐसे में ये अपेक्षा करना गलत नहीं है  कि कम से कम प्रदेश भर के सरकारी अस्पतालों में लगी लिफ्ट बंद होने पर भी प्रशासन ऐसी ही त्वरित कार्रवाई करे जिससे आम जनता को लोकतंत्र की सार्थकता का एहसास हो सके | बात छोटी सी है लेकिन उसका  सांकेतिक मह्त्व बहुत बड़ा है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी



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