Thursday 4 February 2021

किसानों और कर्मचारियों जैसी चिंता छोटे और मध्यम व्यापारी की भी करे शिवराज सरकार



मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसान हितैषी माने जाते हैं | खुद भी ग्रामीण पृष्ठभूमि और कृषक परिवार से हैं | सत्ता में आने के बाद उन्होंने कृषि और कृषकों के लिए काफी कुछ किया | परिणामस्वरूप मप्र अन्न उत्पादन में अग्रणी राज्य बन गया | विशेष रूप से गेंहू की सरकारी खरीदी में तो वह पंजाब और हरियाणा दोनों को टक्कर देने की स्थिति में आ गया | वैसे भी मप्र का गेंहू गुणवत्ता में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है | इसका प्रमाण उसका आटा बेचने वाली अनेक कम्पनियों के विज्ञापन हैं जिनमें वे मप्र से गेंहू खरीदे जाने का उल्लेख प्रमुखता  से किया करती हैं | लेकिन 2018 के चुनाव में शिवराज  सरकार सत्ता से बाहर हो गई और कारण बने किसान जिन्हें कांग्रेस ने कर्ज माफी का वायदा करते हुए अपने पाले में खींचने में सफलता हासिल की | राहुल गांधी हर सभा में ये आश्वासन दोहराते थे  कि कांग्रेस की सरकार बनते ही 10 दिनों के भीतर किसानों के 2 लाख तक के कर्जें माफ कर दिए जायेंगे | वह आश्वासन तुरुप का पत्ता साबित हुआ | लेकिन वह वायदा कमलनाथ सरकार के गले की फांस बन गया | आर्थिक और व्यवहारिक दोनों परेशानियां सामने आ खड़ी हुईं | उधर किसानों ने भी कर्ज देने वाली संस्थाओं को पैसा देना बंद कर दिया | ऐसा नहीं है कि उस सरकार ने कुछ  भी न किया हो परन्तु  जब तक वह हालात को अपने नियन्त्रण में ले पाती उसकी विदाई हो गई और शिवराज सिंह का राजयोग उन्हें सत्ता में वापिस ले आया | लेकिन सता सँभालते ही उन्हें भी सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ने वाली स्थिति से जूझना पड़ा | इधर  शपथ ग्रहण हुआ और उधर कोरोना के कारण लॉक डाउन शुरू हो गया | उसकी वजह से शासन - प्रशासन की पूरी शक्ति और संसाधन कोरोना की  रोकथाम पर केन्द्रित हो गए | हालांकि लॉक डाउन में शिथिलता आने से जनजीवन और कारोबार सामान्य स्थिति में लौटने लगे परन्तु  ऐसा होते - होते आ गयी किसान आन्दोलन की  लहर | वैसे  मप्र में इसका असर अब तक तो न के बराबर है लेकिन शिवराज सिंह चूँकि अनुभवी शासक हैं इसलिए उन्होंने संकट की सम्भावनाओं को खत्म करने के लिए जरूरी कदम उठाना  शुरू किये  जिनके अंतर्गत बीते कुछ दिनों से किसान समुदाय को प्रसन्न करने के लिए अनेक तरीके अपनाये जा रहे हैं | इनमें सबसे ताजा है कर्ज माफी | ये कहना गलत न होगा कि राज्य की  जर्जर आर्थिक स्थिति को देखते हुए शायद राज्य सरकार ये निर्णय अभी और टालती लेकिन दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन की तपिश से मप्र को बचाने के लिए  मुख्यमंत्री ने बिना देर किये खाली खजाने को और खाली करने जैसा दुस्साहस कर डाला |  दरअसल  शिवराज सिंह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह ही सदैव  चुनावी मूड   में रहते हुए काम करते हैं | इसलिये ये मान लेना सही है कि कर्ज माफी के जरिये वे किसान आन्दोलन को पनपने से तो रोक ही रहे हैं लेकिन उनकी नजर अभी से 2023 के चुनाव पर है | कांग्रेस के लिए उनका ये पैंतरा निश्चित तौर पर बड़ा राजनीतिक धक्का है क्योंकि किसानों की कर्ज माफी के मामले में वह अपराधबोध से दबी हुई है | लेकिन शिवराज सिंह की इस दरियादिली या राजनीतिक दांव में भी वोट बैंक की राजनीति ही है | कर्मचारी और किसान नामक दो दबाव समूह किसी  भी सरकार को झुकाने में सक्षम मान लिए गए हैं | इसलिए हर सरकार इनकी मिजाजपुर्सी में लगी रहती है जबकि  लघु और मध्यम हैसियत के व्यापारी को भी कोरोना के कारण जबरदस्त नुकसान हुआ परन्तु उसे किसी भी सरकार ने राहत नहीं दी | इसका कारण उसका असंगठित होना है | कहने को तो प्रदेश  में व्यापारियों के बड़े - बड़े संगठन हैं लेकिन उनमें जमे बैठे पदाधिकारी शासन और प्रशासन से टकराने में डरते हुए निजी स्वार्थपूर्ति तक ही सीमित रहते हैं जिससे  छोटे व्यापारी की सुनवाई नहीं हो पाती | सरकारी महकमा भी इन्हें जी भरकर दबाता है | ये देखते हुए शिवराज सरकार को चाहिए कि छोटे और मझोले श्रेणी के व्यापारी वर्ग को कर्ज माफी या करों में विशेष रियायत से लाभान्वित करें | भाजपा वैसे भी व्यापारियों की पार्टी मानी जाती रही है | ये वह वर्ग है जो उसके साथ उस समय भी जुड़ा रहा जब वह विपक्ष में होती थी | भले ही  शिवराज सिंह ने पिछले कार्यकाल में समाज के सभी वर्गों के लोगों को अपने निवास पर बुलाकर उनकी समस्याएँ दूर करने का अभियान चलाया जिसमें लघु और मध्यम व्यापारी भी थे लेकिन उन्हें अपेक्षित लाभ न मिल सका | किसान आन्दोलन मप्र में पाँव न जमा सके इसलिए राज्य सरकार खेती और किसानों के लिए तो बहुत कुछ करती दिख रही है | इसी तरह कर्मचारी वर्ग भी सरकार का हिस्सा होने का लाभ लेने से नहीं चूकता | लेकिन कम पूंजी से कारोबार करने वाले छोटे व्यापारी भी मौजूदा समय में काफी परेशान हैं | ऐसे में शिवराज सरकार को अपनी सम्वेदनशीलता का और विस्तार करते हुए इस वर्ग के लिए भी ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे वह अपने को उपेक्षित महसूस न करे | आखिर किसान अन्नदाता है तो व्यापारी भी तो करदाता है | लेकिन उसे न किसी प्रकार की आर्थिक सुरक्षा प्राप्त है और न ही सामाजिक | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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