Tuesday 23 February 2021

पुडुचेरी : कांग्रेस के हाथ से एक राज्य और खिसक गया




दक्षिण भारत में कांग्रेस का एकमात्र दुर्ग भी ढह गया। केंद्र शासित  पुडुचेरी की विधानसभा सदस्य संख्या 33 है। उनमें से एक कांग्रेस  विधायक अयोग्य ठहराया जा चुका था। उसके बाद नाटकीय घटनाक्रम में छह कांग्रेस विधायकों ने सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। एक द्रमुक विधायक ने भी वही राह पकड़ ली। इस कारण सरकार अल्पमत में आ गई। बजाय बहुमत साबित करने के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने अपना इस्तीफा उपराज्यपाल को सौंप दिया। विपक्ष ने चूँकि सरकार बनाने से इंकार कर दिया है इसलिए राष्ट्रपति शासन ही एकमात्र विकल्प बच रहता है। उल्लेखनीय है आगामी अप्रैल-मई में विधानसभा के चुनाव होना हैं। हाल ही में उपराज्यपाल पद से किरण बेदी को हटाकर तमिलनाडु के राज्यपाल को ही पुडुचेरी का जिम्मा सौंपा गया था। इसके पीछे मुख्यमंत्री के साथ श्रीमती बेदी के तनावपूर्ण रिश्ते बताये जाते थे। श्री सामी ने राष्ट्रपति से मिलकर उनकी शिकायत भी की थी। गत दिवस त्यागपत्र देने के बाद उन्होंने केंद्र सरकार और श्रीमती बेदी पर राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न करने का आरोप भी लगाया। वैसे इस राज्य में ये नई बात नहीं है। अब तक यहाँ बनी दस में से केवल चार सरकारें ही अपना कार्यकल पूरा कर सकी हैं। यह राज्य वैसे तो तमिलनाडु की राजनीतिक संस्कृति का पालन करते हुए द्रमुक और अन्नाद्रमुक के कब्जे में ही रहा लेकिन अधिकतर सरकारें गठबंधन की रहने से राजनीतिक अस्थिरता बनी रही। यद्यपि  श्री नारायणसामी ने बीते पांच साल ठीक-ठाक ही  काटे। बावजूद इसके कि श्रीमती बेदी के उपराज्यपाल बनने के बाद से सरकार और राजभवन में टकराव शुरु हो गया। इस बारे में मुख्यमंत्री के आरोपों को पूरी तरह से नकारना गलत  होगा क्योंकि भाजपा का मौजूदा नेतृत्व साम, दाम, दंड, भेद की नीति पर चलने में तनिक भी संकोच नहीं करता जिसकी वजह से गैर भाजपा राज्य सरकारों के साथ राज्यपालों के रिश्ते तल्खी भरे हो  जाते हैं। श्रीमती बेदी ने भी पुडुचेरी में नियुक्त होते ही मुख्यमंत्री के समानांतर अपनी गतिविधियां शुरू कर दी थीं जो उनकी पहिचान रही है। वैसे भी केंद्र शासित राज्य की सरकार उपराज्यपाल के नियन्त्रण में कार्य करने के लिए मजबूर रहती है। लेकिन ताजा मामले में पूरा ठीकरा उपराज्यपाल और केंद्र सरकार पर फोड़ना  भी  उचित नहीं होगा। मुख्यमंत्री अनुभवी राजनेता हैं। ऐसे में उनका दायित्व था कि वे अपने विधायकों के बीच पनप रहे असंतोष को सही समय पर पढ़ते हुए उसे दूर करने का समुचित प्रयास करते। कांग्रेस का आला नेतृत्व भी इस राज्य में हो रही उठापटक से पूरी तरह अनजान बना रहा अथवा उसने जानबूझकर आँख  - कान बंद कर रखे ये तो वही जाने लेकिन दक्षिण की अपनी एकमात्र सरकार को बचा पाने में उसकी विफलता नेतृत्व की कमजोरी ही कही जायेगी। जहां तक भाजपा का सवाल है तो दक्षिण में अभी तक वह कर्नाटक से आगे नहीं बढ़ पाई है और आंध्र और तेलंगाना में भी  सत्ता से वंचित ही है। केरल में अवश्य रास्वसंघ के बलबूते उसने अपनी पहिचान बनाई है लेकिन तमिलनाडु और पुडुचेरी में पैर जमाना उसके लिए टेढ़ी खीर है। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक के साथ उसका गठबंधन तो है लेकिन वहां की राजनीति में उसका आभामंडल प्रभावित नहीं करता। यद्यपि करूणानिधि और जयललिता के न रहने के बाद स्थानीय राजनीति में जो शून्य उत्पन्न हुआ उसमें भाजपा अपने लिए जगह तलाशने में जुटी हुई है । उसे  उम्मीद है कि तमिलनाडु और पुडुचेरी की द्रविड़ आन्दोलन प्रभावित राजनीति में हिन्दू धर्म के प्रति असंदिग्ध आस्था रखने वाला वर्ग अंतत: उसके प्रति आकर्षित होगा। पुडुचेरी के ताजा नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे भी भाजपा की वही रणनीति हो सकती है जो उसने जम्मू-कश्मीर में अपनाई थी। हालाँकि अभी तक उसका खुलासा नहीं हुआ लेकिन कांग्रेस के घटते प्रभाव के मद्देनजर भाजपा उसका स्थान लेते हुए खुद को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करती जा रही है जो उसकी दूरगामी रणनीति का हिस्सा है जिसकी सफलता पूर्वोत्तर राज्यों में देखी जा चुकी है। उस आधार पर पुडुचेरी का ताजा राजनीतिक घटनाक्रम जऱा भी आश्चर्यचकित नहीं करता। मुख्यमंत्री श्री सामी द्वारा केंद्र सरकार और उपराज्यपाल पर लगाये गए आरोपों के बावजूद कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व के साथ आलाकमान की कमजोरी भी इस मामले में उजागर हुई है। कर्नाटक, मप्र और अब पुडुचेरी में जो कुछ भी  हुआ उससे भाजपा की  सत्ता लिप्सा भले सामने आई लेकिन कांग्रेस की अपने लोगों पर ढीली होती पकड़ भी प्रमाणित होती जा रही है। पार्टी के लिए ये चिंतन के साथ ही  चिंता का भी विषय  है कि आखिर उसके अपने लोग ही उसे छोड़-छोड़कर क्यों भाग रहे हैं ?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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